हिन्दू धर्म वर्तमान राजनैतिक परिपेक्ष में

Posts tagged ‘चाँद शर्मा’

केजरीवाल से सवाल


भारत में जहाँ हवा और सूर्य की रौशनी जा सकती है वहाँ पर भ्रष्टाचार भी जा चुका है। पिछले सात दशकों में हमारे समाज की मान्यताओं में जो बदलाव आये हैं उन में प्रमुख स्थान भ्रष्टाचार को मिला है। किसी भी काम को शार्टकट से करने लेना या करवाने वाले को ‘हैल्पफुल एटिच्यूड’, ‘टैक्ट फुल’, ‘अडजस्टेबल’, या ‘ओपन-माईडिड’ कह कर दरकिनार कर दिया जाता है। जो नियमों के अनुसार चले उसे ‘रिजिड’, ‘दकियानूस’ या ‘रेडटेपिस्ट’ की उपाधि मिल जाती है। यही वजह है कि भ्रष्टाचार अब हमारी रगों में समा गया है।

लेकिन कहीं भी अन्धेरा ज्यादा देर तक नहीं रहता। सुबह जरूर होती है। अब फिर से लोग भ्रष्टाचार से तंग आ चुके हैं। पिछले दो दश्कों से तो हम बेसबरी से इमानदार व्यक्ति की तलाश कर रहै हैं। जिस ने भी अपने आप को ‘इमानदार’ बताया हम ने उसे ही प्रधानमन्त्री की कुरसी आफ़र कर दी। राजीव गान्धी, वी पी सिहँ, आई के गुजराल और मनमोहन सिहं आदि जैसे कई ‘इमानदार’ आये और भ्रष्टाचार के साथ साथ कई अन्य रोग भी हमारी राजनीति में लगा गये।

अन्ना और स्वामी रामदेव

इसी वातावरण में ऐक नाम अन्ना हजारे का भी उभरा जो महाराष्ट्र की राजनीति में अनशन कर के मशहूर होते गये। अन्ना अपने आप को गाँधी वादी कहते रहै हैं। सत्य तो यह है कि जब गाँधी जी ने बिडला हाऊस के प्रांगण में ‘हेराम’ कह कर अन्तिम सांस लिया था तो अन्ना नौ दस वर्ष की आयु के रहै होंगे। फिर भी वह गाँधी की तरह अपनी जिद मनवाने के लिये आमरण-अनशन का सहारा लेते रहै हैं। वह बात अलग है कि अपने आप को ‘री-यूज़’ करने के लिये अन्ना खुद ही कोई ना कोई बहाना ले कर अनशन खोलते भी रहै हैं।

अन्ना को राष्ट्रीय मंच पर स्वामी रामदेव लाये जो भ्रष्टाचार के खिलाफ सिर्फ आवाज ही नहीं उठा रहै थे बल्कि व्यवस्था परिवर्तन का सक्षम विकल्प भी दे रहै थे। उस विकल्प को ठोस रूप दिया जा चुका था। उनकी योजना में स्वदेशी वस्तुओं का दैनिक जीवन में इस्तेमाल, भ्रष्ट व्यकतियों का राजनीति से निष्कासन, हिन्दी तथा प्रान्तीय भाषाओं के माध्यम से उच्च शिक्षा, योगाभ्यास के दूआरा चरित्र निर्माण और भारत स्वाभिमान की पुनर्स्थापना आदि शामिल थे। स्वामी राम देव अपने विकल्प को प्रत्यक्ष रूप देने के लिये ऐक सक्ष्म संगठन भारत स्वाभिमान भी स्थापित कर चुके थे। भारत स्वाभिमान की बहती गंगा में हाथ धोने के लिये अन्ना भी ऐक जनलोक पाल का घिसापिटा विषय लेकर कूद पडे।

थोडे ही समय पश्चात अन्ना ने अपने समर्थकों के साथ, जिन में केजरीवाल, किरण बेदी और स्वामी अग्निवेश आदि अग्रेसर थे दिल्ली में अनशन पर बैठ गये। स्वामी रामदेव और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्थन से देश भर में इमानदारी की चिंगारी शोलों में परिवर्तित हो चुकी थी। युवा वर्ग उत्साहित हो कर स्वामी रामदेव के साथ उन के नये समर्थक अन्ना के गीत भी गाने लगा। भाण्ड मीडिया ने शंख नाद किया की “सरकार पाँच दिन में हिल गयी… ! ”

सत्ता में बैठी काँग्रेस ने नबज को पकडा और अन्ना से तोलमोल शुरु हो गया जिस में केजरीवाल और स्वामी अग्निवेश और कपिल सिब्बल थे। आननफानन में समझोता होगया – केजरीवाल और अग्निवेश ने जोश में अपनी पीठ थपथपाई और यह कह कर सरकार का भी धन्यवाद कर दिया कि समझोता कर के “सरकार ने उन्हें अपेक्षा से अधिक दे दिया है.. !”

सफलता के जोश में अन्ना और उन के साथियों ने पहले स्वामी रामदेव का साथ छोडा। फिर केजरीवाल ने अन्ना को भी किनारे कर दिया और अपनी राजनैतिक पार्टी खडी कर दी। अन्ना का प्रभाव टिमटिमाने लगा तो वह मायूस और बीमार पड गये, मगर केजरीवाल को चेतावनी दे गये कि “ राजनीति में ना तो मेरा फोटो इस्तेमाल करना और ना ही मेरा नाम इस्तेमाल करना।”  किरण बेदी भी केजरीवाल से अलग हो गयीं। केजरीवाल नें राजनीति में अपने कदम जमाने शुरु किये। थोडे ही दिनों में जग जाहिर होगया कि सरकार का समझोता केवल छलावा था जिस का मकसद भारत स्वाभिमान आन्दोलन को कमजोर करना था। उस के बाद की कहानी सभी जानते हैं।

जोश में दिशीहीनता

केजरीवाल को काँग्रेस ने इस्तेमाल करना शुरू किया। अपनी निष्पक्षता दिखाने के लिये केजरीवाल नें भी बीजेपी नेताओं के साथ काँग्रेस के नेताओं पर भी  भ्रष्टाचार के आक्षेप लगाये। भारत में प्रगट हुये ऐकमात्र इमानदार केजरीवाल के साथ वह महत्वकाँक्षी नेता जुडने लग गये जिन के मन में चुनाव जीतने की ललक थी लेकिन न्हें कोई बडी पार्टी टिकट नहीं देती थी। मोमबत्तियों के सहारे भ्रष्टाचार के अन्धेरे को मिटाने का प्रयास करते करते युवा तो दिशा हीन हो कर थकते जा रहै थे। यह सब कुछ काँग्रेस की इच्छा के अनुकूल हो रहा था। रामदेव के संस्थानों के खिलाफ सी बी आई और सरकारी तंत्र कारवाई तेज होती गयी लेकिन केजरीवाल ने स्वामी रामदेव के समर्थन में ऐक शब्द भी नहीं कहा।

आदि काल से भारत की पहचान केवल हिन्दू देश की ही रही है। स्वामी रामदेव भारत की संस्कृति की पुनर्स्थापना की बात कर रहै थे। केजरीवाल इन विषयों से अलग हो कर जामा मसजिद के इमाम अब्दुल्ला  बुखारी को संतुष्ट करने में जुटे रहै और राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से दूरी बनाने या कोसने में तत्पर रहै। काँग्रेस के साथ कदम मिलाने के लिये केजरीवाल ने अपने आप को धर्म निर्पेक्ष बताने का मार्ग चुना और इमानदारी का बुर्का ओढ लिया।

भ्रष्टाचार विरोध में सेंध

यह सर्व-विदित सत्य है कि भ्रष्टाचार करने और भ्रष्टाचारी कामों को छुपाने के साधन उसी के पास होते हैं जो सत्ता में रहता है। इस देश में पिछले छः दशकों से काँग्रेस ही सत्ता में रही है। अतः भ्रष्टाचार के लिये सर्वाधिक जिम्मेदारी काँग्रेस की है।  भ्रष्टाचार के पनपने में बी जे पी या अन्य दलों का योग्दान अगर कुछ है तो वह आटे में नमक के बराबर है।

मुख्यता सभी इमानदार लोगों को काँग्रेस के विरुद्ध ऐक जुट होना चाहिये था ताकि भ्रष्टाचार विरोधी वोटों का बिखराव ना हो। छोटे दलों से तो बाद में भी निपटा जा सकता है। लेकिन अब केजरीवाल ने भ्रष्टाचार विरोधी वोटों का बिखराव करने के लिये अपनी पार्टी को खडा किया है। इस का फायदा सिर्फ काँग्रेस को होगा और वह सत्ता में बनी रहै गी। अगर कुछ थोडे से केजरीवाल के समर्थक चुनाव जीत गये तो वह अपनी सरकार कभी नहीं बना सकें गे। वह केवल पिछलग्गू बने रहैं गे।

सरकार का काम केवल भ्रष्टाचार बन्द करना ही नहीं होता। सरकार पर देश का प्रशासन, सुरक्षा, विकास और विदेश नीति की जिम्मेदारी होती है। ऐक जनलोकपाल को कुर्सी पर तैनात कर देने से ही देश की दूसरी समस्यायें अपने आप हल नहीं करी जा सकतीं। केजरीवाल के पास कोई इस तरह की प्रतिभा या संगठन नहीं जो सरकार की जिम्मेदारियों को निभा सके। देश को इमानदारी के जोश मे इकठ्टी करी गयी भीड के सपुर्द नहीं किया जा सकता। दूर की बातें अगर दरकिनार भी करें तो भी आजतक स्थानीय बातों पर ही केजरीवाल ने अपनी राय कभी व्यक्त नहीं करी। अगर उन की नियत साफ है तो सार्वजनिक तौर पर बताये कि निम्नलिखित मुद्दों पर उन की राय क्या हैः-

  1. इनकम टैक्स कमिश्नर रहते हुए उन्हों ने कितने भ्रष्ट नेताओं को बेनकाब किया।
  2. उन की पत्नी पिछले दो दशकों से दिल्ली में ही असिस्टेन्ट इंकमटेक्स कमिश्नर के पद पर किन कारणों से तैनात रही हैं।
  3. काशमीर समस्या के समाधान के लिये उन की तथा उन की पार्टी की सोच क्या है।
  4. अयोध्या में राम जन्म भूमी विवाद के बारे में उन की पार्टी की सोच क्या है।
  5. बटला हाउस इनकाउंटर में शहीद मोहनचंद्र शर्मा के बारे क्या सोचते है।
  6. माओवादी नेता बिनायक सेन को AAP की कोर कमेटी में क्या काम दिया गया है।
  7. इमाम बुखारी के खिलाफ दर्जनों अरेस्ट वारंट है, उसके साथ अपने सम्बन्ध के बारे में क्या कहना है।
  8. कृषि घोटाला में शरद पवार के नाम पर चुप्पी क्यों साध रखी है।
  9. अनशन के दौरान, भारत माता की तस्वीर क्यों हटाई गयी थी।
  10. लोकपाल जैसी संस्था में योग्यता के बजाये आरक्षण क्यों होना चाहिये।

य़ह केवल वही प्रश्न हैं जिन का सम्बन्ध दिल्ली चुनावों से है। केजरीवाल के लिये यह केवल लिट्मस टेस्ट है कि पार्टी अध्यक्ष के नाते इन का उत्तर दें। इन बातों को केवल कुछ सदस्यों की निजि राय कह कर दर किनार नहीं किया जा सकता। कोई भी भीड चाहे कितनी भी जोश से भरी हो वह होश का स्थान नहीं ले सकती। अगर वास्तव में केजरीवाल भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहते हैं तो पहले सभी भ्रष्टाचारी विरोधियों के साथ ऐक जुट हो कर भारत को काँघ्रेस मुक्त करें क्यों की काँग्रेस ही भ्रष्टाचार का वट वृक्ष है। काँग्रेस की तुलना में बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भारतीय संस्कृति का वट वृक्ष है। अगर उन में कुछ भ्रष्टाचार है तो उस से बाद में निपटा जा सकता है।

चाँद शर्मा

पक्षी आवास


गृहस्थ आश्रम हिन्दू समाज की आधारशिला है जिस के सहारे ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ, सन्यास आश्रम तथा पर्यावरण के सभी अंग निर्वाह करते हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार ऐकान्त स्वार्थी जीवन जीने के बजाये मानवों को अपने कर्मों दूारा प्राणी मात्र के कल्याण के लिये पाँच दैनिक यज्ञ करने चाहियें। हिन्दू समाज की इस प्राचीन परम्परा को विदेशों में भी अब औपचारिक तौर पर वर्ष में एक दिन निभाया जाता है। अफसोस की बात है कि हम अपनी परम्पराओं को पहचानने के बजाय समझते हैं कि यह प्रथायें विदेशों से आई हैं।

वर्तमान पीढ़ी के पास आज जो भी सुविधायें हैं वह सब पूर्वजों ने प्रदान की हैं। इसलिये वर्तमान पीढ़ी का दाईत्व है कि वह अपने पूर्वजों की देख भाल और सहायता करे। इसी धन्यवाद की परम्परा को विदेशों में ‘थैंक्स गिविंग डे ’ कहा जाता है। गुरु विद्यार्थियों को विद्या दान देते थे। उसे आज की तरह बेचते नहीं थे। उसी विद्या के सहारे गृहस्थी जीविका कमाते हैं यदि गुरुजन भी अपनी जीविका कमाने में लगे रहें गे तो नये अविष्कारों के लिये समय कौन निकाले गा? उस दान को भिक्षा नहीं कहा जाता था बल्कि दक्षिणा (पर्सनल ऐक्सपर्टाईज फीस) कहा जाता था। नरि यज्ञ का उद्देष्य समाज तथा मानव कल्याण है। विदेशों में इसे ‘सोशल सर्विस डे ’ कहा जाता है। हम प्रकृति से कुछ ना कुछ लेते हैं। हमारा कर्तव्य है कि जो कुछ लिया है उस की भरपाई करें, और प्राकृतिक संसाधनों में विकास करें। पेड़-पौधों को जल, खाद देना तथा नये पेड़ लगाना और इसी प्रकार के अन्य कार्य  इस क्षेत्र में आते हैं। वर्ष में एक अन्तर्राष्टीय पर्यावरण दिवस (इन्टरनेशनल एनवायर्मेन्ट डे) मनाने का आडम्बर करने के बजाये पर्यावर्ण संरक्षण के लिय प्रत्येक गृहस्थी को नित्य स्वेच्छा से अपने आसपास योगदान देना चाहिये।

इसी श्रंखला में पशु पक्षियों के लिये भूत यज्ञ का उद्देष्य पशु-पक्षियों तथा अन्य जीवों के प्रति संवेदनशीलता रखना है। भारत में  कुछ समृद्ध लोग पशु-पक्षियों के पीने के लिये पानी की व्यवस्था करते थे  परन्तु आज कल कई पशु पक्षी प्यासे ही मर जाते हैं। बीमार तथा घायल जीवों के लिये चिकित्सालय बनवाना भी मानवों की जिम्मेदारी है क्यों कि हम ने पशुपक्षियों के आवास उन से छीन लिये हैं। विदेशियों ने तो पालतु जानवरों को छोड़ कर अन्य जानवरों का सफाया ही कर दिया है किन्तु गर्व की बात है कि भारत में अब भी कुछ लोग चींटियों और पक्षियों के लिये आनाज के दाने बिखेरते देखे जा सकते हैं, लेकिन मानवों ने पक्षियों के घर उजाड दिये हैं।

बडे नगरों में आजकल हमारे आस पास के वातावरण से कई पक्षी लुप्त हो चुके हैं। गिद्धों की संख्या कम हो जाने से सरकारें भी चिंतित हैं। घरेलू चिडिया जो कई तरह के कीडों को खा कर हमारे घरों का वातावरण साफ रखती थीं अब दिखाई ही नहीं देतीं। घरेलू मैना भी नहीं रही। कबूतरों आदि को रहने के लिये कोई स्थान नहीं मिलता। अगर वह घर का आस पास कहीं अण्डे देते हैं तो लोग उन्हें फैंक देते हैं। ऐसा ही चलता रहा तो ऐक दिन वह पक्षी भी हमारे पर्यावरण से गायब हो जायें गे। हम सिर्फ कंकरीट के जंगलों में निवास करें गे।

लेकिन ऐक उपाय है – हमें अपने घरों के आस पास पक्षियों के लिये ना सिर्फ दाना – पानी रखना चाहिये बल्कि उन के आवास के बारे में भी सोचना चाहिये। अगर आप पुराऩी हवेलियों को देखें तो घरों की बाहरी दीवारों पर आले बनाये जाते थे जिन में कई तरह के पक्षी अपना घोंसला स्वयं बनाते थे। आज कल लोग घरों के बाहर आले बनवाते ही नहीं। फलैट कलचर में तो यह बातें अनजानी सी लगती हैं। फिर भी अगर इच्छा हो तो हम बहुत कुछ पक्षी आवास के लिये कर सकते हैं।

अपने घरों के आस पास जहाँ भी पैड हैं हमें वहाँ लकडी, मिट्टी या किसी अन्य वस्तु के घौंसले बन्धवाने चाहियें जो पक्षियों को धूप, बारिश, आँधी, बिल्ली और कुत्तों से सुरक्षा प्रदान करें। उन में घास फूस पक्षी अपने आप लगा लें गे। किसी आर्किटैक्ट या डिज़ाईनर की भी ज़रूरत नहीं। घौंसले पेड की मोटी टहनियों के साथ  जमीन से 12-15 फीट ऊँचे बन्धे या कीलों से जुडे होने चाहियें जिन में पक्षी आसानी से आ जा सकें और उन के बच्चे नीचे नहीं गिरें।

इस काम के लिये ऐन जी ओ बना कर उसे रजिस्टर करवाने के चक्कर में नहीं पडें क्योंकि जब ऐन जी ओ आती हैं तो उस के साथ ही कई औपचारिक्ताये भी आ जाती हैं। इनकम टैक्स, आडिट, घोटाले, मतभेद सभी कुछ जुडने लगते हैं। बस स्वयं अपने धन से निस्वार्थ ही लग जाईये। कोई आप के साथ जुडे या नहीं जुडे यह देखने वालों पर छोड दीजिये। युवाओं को प्रोत्साहित कीजिये और किसी सरकारी मदद का इन्तिजार मत कीजिये।

इस के ऐवज में ना तो आप को कोई भारत रत्न दे गा और ना ही आप का नाम गिनीज बुक में दर्ज होगा। बस – आप के आस पास का पर्यावरण सुधरे गा – पक्षियों को चहकते और उडते देखें गे तो आप को अमूल्य प्रसन्नता मिले गी। अगर आप को सुझाव पसन्द है तो लाईक नहीं करें – काम शुरू करें। जब आप के पक्षी आवास में कोई पक्षी रहने लग जाये और अपने अण्डे दे दे तो अपने प्रयास को सफल समझें और सभी के साथ शेयर करें। निश्चय मानियें वह आनन्द आलौकिक होगा।

चाँद शर्मा

इस लेख के पश्चात श्री जयप्रकाश डंगवाल रचित मन को छूने वाली की ऐक कविता आभार सहित जोडी गयी है।

(चाँद शर्मा)
एक खूबसूरत चिड़िया अक्सर चहचहाते हुए दिख जाती थी,
मुझे देखते ही, फुर्र से न जाने क्यों वह झट से उड़ जाती थी।

मैं, उस प्यारी चिड़िया से पूछता था: मुझसे क्या खता हुई थी,
लेकिन, कुछ बताने के बजाय, वह और भी दूर चली जाती थी।

मैं, उसे कहता रहा, मैं खुदा का नेक बंदा हूँ, कोई सय्याद नहीं,
मुझे तेरा चहचहाना, बहुत अच्छा लगता है, और कुछ भी नहीं।

उसने, मेरे आँगन में आना छोड़ दिया, कहीं और चहचहाने लगी,
थोडा सकूं था उसकी खैरियत मुझे इस तरह से अब मिलने लगी।

यकायक वह गायब हो गई और उसकी बेइंतहा फ़िक्र मुझे हो गई,
बहुत तलाशा पर कोई खबर नहीं मिली, न जाने वह कहाँ खो गई।

मुझे उससे कोई शिकायत नहीं,अगर शिकायत है तो वह खुद से है,
पंछी का कोई ठिकाना नहीं होता उसका खैरख्वाह तो खुदा होता है।

–  जयप्रकाश डंगवाल

 

 

 

सरकारी तंत्र की समाधि


जिस ‘पीडिता’ लडकी ने संत आसाराम पर ‘आरोप’ लगाये हैं उस का ऐक बार तो धन्यवाद अवश्य करना चाहिये कि उस ने राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और केन्द्र सरकारों को गहरी नीन्द से जगा दिया है। आज तक सभी सरकारें सो रही थीं। उन्हें पता ही नहीं था की संत आसाराम ने 425 स्थानों पर अतिकर्मण कर रखा है, उन के आश्रमों में महिलाओं का यौन शोषन होता है, बच्चों की तस्करी भी होती है, नकली दवाईयां बेची जाती हैं, और जादू टोने होते हैं। उन के आश्रमों में अवैध निर्माण भी हैं और पता नहीं क्या क्या और भी हो गा? शायद रसायनिक हथियार भी बनते हों गे और हो सकता है अमेरिकन प्रशासन को भी कोई दखलअन्दाज़ी करनी पडे। इतना ही नहीं संत आसा राम के पुत्र भी घोर अपराधों में लिप्त रहते थे और समस्त हिन्दू समाज को मूर्ख बना रहै थे।

सच इस अकेली पीडिता ने देश के लाखों नहीं बल्कि करोडों हिन्दूओं पर ‘अहसान’ किया है और उन्हें सत्य की चमक दिखलाई है। हमारा ‘सरकारी साधू समाज’ भी अपनी ‘समाधि’ से जाग उठा है और उन्हें संत आसाराम सें अब बुराईयों के अतिरिक्त और कुछ दिखाई नहीं दे रहा। लेकिन उन्हें यह अवश्य याद रखना चाहिये कि अगर आज आसाराम की बारी है तो कल उन का नम्बर भी अवश्य लगे गा क्यों लोकतंत्र में सरकारें तो आती जाती रहती हैं। हिन्दू शास्त्रों में भी यही विधि का विधान भी है।

काश कुछ और महिलायें भी आगे आयें और हमारे राजनेताओं को आरोपित कर के कुछ सच्चाई उन के बारें में भी बतायें। हमारा प्रजातन्त्र उन का आभारी रहै गा।

अब हमें यह भी सोचना होगा कि भारत में सरकारी महकमें क्या इसी तरह से काम करते हैं। ऐक महिला ने ऐफ आई आर लिखवा दी तो सरकारी तंत्र में, मीडिया में, सरकारी साधु संतों में, और हिन्दू विरोधियों के ढोल बजने शुरू होगये कि उठो ऐक ‘मुजरिम’ पकड लिया गया – उसे पहले काल कोठडी में डाल दो जाँच तो होती रहै गी। शरद यादव तथा गुरदास जैसे हमारे वरिष्ठ आदरणीय सांसद संसद में ही गुहार लगाने लग गये कि बस अब संत आसाराम को फांसी दे दो।हिन्दू विरोध के जोश में उन्हों ने सभी मर्यादायें ताक पर ऱख दीं क्यों इलेकशन के बादल आसमान पर छाने वाले हैं। अफजल और कसाब को फांसी देनें में जिस जोश और तेजी का अभाव था वह अब पूरा होता दिखाई दे रहा है।

जिक्र जब भी ‘भारत निर्माण’ का होगा ‘अहसान’ पीडिता का भी याद किया जाये गा।

चाँद शर्मा

सम्मान और पहचान


बच्चे पैदा करना, खाना, पीना, सुरक्षित और आराम से रहना – यह सभी काम जानवर भी करते हैं। इन सब ‘सहूलतों’ को हम ‘विकास’ या ‘सुशासन’ भी कह सकते हैं। इन के अतिरिक्त मानवों को जो बातें जानवरों से अलग करती है वह है अपना ‘सम्मान’ और अपनी ‘पहचान’।

निजि पहचान’ धर्म से होती है जो जन्म से पहले ही माता-पिता की निजि पहचान से जुडा रहता है। धर्म के अनुसार ही मानवों का नाम रखा जाता है जो जीवन पर्यन्त चलता है। रीति रिवाज, खान पान निर्धारित होता है, जीवन की मर्यादायें, कर्तव्य और अधिकार, अच्छे – बुरे का अन्तर विरासत में प्राप्त होता है। धार्मिक पहचान मृत्यु के पश्चात भी अचल रहती है क्यों कि दाह संस्कार और मरणोपरान्त की सभी रस्में अगली पीढियां धर्मानुसार ही निभाती हैं।

‘सम्मान’ नागरिकता के साथ जुडा होता है। सरकार तथा दूसरे नागरिकों की तुलना में किसी को क्या अधिकार या कर्तव्यों का पालन करना है यह नागरिक्ता के साथ जुडा विषय है। किसी अन्य देश की नागरिक्ता प्रप्त होने पर धर्म की पहचान तो वही रहती है परन्तु अधिकार और कर्तव्य नये देश के नियमों के अनुसार बदल जाते हैं।

जहाँ तक हिन्दूओं के सम्मान की बात है तो विभाजन के बाद कांग्रेस और सैकूलर पंथियों ने हमें तीसरे या चौथे दर्जे का नागरिक बना डाला है। हिन्दूओं की तुलना में दूसरे धर्म वालों को  सर्वोच्च अधिकार और सुविधायें प्राप्त हैं। अगर ऐक मुस्लिम दुर्घटना में मर जाये तो मुआवजा 15 से पचास लाख तक मिलता है लेकिन अगर कोई हिन्दू ड्यूटी पर भी मर जाये तो मुआवजा सिर्फ पांच लाख तक सीमित हो जाता है। यह केवल ऐक उदाहरण है। भारत में अब हिन्दूओं की सब से बडी जिम्मेदारी अल्पसंख्यकों को खुश रखने की है।

हिन्दूओं की पहचान के सभी चिन्ह ऐक के बाद ऐक तेजी से मिटाये जा रहै हैं। हिन्दू कानूनों में सरकारी दखलअन्दाजी, मन्दिरों की सम्पति पर सरकारी या अल्प संख्यकों के कबजे, हिन्दू मर्यादाओं का सरकारी बहिष्कार तथा उपहास, हिन्दू साधू-संतों का तिरस्कार आदि इसी के कुछ जवलन्त उदाहरण हैं।

अब देश की हिन्दू जनता को 2014 के चुनाव में फैसला करना है कि ‘विकास’ और ‘सुशासन’ का खोखला धर्म निर्पेक्ष ‘कांग्रेसी जीवन’ जानवरों की तरह से जीना है या सम्मान और अपनी पहचान के अनुसार ‘मानवी हिन्दू जीवन’ जीना है।

अब वक्त है अपने और अपने पूर्वजों के सम्मान और पहचान की खातिर हाथ में मतपत्र लेकर ऐकजुट हो जाओ वर्ना तुम्हारी दास्तां भी ना होगी दास्तानों में।

चाँद शर्मा

भुखमरी से भिखारियों तक


किसी वक्त ग़ुलाम भारत के स्वाभिमानी युवाओं से नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने कहा था – “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूं गा”। यह भारत का दुर्भाग्य था कि उस वक्त गांधी जी की जिद के कारण ही नेता जी को भारत से बाहर ‘अज्ञातवास’ में जाना पडा जहां से फिर वह लौट के ना आ सके। सुभाष चन्द्र बोस का साथ देने के बजाये गांधी ने भारत के युवाओं को अंग्रेजी साम्राज्य के हितों की रक्षा करने विश्व-युद्ध में भाडे के सैनिक बनवा कर झोंक दिया। विश्व युद्ध के बाद जब अंग्रेजी सैन्य शक्ति और आर्थिक शक्ति समाप्त होने के कगार पर आ गयी तो अंग्रेज़ों ने कांग्रेसी नेताओं से तोल-मोल कर के ‘हमें बिना खडग बिना ढाल आजादी’ दे दी और तब से हर 15 अगस्त के ‘बटवारा-दिवस’ पर हम ‘साबरमती के संत’ का गुण गान करने लग गये हैं।

सरकारी तंत्र का प्रचार

प्रधान मंत्री मनमोहन सिहं का आखिरी भाषण होने के कारण शायद 15 अगस्त 2013 भारत के इतिहास में याद रखा जाये गा क्यों कि वह ऐक कांग्रेसी प्रधानमंत्री का भाषण था जो आने वाले चुनावों को ध्यान में रख कर लिखा गया था। इस में देश की किसी भी तत्कालिक घटना को महत्व नहीं दिया गया और सिर्फ नेहरू गांधी परिवार के प्रधान मंत्रियों की उपलब्धियां ही गिनवाई गयीं और ‘फूड बिल’ का बखान अधिक किया गया था जिस को कांग्रेस चुनावी हथियार के तौर पर इस्तेमाल करे गी। ‘फूड बिल’ पास करवाने का क्रेडिट कांग्रेस ले गी और उस के असफल होने का ठीकरा राज्य सरकारों पर फोडा जाये गा। दूसरे अर्थों में – ‘हैडस आई विन, टेल्स यू लूज़’।

कांग्रेसी सरकार का ही ऐलान है कि फूड बिल आने से भारत के 67 प्रतिशत लोगों को ‘अब भरपेट खाना मिले गा’ और ‘कोई भूखा नहीं मरे गा’। इस का सरल अर्थ यह है कि आज तक  67 प्रतिशत भारतियों को ‘भरपेट खाना’ नहीं मिल रहा था और वह भूख के कारण मर रहै थे। यह भी याद रखिये कि ‘अब भरपेट खाना मिले गा’ और ‘भर पेट खाना मिल रहा है’ में भी बहुत अन्तर है क्योंकि दोनों के बीच में भ्रष्टाचार की गहरी नदी बहती रहती है जिस में अनाज और सुविधाये डूब जाती हैं और निर्धारित लक्ष्य तक नहीं पहुँतीं। भ्रष्टाचार का जिक्र प्रधानमंत्री ने नहीं किया – क्यों कि वह कोई नयी बात नहीं रही।

अब जरा सरकार के अधिकृत आंकडों पर भी नजर डालिये।1947 में भारत का ऐक रुपया अमेरिका के ऐक डालर के बराबर था। आज अमेरिका का ऐक डालर भारत के 61 रुपयों से भी उपर है। भारत के योजना आयोग के अनुसार जो व्यक्ति 32 रुपये रोज कमाता है वह गरीब नहीं है। इस का सीधा अर्थ यह है कि भारत की 67 प्रतिशत जनता 32 रुपये ( 50 सैंट ) भी रोजाना नहीं कमा सकती और उन्हें पेट भरने के लिये 66 वर्षों बाद अब सस्ता अनाज फूड बिल के माध्यम से अगर नहीं दिया गया तो वह भूख से मरते रहैं गे। अब वह भुखमरी से बच कर भिखारी बन कर जिन्दा तो रहैं गे।

फूट की आधारशिला पर वोट बैंक

इस समय प्रश्न उठता है कि देश की ऐकता के लिये भारत सरकार ने बाकी 33 प्रतिशत लोगों के लिये सस्ते अनाज की ‘सुविधा’ प्रदान क्यों नहीं करी? टैक्स देने का बावजूद क्या उन्हें भारत की नागरिकता के अधिकार प्राप्त नहीं? भारत के नागरिकों को किस आधार पर भेदभाव कर के बांट दिया जाता है? इस देश के समर्द्ध वर्ग, और मिडिल क्लास को सरकारी दुकानों से सीमित मात्रा में सस्ता अनाज क्यों नहीं खरीदने दिया जाता? सरकार कानून बना सकती थी कि जिस किसी को भी राशन में सामित सस्ता अनाज लेना हो वह बिना भेद-भाव के ऐक ही पंक्ति में स्वयं खडे हो कर अपने परिवार का राशन स्वयं ले जायें। आप को लगता है कि हमारे क्रिकेटर, फिल्म स्टार या मध्यम वर्ग के लोग लाईन में लगते ? परन्तु सरकार ने देश की जनता का बटवारा क्यों किया? क्या यह फूट डाल कर वोट बैंक बनाने का खेल नहीं है? ‘तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें भर पेट खाना दूं गा’। क्या यही हमारा स्वाभिमान है जिस के दम पर हम विश्व में महा शक्ति बनने का दावा करते हैं?

काँग्रेस के अधिकृत सांसद प्रवक्ता राज बब्बर का कहना है कि 12 रुपये में भर पेट खाना खाया जा सकता है। इस का निषकर्श यह निकलता है कि ‘आजादी’ के बाद भी ‘सुपर पावर भारत के नागरिक’ अपना पेट भरने के लिये 20 अमेरिकी सैंट नहीं जुटा पाते कि वह भर पेट खाना खा सकें। इस लिये उन भूख से बिलखते हुये नागरिकों को जिन्दा रखने के लिये फूड बिल पास करना जरूरी था।

क्या किसी ने यह भी सोचा कि जो लोग अपना पेट भरने के लिये 20 पैसे भी नहीं जुटा सकते थे तो उन को मुफ्त में 20-25 हजार के लैपटाप मुफ्त में क्यों बांटे गये? क्यों उन्हें सबसिडी दे कर हवाई जहाज़ से हज और वैटिकन की यात्राओं पर भेजा जाता है जब कि वह अपने देश में 20 पैसे का खाना भी नहीं जुटा सकते? अच्छा ता यह होता कि फूड बिल के राशन के साथ सरकार उन्हें तन ढकने के लिये 30 सैन्टीमीटर कपडा भी दे देती ताकि पूरा देश लंगोटी बांध कर ही ऐक सूत्र में तो बंध जाता और भोजन-वस्त्र की ऐकता से गांधी का सपना साकार कर देता। लेकिन फिर फूट डाल कर वोट बैंक नहीं बनाया जा सकता था जो कि लक्ष्य था।

आज 66 वर्षों की ‘तथाकथित आजादी’ के बाद हमारे भ्रष्ट नेता चाहे अपनी पीठ थपथपाने के लिये अपने-आप को ‘महाशक्ति’ कहैं या ‘परमाणु सुपर-पावर’, लेकिन वास्तव में हम भिखारियों का समुदाय बन कर रह गये हैं। कडवी सच्चाई यह है कि हमारा देश ही अब हमारा नहीं रहा। भारत विश्व के सभी देशों की ‘सांझी धरती’ बनता जा रहा है जहां पाकिस्तानी, चीनी, बंगलादेशी, नेपाली, अफगानी, मयंमारी, श्रीलंका या कोई और भी कहीं से अपने भूखे नंगे नागरिकों, शस्त्रधारी आतंकियों को खुलेआम ला कर बसा सकता है और भारत का मूल वासियों को यहाँ से पलायन करने के लिये विवश कर सकता है। चुनावी मौसम के कारण इन सब बातों पर प्रधान मंत्री ने अपना समय नष्ट नहीं किया।

नेताओं का कोरस

वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेताओं के लिये अब यही कोरस गीत उपयुक्त हैः-

अपनी आजादी को अब हम तो बचा सकते नहीं,

सिर कटा सकते हैं, लेकिन सिर उठा सकते नहीं

जो कोई घुसपैठिया सीमा के अन्दर आये गा,

वोह यहाँ का नागरिक ईक दिन में ही बन जाये गा,

बिरयानियाँ इस देश में उन को खिलाते जा रहै,

अपने घरों को तोड कर हम वोट उन के पा रहै।

करते रहै हैं हौसले जनता के देखो पस्त हम,

देश जाये भाड में अब तो रहैं गे मस्त हम,

अपनी यह नेतागिरी हरगिज गँवा सकते नहीं

सिर कटा सकते हैं, लेकिन सिर उठा सकते नहीं।

जय सोनियां – जय मन मोहन, जय – सोनियां जय मन मोहन…

चाँद शर्मा

इशरतजहाँ या भारतवासी


इशरत जहाँ का ऐनकाऊंटर ‘असली’ था या ‘नकली’, यह तो अदालतें स्पष्ट करें गी। लेकिन अभी ऐक बात पूर्णत्या स्पष्ट है कि काँग्रेस और उस के धर्म निर्पेक्ष सहयोगियों को भारत के नागरिकों के जीवन की सुरक्षा की कोई चिन्ता नहीं। उन्हें पुलिस कर्मियों की निजि सुरक्षा और अधिकारों की तुलना में आतंकवादियों के ‘मानवाधिकारों’ की चिन्ता ज्यादा है। वह आतंकवादियों को पूरा ‘मौका’ देना चाहते हैं कि पहले आतंकवादी अपना ‘लक्ष्य पूरा करें’ ताकि पुलिस कर्मियों के हाथ ‘सबूत’ आ जाये कि भारतीय नागरिकों पर गोली चलाने वाले या बम फैंकने वाले वास्तव में ‘अपराधी थे’, ताकि हम उन पर बरसों मुकदमें चला सकें, कई तरह के कमिशन बैठा सकें, अपीलें सुन सकें और उन्हें रहम की फरियाद करने की बार बार छूट भी दें – और अगर उन आतंकियों की किसी तरह से ‘सहायता’ ना करी जा सके तो चोरी छिपे उन्हें मजबूर हो कर फाँसी पर लटका देँ। इस सारी परिक्रिया में अगर हमारे पुलिस कर्मी अगर जरा सी भी चूक करें तो पहले उन्हें जेलों में बन्द करें ताकि फिर कोई पुलिस कर्मी ‘हिम्मत दिखाने से पहले’ सरकार को दिखाने के लिये ‘सबूत दिखाये’।

तीसरा बडा स्पष्ट और सर्व-विदित तथ्य यह है कि काँग्रेस और उस के सहयोगियों को किसी के मानव अधिकारों की भी कोई चिन्ता नहीं जैसे कि साध्वी प्रज्ञा और उस के साथी बरसों से जेलों में पडे हैं। उन्हें चिन्ता है तो सिर्फ अपने वोट बैंक की जिस के सहारे वह वोटों का ध्रुवीकरण कर के चुनाव जीतें गे और फिर अगले पाँच साल तक ‘ऐशो-ईशरत’ करें। अदालती फैसले तो पहले भी होते रहै हैं और आगे भी होते रहैं गे। कितने आतंकियो और नक्सलियों को फाँसी दी गयी और उन की तुलना में कितने ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मी मरे?

चौथा फैसला अब जनता को करना है। जनता निर्णय ले कि उन्हें इस तरह के ‘विधान’ और इस तरह की ‘कानूनी कारवाई’ के सहारे अपनी जान और आत्मसम्मान की रक्षा करनी है, अपने देश को आतंकियों से बचाना है या सिर्फ खोखले मानवाधिकारों के लिये देश और जनता को कुर्बान कर देना है। जहाँ देश और जनता का जनजीवन सुरक्षित नहीं वहाँ आतंकियों के मानवाधिकार, अदालतों के घिसे पिटे तरीके और नेता भी सुरक्षित नहीं। उन व्यवस्थाओं को भी बदलना होगा क्यों कि हर स्थिति में जनता के फैसले के खिलाफ विधान और वैधानिक सदन कोई अस्तीत्व नहीं रखते।

इशरत जहाँ का केस जरूर चुनावी मुद्दा बने गा और जनता का फैसला ही अन्तिम फैसला होगा।

इशरत जहाँ और उस के साथियों जैसे लोगों के आतंकवाद की वजह से जो भारतीय अपने शरीर के अंग, मां बाप, भाई बहन खो बैठते हैं उन के मानव अधिकारों की रक्षा कौन करे गा? हमारा संविधान? हमारी यू पी ऐ सरकार? हमारा दोगला मीडिया?हमारे भ्रष्टाचारी नेता?नाचनेवाले फिल्म स्टार? सबूतों के अभाव में जाने पहचाने अलगाव वादियों को बरी करने वाली न्यायपालिका? मानव अधिकारों की दुहाई देने वाले कुछ छिपे गद्दार? या फिर टीवी चैनलों पर आँसू दिखाने वाले मृत आतंकियों के रिश्ते दार?

इन सब में से कोई भी नहीं।

इशरत जहाँ और उन के साथियों के मारे जाने से करोडों भारतियों के दिल को स्कून मिला है, उन के शहीद हुये रिशतेदारों की आत्मा को शान्ति मिली है और वह सभी वनजारा आदि पुलिस कर्मियों के आभारी हैं।

अब वोटों की राजनीति करने वाली काँग्रेस उन के खिलाफ जो करना चाहे कर ले लेकिन यह पुलिस अधिकारी तो देश की जनता के हीरो बन चुके हैं।

अब सब से पहले तो आतंकवाद समर्थक काँग्रेसीयों और धर्म निर्पेक्षों को चुनावी मैदान में हरा कर व्यवस्थाओं को बदलने की कसम उठा लो।  हमारा लक्ष्य ऐक है – काँग्रेस मुक्त भारत निर्माण हिन्दुस्तान की पहचान और पुनरोत्थान।

चाँद शर्मा

नरेन्द्र मोदी की पहचान


काँग्रेस और बिकाऊ मीडिया नरेन्द्र मोदी को ‘साम्प्रदायक’ कह रहै हैं तो मुस्लिम वोट हासिल करने के लिये बी जे पी उन्हें ‘धर्म निर्पेक्ष’ बनने के लिये मजबूर कर रही है। ‘साम्प्रदायक’ और ‘धर्म निर्पेक्ष’ की परिभाषा और पहचान क्या है यह नरेन्द्र मोदी ने स्वयं स्पष्ट कर दी है – ‘इण्डिया फर्स्ट’ ! नरेन्द्र मोदी की लोक प्रियता का कारण उन की भ्रष्टाचार मुक्त ‘मुस्लिम तुष्टिकरण रहित’ छवि है। अगर नरेन्द्र मोदी को काँग्रेसी ब्राँड का धर्म निर्पेक्ष बना कर चुनाव में उतारा जाये तो फिर नितिश कुमार और नरेन्द्र मोदी में कोई फर्क नहीं रहै गा। इस लिये नरेन्द्र मोदी को नरेन्द्र मोदी ही बने रहना चाहिये।

बी जे पी के  जिन स्वार्थी नेताओं को ‘हिन्दू समर्थक’ कहलाने में ‘साम्प्रदायकता’ लगती है तो फिर वह बी जे पी छोड कर काँग्रेसी बन जायें। अगर सिख समुदाय के लिये शिरोमणि अकाली दल, मुस्लमानो के लिये मुस्लिम लीग को ‘सैक्यूलर’ मान कर उन के साथ चुनावी गठ जोड करे जा सकते हैं तो हिन्दू समर्थक पार्टी को साम्प्रदायक क्यों कहा जाता है? इस लिये अब बी जे पी केवल उन्हीं पार्टियों के साथ चुनावी गठ जोड करे जिन्हें हिन्दूत्व ऐजेंडा मंजूर हो नहीं तो ऐकला चलो…

काँग्रेस की हिन्दू विरोधी नीति

1947 के बटवारे के बाद हिन्दूओं ने सोचा था कि देश का ऐक भाग आक्रानताओं को  दे कर हिन्दू और मुस्लमान अपने-अपने भाग में अपने धर्मानुसार शान्ति से रहैं गे लेकिन गाँधी और नेहरू जैसे नेताओं के कारण हिन्दू बचे खुचे भारत में भी चैन से नहीं रह सके। उन का जीवन और हिन्दू पहचान ही मिटनी शुरु हो चुकी है। अब इटली मूल की सोनियाँ दुस्साहस कर के कहती है ‘भारत हिन्दू देश नहीं है’। उसी सोनियाँ का कठपुतला बोलता है ‘मुस्लिमों का इस देश पर प्रथम हक है’।

जयचन्दी नेता मुस्लमानों के अधिक से अधिक सुविधायें देने के लिये ऐक दूसरे से प्रति स्पर्धा में जुटे रहते हैं। मुस्लिम अपना वोट बैंक कायम कर के ‘किंग-मेकर’ के रूप में पनप रहै हैं। आज वह ‘किंग-मेकर’ हैं तो कल वह ‘इस्लामी – सलतनत’ भी फिर से कायम कर दें गे और भारत की हिन्दू पहचान हमेशा के लिये इतिहास के पन्नों में ग़र्क हो जाये गी।

देश विभाजन की पुनः तैय्यारियाँ

सिर्फ मुस्लिम धर्मान्धता को संतुष्ट करने के लिये आज फिर से हिन्दी के बदले उर्दू भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जा रहा है, सरकारी खर्च पर इस्लामी तालीम देने के लिये मदरस्सों का जाल बिछाया जा रहा है। शैरियत कानून, इस्लामी अदालतें, इस्लामी बैंक और मुस्लिम आरक्षण के जरिये समानान्तर इस्लामी शासन तन्त्र स्थापित किया जा रहा है। क्या धर्म निर्पेक्षता के नाम पर यह सब कुछ  राष्ट्रीय ऐकता को बढावा देगा या फिर से विभाजन के बीज बोये गा?

पुनर्विभाजन के फूटते अंकुर

आज जिन राज्यों में मुसलमानों ने राजनैतिक सत्ता में अपनी पकड बना ली है वहाँ पडोसी देशों से इस्लामी आबादी की घुस पैठ हो रही है, आतंकवादियों को पनाह मिल रही है, अलगाव-वाद को भड़काया जा रहा है और हिन्दूओं का अपने ही देश में शर्णार्थियों की हैसियत में पलायन हो रहा है। काशमीर, असम, केरल, आन्ध्राप्रदेश, पश्चिमी बंगाल आदि इस का  प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। यासिन मलिक, अबदुल्ला बुखारी, आजम खां, सलमान खुर्शीद, औबेसी, और अनसारी जैसे लोग खुले आम धार्मिक उन्माद भडकाते हैं मगर काँग्रेसी सरकार चुप्पी साधे रहती है। अगर कोई हिन्दू प्रतिक्रिया में सच भी बोलता है तो मीडिया, अल्प संख्यक आयोग और सरकारी तंत्र सभी ऐक सुर में हिन्दू को साम्प्रदायकता का प्रमाणपत्र थमा देते हैं। बी जे पी के कायर और स्वार्थी  नेता अपने आप को अपराधी मान कर अपनी धर्म निर्पेक्षता की सफाई देने लग जाते हैं।

भारत में इस्लाम 

यह ऐक ऐतिहासिक सच्चाई है कि इस्लाम का जन्म भारत की धरती पर नहीं हुआ था। इस्लाम दोस्ती और प्रेम भावना से नहीं बल्कि हिन्दू धर्म की सभी पहचाने मिटाने के लिये ऐक आक्रान्ता की तरह भारत आया था। भारत में मुस्लमान हैं उन्ही आक्रान्ताओं के वंशज हैं या फिर उन हिन्दूओं के वंशज हैं जो मृत्यु, भय, और अत्याचार से बचने के लिये या किसी लालच से इस्लाम में परिवर्तित किये गये थे। पाकिस्तान बनने के बाद अगर मुस्लमानों ने भारत में रहना स्वीकारा था तो वह उन का हिन्दूओं पर कोई अहसान नहीं था। उन्हों ने अपना घर बार त्यागने  के बजाये भारत में हिन्दूओं के साथ रहना स्वीकार किया था। लेकिन आज भी मुस्लमानों की आस्थायें और प्ररेणा स्त्रोत्र भारत से बाहर अरब देशों में है। भारत का नागरिक होने के बावजूद वह वन्दे मात्रम, समान आचार संहिता, योगिक व्यायाम तथा स्थानीय हिन्दू परम्पराओं से नफरत करते हैं। उन का उन्माद इस हद तक है कि संवैधानिक पदों पर रहते हुये भी उन की सोच में कोई बदलाव नहीं। और क्या प्रमाण चाहिये?

 गोधरा की चिंगारी

गोधरा स्टेशन पर हिन्दू कर-सेवकों को जिन्दा ट्रेन में जला डालना अमानवी अत्याचारों की चरम सीमा थी जो गुजरात में ऊँट की पीठ पर आखिरी तिनका साबित हुयी थी। अत्याचार करने वालों पर हिन्दूओं ने तत्काल प्रतिकार लिया और जब तक सरकारी तंत्र अचानक भडकी हिंसा को रोकने के लिये सक्ष्म होता बहुत कुछ हो चुका था। उस समय देश की सैनायें सीमा की सुरक्षा पर तैनात थीं। फिर भी गुजरात की नरेन्द्र मोदी सरकार ने धर्म निर्पेक्षता के साथ प्रतिकार की आग को काबू पाया और पीडितों की सहायता करी। लेकिन क्या आज तक किसी धर्म निर्पेक्ष, मानवअधिकारी ने मुस्लिम समाज को फटकारा है? क्या किसी ने कशमीर असम, और दिल्ली सरकार को हिन्दू-सिख कत्लेआम और पलायन पर फटकारा है?

अत्याचार करना पाप है तो अत्याचार को सहना महापाप है। सदियों से भारत में हिन्दू मुस्लमानों के संदर्भ में यही महापाप ही करते आ रहै थे। क्या आज तक किसी मानव अधिकार प्रवक्ता, प्रजातंत्री, और धर्म निर्पेक्षता का राग आलापने वालों ने मुस्लमानों की ‘जिहादी मुहिम’ को नकारा है? भारत में धर्म निर्पेक्षता की दुहाई देने वाले बेशर्म मीडिया या किसी मुस्लिम बुद्धिजीवी ने इस्लामी अत्याचारों के ऐतिहासिक तथ्यों की निंदा करी है?

 हिन्दूओं की आदर्शवादी राजनैतिक मूर्खता

मूर्ख हिन्दू जिस डाली पर बैठते हैं उसी को काटना शुरु कर देते हैं। खतरों को देख कर कबूतर की तरह आँखें बन्द कर लेते हैं और कायरता, आदर्शवाद और धर्म निर्पेक्षता की दलदल में शुतर्मुर्ग की तरह अपना मूँह छिपाये रहते हैँ। आज देश आतंकवाद, भ्रष्टाचार, अल्प-संख्यक तुष्टीकरण, बेरोजगारी और महंगाई से पूरा देश त्रस्त है। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर देश की अनदेखी हो रही है लेकिन हिन्दू पाकिस्तान क्रिकेट देखने में व्यस्त रहते हैं या पाकिस्तानी ग़ज़लें सुनने में मस्त रहते हैं। अगर निष्पक्ष हो कर विचार करें तो भारत की दुर्दशा के केवल दो ही कारण है – अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और नेताओं का स्वार्थ जिस में सब कुछ समा रहा है।

अंधेरी गुफा में ऐक किरण आज के युवा अंग्रेजी माध्यम से फैलाई गयी इकतरफा धर्म निर्पेक्षता के भ्रमजाल से छुटकारा पाना चाहते हैं। वह अपनी पहचान को ढूंडना चाहते हैं लेकिन उन्हें मार्ग नहीं मिल रहा क्योंकि हमारे अधिकांश राजनेता और   बुद्धिजीवी नागरिक  मैकाले तथा जवाहरलाल नेहरू के बहकावे के वातारवर्ण में ही रंगे हुये हैं।

केवल ऐक ही विकल्प – नरेन्द्र मोदी

युवाओं के समक्ष केवल नरेन्द्र मोदी ही ऐक उमीद की किरण बनकर ऐक अति लोकप्रिय नेता की तरह उभरे हैं। आज भ्रष्टाचार और मुस्लिम तुष्टिकरण के खिलाफ सुब्रामनियन स्वामी का ऐकाकी संघर्ष युवाओं को प्रेरणा दे रहा है। आज युवाओं को अतीत के साथ जोडने में स्वामी रामदेव की योग-क्रान्ति, स्वदेशी आयुर्वेदिक विकल्प तथा भारत स्वाभिमान आन्दोलन सफल हो रहै हैं लेकिन धर्म निर्पेक्षता की आड में काँग्रेस, पारिवारिक नेता, बिकाऊ पत्रकार, स्वार्थी नेता, बी जे पी के कुछ नेता, इस्लामिक संगठन तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ तरह तरह से भ्रान्तियाँ फैलाने में जुटे हैं ताकि भारत अमरीका जैसी महा शक्तियों का पिछलग्गु ही बना रहै।

बी जे पी अब तो  साहस करे

अगर बी जे पी को भारत माता या राम से कोई लगाव है तो बे खटके यह घोषणा करनी चाहिये कि दो तिहाई मतों से सत्ता में आने पर पार्टी निम्नलिखित काम करे गीः-

  •  धर्म के नाम पर मिलने वाली सभी तरह की सबसिडियों को बन्द किया जाये गा।
  • परिवारों या नेताओं के नाम पर चलने वाली सरकारी योजनाओं का राष्ट्रीय नामंकरण दोबारा किया जाये गा।
  •  भ्रष्ट लोगों के खिलाफ समय सीमा के अन्तर्गत फास्ट ट्रैक कोर्टों में मुकदमें चलाये जायें गे और मुकदमें का फैसला आने तक उन की सम्पत्ति जब्त रहै गी।
  • पूरे देश में शिक्षा का माध्यम राष्ट्रभाषा या राज्य भाषा में होगा। अंग्रजी शिक्षा ऐच्छिक हो गी।
  •  जिन चापलूस सरकारी कर्मचारियों ने कानून के विरुद्ध कोई काम किया है तो उन के खिलाफ भी प्रशासनिक कारवाई की जाये गी।
  • धारा 370 को संविधान से खारिज किया जाये गा।
  • पूरे देश में सरकारी काम हिन्दी और राज्य भाषा में होगा।
  • समान आचार संहिता लागू करी जाये गी।

तुष्टीकरण की जरूरत नहीं

अकेले नरेन्द्र मोदी ने ही प्रमाणित किया है कि ‘तुष्टिकरण’ के बिना भी चुनाव जीते जा सकते हैं। दिल्ली में बैठे बी जे पी के नेताओं को कोई संशय नहीं रहना चाहिये कि आज भारत के राष्ट्रवादी केवल मोदी की अगुवाई को ही चाहते हैं। देश के युवा अपनी हिन्दू पहचान को ढूंड रहै हैं जो धर्म निर्पेक्षता के झूठे आवरणों में छुपा दी गयी है। जो नेता इस समय मोदी के साथ नहीं होंगे हिन्दूओं के लिये उन का कोई राजनैतिक अस्तीत्व ही नहीं रहै गा।

चाँद शर्मा

क्या बी जे पी करेगी आत्म-हत्या?


(मैं ने आज तक बी जे पी को ही समर्थन दिया है और आगे भी देता रहूँ गा ताकि हिन्दूओं में राजनैतिक जागृति और ऐकता आये और हिन्दू अपने देश में सम्मान से अपनी वोट संख्या के बल पर सुरक्षित रह सकें। उन का घर उन से कोई छीन ना ले। बी जे पी को समर्थन देना हिन्दूओं की मजबूरी है क्यों कि इस समय अन्य कोई संगठन सक्ष्म नहीं है जो भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पित होने का ‘दावा’ करता हो। यह दावे कितने सच्चे हैं उन पर से पर्दा उठाते समय मुझे अफसोस भी हो रहा है। फिर भी देश, बी जे पी, और हिन्दूओं के हित में इन बातों का विशलेशण करना जरूरी है।)

बी जे पी का हिन्दू भ्रम

काँग्रेस और मुस्लिम लीग ने कट्टर पंथी मुसलमानों के लिये देश को विभाजित करवा कर पाकिस्तान बनवाया। विभाजन के पश्चात खण्डित भारत में अपनी सत्ता बनाये रखने के लिये काँग्रेस के नेताओं ने बहुसंख्यक हिन्दूओं को राजनैतिक तौर पर कमजोर किया, अल्प संख्यकों को हिन्दूओं के विरुद्ध कट्टर पंथी बने रहने के लिये संगठित किया और उसे ‘धर्म-निर्पेक्षता’ का नाम दे दिया। हिन्दूओं में फूट डाल कर नेहरू गाँधी परिवार का पीढ़ी दर पीढ़ी राज्य स्थापित किया। इन काँग्रेसी कारनामों से सभी परिचित हैं इस लिये उस का अब ज्यादा उल्लेख करने की जरूरत नहीं।

बी जे पी के स्वार्थी नेता भी काँग्रेसियों से कम नहीं निकले। वह हिन्दू-राष्ट्र, हिन्दू संस्कृति और भारत माता का जयघोष तो रात-दिन करते रहते हैं मगर निर्वाचन से ठीक पहले अपने ऊपर धर्म-निर्पेक्ष्ता की चादर ओढ़ लेते हैं, उन क्षेत्रीय दलों के साथ चुनावी समझोते करते हैं जिन का हिन्दू-राष्ट्र, हिन्दू संस्कृति और भारत माता के साथ कुछ वास्ता नहीं है क्यों कि क्षेत्रीय दल कुछ परिवारों या सामाजिक घटकों की पार्टियां हैं। सत्ता प्राप्ति के बाद बी जे पी के स्वार्थी नेता (जिन में अटल बिहारी वाजपाई और लाल कृष्ण आडवाणी अग्रेसर रहै हैं) अपनी सत्ता को बचाने के लिये ऐन डी ऐ के घटक नेताओं और अल्प संख्यकों की चापलूसी करते हैं जिस के लिये कुर्बानी केवल हिन्दूओं के हितों की ही दी जाती है। किसी बी जे पी के नेता में दम हो तो इन बातों का सार्वजनिक तौर पर खण्डन इस ब्लाग पर कर के हिन्दूओं की संतुष्टि करे।

क्या यह सच नहीं कि बी जे पी के स्वार्थी नेता राम मन्दिर बनाने का झाँसा तो इलेकशन से पहले देते हैं, धारा 370 हटा कर काशमीर को भारत का अटूट अंग बनाने की प्रतिज्ञा करते हैं, सभी भारतीयों में समानता लाने के लिये समान आचार संहिता लागू करने के लिये वचन बद्ध होते हैं लेकिन सत्ता के समीप आते ही इन्हीं बातों को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। सत्ता-सुख के लिये ‘गठ-बन्धन-धर्म’ की आड में देश-धर्म और हिन्दू संस्कृति के प्रति निष्ठा को दर किनार कर ‘ईण्डिया शाईनिंग’ और विकास के लुभावने वादे करने लग जाते हैं। सत्ता हाथ से निकलते ही इन में फिर से राम-भक्ती, भारत माता के प्रति निष्ठा और भारतीय संस्कृति के लिये प्रेम की उमंगें हिलोरें खाने लगती हैं। यही चक्र विभाजन के समय से ही आज तक चलता रहा है और अब भी चल रहा है। काँग्रेसी तो जाने पहचाने हिन्दू विरोधी हैं मगर भगवे रंग में लिपटे छद्म-वेशी हिन्दू हितेषी भाजपाई कहीं ज्यादा घातक और स्वार्थी साबित हो रहै हैं।

आडवाणी की राम भक्ति

बाबरी मस्जिद का ढांचा राम जन्म भूमि की छाती पर ऐक रिसता हुआ नासूर था। जब आडवाणी जी राम-रथ-यात्रा ले कर आये तो राम भक्तों ने इस राम भक्त नेता की अगुवाई में उस ढांचे को राम जन्म भूमि से हटाने की कोशिश की। ढांचा गिरा तो आडवाणी अपने ऊपर खतरा भांप कर राम भक्तों से दूर जा बैठे। क्या आडवाणी जी अयोध्या केवल तमाशा देखने के लिये गये थे?

जब निहत्थे हिन्दूओं को (जिन में बच्चे और महिलायें भी थीं) गोधरा के समीप ट्रेन में जिन्दा जलाने का दुसाहस मुस्लिम कट्टर पंथियों ने किया और हिन्दूओं ने प्रतिकार लिया तो प्रधान मन्त्री की कुर्सी पर बैठे अटल जी की आंखों से हिन्दूओं के लिये दो आँसू भी नहीं टपके मगर उन का “सिर शर्म से झुक गया” था क्यों कि उन की कुर्सी की टांगे डाँवाडोल होने लग गयी थी। उस के बाद तो वाजपाई जी ने मुस्लिम तुष्टीकरण करने के लिये योजनाओं की झडी लगा दी थी।  सब से पहले नरेन्द्र मोदी को एक ‘राजनैतिक-अछूत’ बना दिया, पाकिस्तानियों के लिये भारतीय अस्पतालों में मुफ्त इलाज की सुविधायें पैदा कर दीं, समझौता ऐक्सप्रेस गाडियां चलवा दीं – लेकिन आज तक ऐक भी पाकिस्तानी आतंकी भारत के हाथ नहीं लगा। पाकिस्तानी सरकार तो अपने आतंकियों को बचाने में लगी थी – लेकिन बी जे पी के शासन में आज तक हिन्दू पुलिस कर्मी आतंकियों का ‘संहार करने के जुर्म’ में जेलों में बन्द हैं या सजायें काट रहै हैं। सत्ता के लिये राम भक्त वाजपाई राम विरोधी करुणानिधि के साथ गठ बन्धन धर्म ही तो निभाने लग गये। अलगाव वादी फारुख  अबदुल्ला और औमर अबदुल्ला को ‘धारा 370 विरोधी वाजपाई’ के मन्त्री मण्डल में शामिल करना कौन से काशमीरी हिन्दूओं के हित में था जो आज भी शर्णार्थी बन कर अपने ही देश में भटक रहै हैं? उन सब प्रयत्नों का नतीजा क्या निकला?

तुष्टीकरण का नतीजा

अटल जी उस समय की ‘नौसिख्यिा’ सोनियाँ के आगे चुनाव हार गये। सत्ता हाथ से जाते ही ‘ सत्ता सुख भोगने वाले साथी’ ऐन डी ऐ का साथ छोड गये। निर्जीव काँग्रेस पुनः जीवित हो उठी। बी जे पी ने हिन्दूओं का विशवास ही खो दिया। मुस्लिम वोट तो उन्हें पहले भी नहीं मिलते थे और ना ही अब मिलें गे। आज हिन्दू भी पूछते हैं “जब बी जे पी सत्ता में थी तो उस ने हमारे लिये क्या किया?” – कुछ भी तो नहीं! हिन्दू सिर्फ धर्म निर्पेक्षता का बोझ अपने सिर पर ढोते रहै और आतंकवादियों से पिटते रहै! ‘इण्डिया शाईनिंग’ के प्रचार के बावजूद आडवाणी ‘प्राईम मिन्स्टर इन वेटिंग’ ही रहै। – और आगे उम्र भर भी यही रहैं गे! उन के सिर पर तो भागवान राम का ही श्राप है। वह प्रधान मन्त्री नहीं बन सकते और उन अगुवाई के कारण बी जे पी की सरकार भी नहीं बने गी।

धर्म-निर्पेक्ष्ता का नया नाम ‘गठ बन्धन धर्म’ 

अब 2014 से पहले ऐक बार फिर बी जे पी हिन्दुत्व को दर किनार कर के ‘विकास’ के नाम पर हिन्दूओं के साथ खिलवाड करने जा रही है। ऐन डी ऐ का रंग मंच सजाया जा रहा है – रंग मंच के अभिनेता वही जाने पहचाने पुराने लोग हों गे जिन की अगुवाई अब नितीश कुमार करें गे। सत्ता मिल गयी तो फिर अगले पाँच वर्ष तक बी जे पी अपना गठ बन्धन धर्म निभाये गी। हिन्दू जहाँ अब हैं वहीं पडे रहैं गे। आज जब इस देश से हिन्दूओं की पहचान ही मिटाई जा रही है तो हिन्दू ‘विकास’ किस के लिये कर रहै हैं?

जब अटल जी को पहली बार प्रधान मन्त्री पद मिला तो वह बी जे पी सरकार के लिये पर्याप्त वोट नहीं जुटा पाये थे और उन्हें 13 दिन के अन्दर ही इस्तीफा देना पडा था। बी जे पी को साम्प्रदायकता के कारण ‘राजनैतिक-अछूत’ माना जाता था। वही साम्प्रदायकता का टीका बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के माथे से आज तक नहीं उतरा और  अब अपने हिन्दू प्रेम पर बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता ‘शर्मसार’ हो कर अपने ‘सैक्यूलर’ होने की दोहाई ही देते रहते हैं।

हिन्दूओं की आत्म ग्लानि

बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता क्यों नहीं डंके की चोट पर कहते कि वह हिन्दू हैं, उन्हें हिन्दू होने का गर्व है, भारत हिन्दूओं का जन्म स्थान है और हम अपना देश धर्म निर्पेक्षता की आड में दूसरों का हथियाने नहीं दें गे , उसे विश्व में ‘सार्वजनिक स्थल’ नहीं बनने दें गे? क्यों छोटे मोटे परिवार वादी, घटकवादी नेता बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं को हिन्दू प्रेम के कारण लताड कर चले जाते हैं? केजरीवाल जैसे लोग देश से बहुसंख्यक हिन्दूओं की अनदेखी कर के अल्पसंख्यकों को आँखों पर बैठाते हैं और हिन्दू साम्प्रदायक्ता का गुनाह सिर झुका कर कबूल कर लेते हैं।

बटवारे के पश्चात अगर कोई मुस्लिम कट्टर पंथियों का हर बात में खुले आम समर्थन करे तो वह प्रगतिशील और सच्चा सैक्यूलर माना जाता है लेकिन अगर कोई हिन्दूओं को हिन्दू आस्थाओं के साथ जीने को कहै तो बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ‘साम्प्रदायक’ और ‘दकियानूस’ माने जाते हैं और आज तक भारत माता की जय पुकारने वाले यह ‘स्पूत’ भी अपने हिन्दू प्रेम को साम्प्रदायकता ही मान बैठे हैं। कितनी शर्म की बात है कि जब मुलायम सिहं, लालू प्रसाद और दिग्विजय सिहं जैसे टुच्चे विरोधी उन्हें भगवा आतंकी होने की गालियां सुनाते हैं तो बी जे पी और आर एस एस के नेता शर्म से अपना सिर झुका लेते हैं। गर्व के साथ अपना हिन्दू प्रेम स्वीकारने के बजाये गाली देने वालों को नेहरू, पटेल और जयप्रकाश नारायण के सर्टिफिकेटों का हवाला दे कर कहते हैं कि उन ‘राष्ट्रीय’ नेताओं की नजर में तो वह ‘साम्प्रदायक’ नहीं हैं। नितिश जैसे मुस्लिम प्रस्त को फटकारने के बजाये यही नेता जे डी यू को मनाने के लिये नरेन्द्र मोदी को नकारने के बहाने खोजने में लग जाते हैं। अगर इन्हें अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण ही करते रहना है तो फिर अलग पाकिस्तान बनाने की क्या जरूरत थी? देश की अखण्डता को क्यों नष्ट होने दिया? 

हिन्दू जन्म भूमि का अपमान

हमें अपना सेकूलरज्मि विदेशियों से प्रमाणित करवाने की कोई आवश्यक्ता नहीं। हमें अपने संविधान की समीक्षा करने और बदलने का पूरा अधिकार है। इस में हिन्दूओं के लिये ग्लानि की कोई बात नहीं कि हम गर्व से कहें कि हम हिन्दू हैं। हमें अपनी धर्म हीन धर्म-निर्पेक्षता को त्याग  कर अपने देश को हिन्दू राष्ट्र बनाना होगा ताकि भारत अपने स्वाभिमान के साथ ऐक स्वतन्त्र देश की तरह विकसित हो सके। हमारी जन्म भूमि अन्य लोगों के लिये कोई सार्वजनिक सराय नहीं है कि जो भी आये वह अपना बिस्तर बिछा कर कहै कि अब देश वासी सैलानियों के आदेशानुसार चलें।  

स्नातन धर्म ही ऐक पूर्णत्या मानव धर्म है। समस्त मानव जो प्राकृतिक नियमों तथा स्थानीय परियावरण का आदर करते हुये जियो और जीने दो के सिद्धान्त का इमानदारी से पालन करते हैं वह विश्व में जहाँ कहीं भी रहते हों, सभी हिन्दू हैं। 

तुष्टीकरण की जरूरत नहीं  

अकेले नरेन्द्र मोदी ने ही प्रमाणित किया है कि ‘तुष्टिकरण’ के बिना भी चुनाव जीते जा सकते हैं। दिल्ली में बैठे बी जे पी के नेताओं को कोई संशय नहीं रहना चाहिये कि आज भारत के राष्ट्रवादी केवल मोदी की अगुवाई को ही चाहते हैं। देश के युवा अपनी हिन्दू पहचान को ढूंड रहै हैं जो धर्म निर्पेक्षता के झूठे आवरणों में छुपा दी गयी है। जो नेता इस समय मोदी के साथ नहीं होंगे  वह चाहे बी जे पी के अन्दर हों या बाहर, हिन्दूओं के लिये उन का कोई राजनैतिक अस्तीत्व ही नहीं रहै गा। मनमोहन सोनिया जैसा समीकरण बी जे पी में आडवाणी और सुषमा स्वराज का है। फर्क सिर्फ इतना है कि मनमोहन-सोनिया कामयाब रहै हैं और सुषमा-आडवाणी कामयाब नहीं हों गे। वह अपने साथ बी जे पी को भी ले डूबें गे। जनता सिर्फ नरेन्द्र मोदी को ही चाहती है।

 अभी फिर से बी जे पी में ही सत्ता पाने के लिये हिन्दुत्व को दर किनार करने की आवाजें उठने लगी हैं ताकि सैक्यूलर जिन्ना ब्राण्ड आडवाणी को सत्ता पर बैठाया जा सके। इस से साफ जाहिर है कि बी जे पी के इन गिने चुने नेताओं को केवल सत्ता चाहिये। उन्हें भारतीय संस्कृति, धारा 370 या समान आचार संहिता या देश को ऐक सूत्र में बान्धने आदि से कोई सरोकार नहीं। भारत माता की जय, वन्दे मात्रम आदि सब ढकोसले हिन्दूओं को बातों से ही संतुष्ट करने को चोचले हैं। मर चुके ‘जय चन्द’ को कोसने से कोई फायदा नहीं, उन्हें समझने और पहचानने की ज़रूरत है।

गर्व से कहो हम हिन्दू हैं

बी जे पी की नाव में जो छेद आडवाणी एण्ड कम्पनी ने किये हैं उन में से पानी भरना शुरु हो चुका है। अभी भी वक्त है । फैसला करो “भारत सर्वोपरि के साथ नरेन्द्र मोदी” चाहिये या ‘टोपी-तिलक ब्राण्ड सत्ता के’ लालच में नितिश।

भारत के राष्ट्रवादी युवाओं को चाहिये कि नेताओं की जय जयकार करने और उन्हें फूल मालायें पहनाने से पहले अब इन नेताओं की सक्ष्मता का प्रमाण खुद देखें, परखें, और पहचान करें। जिन घोडों पर बैठ कर रेस में उतरना है कहीं वह लंगडे तो नही! 

बी जे पी  के केवल उन्हीं उमीदवारों पर चुनाव में मतदान कीजिये –

  • जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, स्वामी राम देव के भारत स्वाभिमान, या विश्व हिन्दू परिषद  में से किसी ऐक के एक्टिव सदस्य हों।
  • जो समान आचार संहिता लाने के पक्ष में हों।
  • गर्व के साथ हिन्दी भाषा का प्रयोग करते हों।
  • जिन के परिवार भी पिछले पांच वर्षों से हिन्दू संस्कृति से जुडे दिखाई देते हों।

अगर बी जे पी नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में अपने आत्म-विशवास के साथ अपना ऐजेन्डा ले कर 2014 के चुनाव में उतरे गी तो निश्चय ही विजय हासिल होगी। ऐन डी ऐ के नखरे उठाने की जरूरत नहीं।  अगर बी जे पी ने अब हिन्दुत्व को दर किनार किया तो यह पार्टी की आत्म हत्या होगी और कोई ना कोई हिन्दू संगठन बी जे पी का राजनैतिक स्थान ले ले गा।

चाँद शर्मा

 

दहल गया हैद्राबाद!


यह हमारे मीडिया का कमाल है कि अपने देश की छवि को इस तरह से पैश करना कि लोगों में नकारात्मिक भावनायें, भय और निराश जगाई जाये। सनसनी फैलाई जाये। फिर सारा दिन घिसे हुये ग्रोमोफोन रेकार्ड को दिन भर बार बार बजाया जाये।

रंग भेद का सरकारी नजरिया

अब कम से कम सरकारी रुख से तो ऐसा लगता है कि आतंकवाद से हमारा वास्ता पिछले छ दशकों में शायद पहली बार पडा है। इस लिये सब से पहले तो आतंकवाद का रंग पहचानना चाहिये। क्या आतंकवाद का रंग भगवा, सफेद, लाल या हरा था? हमारी धर्म निर्पेक्षता को सब से ज्यादा खतरा भगवा आतंकवाद से है, क्योंकि इस रंग के ट्रेनिंग केन्द्रों की जानकारी का दावा गृहमन्त्री और अन्य कई केन्द्रीय मन्त्री बार बार कर चुके हैं। भगवा आतंकियों के पास लाठियाँ होती हैं जो ‘आर डी ऐक्स’ से अधिक घातक होती हैं।

धर्म से वास्ता – हमारा देश तो धर्म निर्पेक्ष है – इस लिये सरकार का मानना है कि आतंकवाद भी धर्म निर्पेक्ष होता है। अगर किसी धार्मिक किताब में लिखा है कि ‘जो तुम्हारे धर्म का नहीं उसे कत्ल कर दो, उस के पूजा स्थल को तोड दो’ तो सरकारी धर्म-निर्पेक्ष लोग ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ की ऱाष्ट्रीय धुन ही सुनते सुनाते हैं। अगर आतंकवाद का वास्ता धर्म से नहीं तो फिर किस से है? देश का बटवारा किस आधार पर हुआ था? मरने वाले किस धर्म के लोग थे?

आतंकवाद के रास्ते – सरकारी विचार से हमारे देश के चारों तरफ हमारे ‘मित्र देश’ हैं जिन के साथ आवा जावी की औपचारिकायें जितनी सरल हो सकें उतनी कर देनी चाहियें। अच्छा तो यह होगा कि सीमायें केवल कागजी नक्शों पर ही रहैं बाकी सभी जगह ‘अमन-सेतु’ बनाने चाहियें या ‘समझोता-ऐक्सप्रेस’ चलानी चाहियें। क्रिकेटरो, गजल गायकों और नाच तमाशा करने वालों पर कोई रोक नहीं होनी चाहिये। बजुर्गों, महिलाओं और बच्चों को सीमा के अन्दर घुस आने के बाद वीजा प्रदान करना चाहिये। ऐसा करने से ‘अमन की आशा’ और आतंकवाद ऐक दूसरे का सहारा बन सकें गे।

रटा-रटाया – हमारे नेताओं के मुख से आज पहली बार सुनने को मिला –

  •  “हमें आतंकी गतिविधियों की जानकारी दो दिन पहले से थी।”
  •  प्रधान मन्त्री ने आतंकी हमले की निन्दा की (वैसे किसी की निन्दा-चुगली करना अच्छी बात नहीं)।
  •  प्रधान मन्त्री ने शान्ति बनाये रखने की अपील भी की।
  • “सुरक्षा बढा दी गयी है” ( पहले कम क्यों थी?) ताकि आतंकी उसी जगह दोबारा ना आयें।
  •  मृतकों को लाखों का मुआवजा और घायलों का उपचार मुफ्त (कितना बडा अहसान है)
  •  “घटना की जांच के आदेश दे दिये गये हैं।”
  •  “देश और आतंकवाद सहन नहीं करे गा।”
  • “दोषियों को बख्शा नहीं जाये गा” – (चोरी छिपे फाँसी भी दी जाये गी)
  •  कैण्डल मार्च निकाले जायें गे।
  •  “पाकिस्तान के साथ शान्ति परिक्रिया पर कोई असर नहीं पडे गा।”
  • शायद राहुल गाँधी अमेठी को दौरा करें गे।
  •  “पाकिस्तान हमारा छोटा भाई है”।(मुलायम सिहँ) और
  • बला बला बला….
  • पार्लियामेंन्ट को चलने दिया जाये – देश को पिटने दिया जाये।

गाँधीवादी सहनशीलता – हम ऐक गाल पर थप्पड खा कर दूसरा गाल आगे बढा देते हैं। दूसरे पर थप्पड खा कर भूल जाते हैं कि पहले किस पर थप्पड पडा था इस लिये मुस्किराते हुये दोनों गाल आगे कर देते हैं। यही परमपरा चलती आ रही है।

अब तक बीस धर्म निर्पेक्ष नागरिक मरे और 119 घायल हुये इस लिये आतंकवाद का धर्म से कोई वास्ता नहीं। राजनैता कोई नहीं मरा। अब हम खुशी से गा सकते हैं –

अपनी आजादी को हम अब तो बचा सकते नहीं

सर कटा सकते हैं लेकिन सर उठा सकते नहीं, सर उठा सकते नहीं ।

हम तो पाकिस्तान से रिश्ते निभाते जायें गे, रिश्ते निभाते जायें गे

वोह पीट कर चल दें तो फिर भी हम नहीं शर्मायें गे, हम नहीं शर्मायें गे

जो कोई घुसपैठिया सीमा के अन्दर आये गा, सीमा के अन्दर आये गा

वोह यहाँ का नागरिक ईक दिन में ही बन जाये गा, ईक दिन में ही बन जाये गा

बिरयानियाँ इस देश में उन को खिलाते जायें गे, उन को हँसाते जायें गे

जो सबक बापू ने सिखलाया वोह भुला सकते नहीं

सिर कटा सकते हैं, लेकिन सिर उठा सकते नहीं, सिर उठा सकते नहीं

अपनी आजादी को अब हम तो बचा सकते नहीं।

टा – टटाँ…..

चुनाव नजदीक आ रहै हैं – नेताओं पर फूल बरसने चाहियें या पत्थर – अब किसी ऐक को ही चुनिये।

चाँद शर्मा

ऐ मेरे वतन के लोगो


ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंख में भर लो पानी

जो शहीद हुये हैं उन की जरा याद करो कुर्बानी।

य़ह भावपूर्ण गीत कवि प्रदीप ने लिखा था और इस में भारतीय सैनिकों के साहस, वीरता और देश-प्रेम के साथ साथ उन की दुर्दशा और दुखद अन्त का चित्र भी खींचा था। गीत की आत्मा उस के शब्द हैं जिस के लिये बधाई के ऐकमात्र पात्र कवि प्रदीप हैं।

इस गीत की धुन महान संगीतकार सी रामचन्द्र ने बनाई थी। सर्व प्रथम इस गीत को लता मंगेश्कर ने संवेदन शीलता साथ 27 जनवरी 1963  को नेशनल स्टेडियम में सी रामचन्द्र के लाईव आर्केस्ट्रा के साथ गाया था।

लेकिन अब यह गीत अपनी खूबियों के कारण याद नहीं किया जाता। इस गीत का परिचय केवल यह रह गया है कि इसे सुन कर जवाहरलाल नेहरू रो पडे थे।

पता नहीं कितनी माताये, बहने पत्नियां और बच्चे और भी कई जगहों पर रोये होंगे जिन के घरों के चिराग चीन की सुर्ख आँधी ने बुझा दिये थे। परन्तु वह अब किसी को याद नहीं।

नेहर जी ने संसद को बताया था कि हमारी सैनायें चीन से युद्ध करने को तैय्यार नहीं थी। उन के पास हथियार और साजो सामान नहीं थे। फिर क्यों उन्हें ठिठुरती सर्दी में ऊँचे पर्वतों पर चीनी ड्रैगन के आगे धकेल दिया गया था? क्यों नेहरू जी ने बिना किसी तैय्यारी के थलसैनाध्यक्ष को रक्षा सचिव सरीन के माध्यम से ही ‘Evict the Chinese’ का हुक्म सुना कर खुद कोलम्बो चले गये थे?

लेकिन जो कुछ भी हुआ वह आज भी  भारतीयों के लिये ऐक शर्मनाक याद है। इतिहास इस तथ्य को जानना चाहता है कि 1962 के असली गुनाहगार कौन थे?

सरदार पटेल से ले कर राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद और चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य तक देश के मझे हुये नेता नेहरू को तिब्बत समझोते के विरुध चेतावनी देते रहै लेकिन नेहरू रूपी दुर्योधन ने किसी की बात नहीं सुनी थी। विपक्षी नेता बार बार चीनी अतिकर्मण के बारे में सरकार से सफाई मांगते थे तो नेहरू जी उन्हें भी नकार देते थे। देश की धरती के बारे में उन की क्षद्धा थी ‘Not a blade of grass grows there’. जनरल सैन्य कमियों की दुहाई देते रहै परन्तु 14 नवम्बर 1961 तक नेहरू जी अपने जन्मदिन मनाने में व्यस्त रहै और उन की बातों को अपने लफ्जों से ही उडाते रहै।

इन सब बातों का क्च्चा चिठ्ठा शायद लेफ्टिनेन्ट जनरल हैण्डरसन ब्रुक्स की इन्कवाईरी रिपोर्ट से निकल कर जनता के सामने आ जाता अगर उसे सार्वजनिक नहीं किया गया। लेकिन वह रिपोर्ट पचास साल के बाद भी आजतक गुप्त ही पडी है ताकि चाचा नेहरू की ‘वाह-वाह’ के सहारे उन के वंशज काँग्रसी अपने चुनाव जीतते रहैं।

आज हमारी सैनाओं की जो हालत है वह भी किसी से कोई छिपी नहीं। आफिसर्स की कमी, हथियारों की खरीद के लिये बजट में कटौती आम बात है।

इन सब से अधिक जवानो के पास आज मनोबल की कमी है। जिस देश के नेता दुशमन के साथ दोस्ती कर के उसे गले लगाने की होड में जुटे हों तो उस दुशमन को यह पूरी छूट है वह चाहे तो  हमारे जवानों के सिर काट ले, चाहे उन की लाशों को विक्षिप्त कर दे और चाहे तो किसी भारतीय को बन्दी बना कर पीट पीट कर मार दे।

देश में बेकारी बहुत है लेकिन फिर भी हमारे देश के युवा सैना के आफिसर नहीं बनना चाहते और हमें आफिसर बनाने के लिये क्रिकेटरों आदि को आनरेरी रैंक दे कर सम्मानित करना पडता है।

हमारी सैनाये हर साल अपना शक्ति प्रदर्शन राजपथ पर सैल्यूट दे कर करती हैं। नेताओं की चिता को राजकीय सम्मान के साथ अन्तिम विदाई देती हैं, उन की सुरक्षा के लिये हर सम्भव प्रयत्न करती हैं लेकिन नक्सलवादियों के हाथो…चलो छोडो इन दुखदाई बातों को।

कितना प्यारा गीत है

ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंख में भर लो पानी

जो शहीद हुये हैं उन की जरा याद करो कुर्बानी।

काश नेहरू जी की आँखों में उस दिन आँसुओं के बजाये अगर थोडी शर्म आ गयी होती तो आज हमारी दशा कुछ बेहतर होती।

कांग्रेस की युद्धनीति  

‘गांधीगिरी से देश और देश के स्वाभिमान की रक्षा’।

अगर कोई हमेरे सैनिकों को सीमा पर मार डाले या सीमाओं के अन्दर ही उन को अपमालित कर के मारे, पीटे और अपमानिक करे तो –

  • हम आक्रान्ताओं को बतायें गे कि अब हम और ‘मार’ या ‘अपमान’ सहन नहीं कर सकें गे।
  • कडे ‘शब्दों में लपेट कर’ विरोध प्रगट करें गे, निन्दा करें गे, खेद प्रगट करें गे।
  • मृतक सैनिकों के परिवारों को दस दस लाख तक की राशि ‘ब्लडमनी’ के तौर पर भेन्ट करने की घोषणा करें गे ।
  • नेताओं की जगह अपने सैनाध्यक्षों को लाशों पर या मृत के परिवार के घर जा कर श्रद्धांजली देने भेजें गे।
  • कैण्डल मार्च निकालें गे।
  • अन्य देशों को ‘अपने पिटने के सबूत’ दिखायें गे
  • शत्रु देशों के साथ ‘सदभावना’ बनाये रखने के लिये बातचीत जारी रखें गे।
  • अपने विपक्ष से कहें गे कि ‘इन मुद्दों पर राजनीति ना करी जाये’।
  • और उस के बाद अगली घटना का इन्तिजार करते करते थोडा सा सुस्ता भी लें गे।
  • फिर अगला ‘शो’ भी उसी तरह से ‘रिपीट’ करें गे।

और ताली बजा बजा कर गेयें गे – ‘उन्हें वीरता के बहाने मुबारिक, हमें हीजड़े अब रास आ गये हैं’।

चाँद शर्मा

26-9-13

साम्बा कथूआ नगर की पुलिस चौकी और सैनिक छावनी में आतंकी हमला हुआ, चार जवान और अन्य दो भारतीय शहीद हो गये, शायद दो आतंकी भी मारे गये हैं। अब गांधी गिरी शुरू हो चुकी है। नेताओं के बयान आने शुरु हो गये हैः-

आतंक वाद और बरदाशत नहीं किया जाये गा। पाकिस्तान आतंकियों पर लगाम लगाये (हम अहिंसावादी भारतीय नहीं लगा सकते)।  दिखनेवाले भारत के प्रधान मंत्री नवाजशरीफ के आगे अपना पक्ष रखें गे,…जवानों की लाशें उन के परिजनों के पास अनुदान राशि के साथ भेज दी जायें गी। कुछ जाने पहचाने पेशेवर बहस खोर टीवी चैनलों पर बहस भी करें गे और उस के बाद फिर यह देश और मीडिया इशरतजहाँ और सोहराबुदीन जैसे नामी आतंकियों को मरणोपरांत इनसाफ दिलाने में लग जाये गा – वोट खराब नहीं हों इस लिये जिन कर्मठ पुलिस कर्मियों ने उन आतंकियों का मारा था उन्हें गुनाहों की सजा देनी हो गी।

यह तो हमारा जाना पहचाना कार्यक्रम है। मीडिया को अभी प्राथमिकता के साथ यह भी बहसना है कि आडवाणी और नरेन्द्र मोदी के आपसी रिशतों में अभी कितनी दूरी बाकी है। नरेन्द्र मोदी ने आडवाणी का घुटनों तक ही हाथ लगाये थे वह आडवाणी के पैरों तक नहीं पहुँचे थे।

ऐक बुझी हुई मोम बत्ती से तो रौशनी की उमीद लगाई जा सकती है लेकिन क्या मनमोहन सिहं और सलमान खुर्शीद से यह उमीद करी जा सकती है कि वह अमेरिका में नवाज शरीफ से बात चीत करे बिना स्वदेश लौट आयें और पाकिस्तान के खिलाफ कोई कडी कारवाई करें। सरकार को अपने दागी नेताओं को भी संसद और विधान सभाओं में फिर से प्रतिष्टित करना है। यह काम तो  शहीद जवानों की अन्तेष्टी होने से पहले करने पडें गे।

देश वासियो – अगर आप को अपने जवानों और परिवारों की सुरक्षा का कुछ भी विचार है तो देश को कांग्रेस मुक्त कर दो –  देश को  आतंकवाद मुक्त करने के मार्ग खुलने शुरु हो जायें गे।

जो शहीद हुये हैं उन की लाशों पे ना डालो पानी…

टैग का बादल