काँग्रेस ने देश का तीन हथियारों से विनाश किया है।
पहला विनाश – विकास के नाम गाँधी-नेहरू परिवारों के नाम पर योजनायें तैयार हो जाती रही हैं और फिर कुछ समय बाद ही उन योजनाओं में से घोटाले और जाँच कमेटियाँ आदि शुरु होती रही हैं। भ्रष्टाचार सभी तरह के विकास योजनाओं को निगलता रहा है। मीडिया कुछ दिन तक ढोल पीटता है, जाने पहचाने बुद्धिजीवी टीवी पर बहस करते हैं, कुछ गिरफतारियाँ होती हैं, अपराधी जमानतों पर छूट जाते हैं और चींटी की चाल से अदालतों में केस रैंगने लगते हैं। लम्बे अरसे के बाद ज्यादातर आरोपी सबूतों के अभाव के कारण छूट जाते हैं।
दूसरा विनाश तुष्टीकरण के नाम पर किया है। अल्प संख्यकों, दलितों, महिलाओं, विकलांगों, वरिष्ट नागरिकों, किसानों, उग्रवादियों तथा ‘स्वतन्त्रता सैनानियों’ के नाम पर कई तरह की पुनर्वास योजनायें, स्शकतिकरण कानून, विशेष अदालतें, वजीफे, सबसिडिज, कोटे, बनाये जाते रहै हैं। आरक्षण के बहाने समाज को बाँटा है, भ्रष्टाचार के रास्ते खोलने के लिये कई कानूनों में भारी छूट दी है। इन सब कारणों से समाज के अंग मुख्य धारा से टूट कर अलग अलग टोलियों में बटते रहै हैं।
तीसरा विनाश बाहरी शक्तियों के तालमेल से किया है। पाकिस्तानी और बंगलादेशी घुसपैठियों के अतिरिक्त नेपाल, तिब्बत और श्रीलंका से शर्णार्थी यहाँ आकर कई वर्षों से बसाये गये हैं। जिन के खाने खर्चे का बोझ भी स्थानीय लोग उठाते हैं। मल्टीनेशनल कम्पनियाँ अपने व्यापारिक लाभ उठा रही हैं। बडे शहरों में अविकसित राज्यों से आये बेरोजगार परिवार सरकारी जमीनो पर झुग्गियाँ डाल कर बैठ जाते हैं, मुफ्त में बिजली पानी सिर्फ इस्तेमाल ही नहीं करते बल्कि उसे वेस्ट भी करते हैं। फिर ‘ गरीबी हटाओ ’ के नारे के साथ कोई नेता उन्हें अपना निजि वोट बैंक बना कर उन्हें अपना लेता है और इस तरह शहरी विकास की सभी योजनायें अपना आर्थिक संतुलन खो बैठती हैं। अंत में य़ह सभी लोग ऐक वोट बैंक बन कर काँग्रेस को सत्ता में बिठा कर अपना अपना ऋण चुका देते हैं।
उमीद किरण को ग्रहण
काँग्रेस के भ्रष्टाचार से तंग आकर स्वामी रामदेव ने भारत स्वाभिमान आन्दोलन के माध्यम से देश में योग, स्वदेशी वस्तुओं के प्रति जाग़ृति, शिक्षा पद्धति में राष्ट्रभाषा का प्रयोग, विदेशों में भ्रष्ट नेताओं के काले धन की वापसी और व्यवस्था परिवर्तन आदि विषयों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चेतना की ऐक लहर पैदा करी। उन के प्रयास को विफल करने के लिये काँग्रेस ने अन्ना हजारे और केजरीवाल को भ्रष्टाचार के विरूद्ध नकली योद्धा के तौर पर खडा करवा दिया। काँग्रेस तो अपना वर्चस्व खो ही चुकी है इस लिये काँग्रेसियों के सहयोग से अब नये शासक आम आदमी के नाम से खडे हो चुके हैं जो स्वामी रामदेव और नरेन्द्र मोदी का विरोध करें गे। भ्रष्टाचार से लडने के लिये जनलोक पाल का ऐक सूत्री ऐजेंडा ले कर भेड चाल में बरगलाये गये युवा, स्वार्थी और दलबदलू नेता अब आम आदमी पार्टी की स्दस्यता पाने की दौड में जुट रहै हैं। वास्तव में यह लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध नहीं बल्कि देश की संस्कृति की पहचान की रक्षा करने वाले स्वामी रामदेव, विकास पुरुष नरेन्द्र मोदी और आम आदमी के खिलाफ ही लडें गे और देश को आर्थिक गुलामी और आराजिक्ता की तरफ धकेल दें गे।
‘AAP’ के नेताओं की नीयत और नीति
अमेरिका और उस के सहयोगी योरोपीय देश नहीं चाहते कि भारत विकसित होकर आधुनिक महा शक्ति बने और उन का प्रति स्पर्द्धी बन जाये। वह भारत को ऐक साधारण, गरीब और दया पर जीने वाला देश ही बने रहना चाहते है ताकि यह देश अपनी सँस्कृति से दूर उन्ही देशों का पिछलग्गू बना रहै, और ऐक अन्तरराष्ट्रीय मण्डी या सराय बन जाये जहाँ विदेशी मौज मस्ती के लिये आते जाते रहैं। भारत के ‘आम आदमियों ’ की आकाँक्षायें केवल अपनी शरीरिक जरूरतों को पूरा करने में ही सिमटीं रहैं।
अनुभव के आभाव में केजरीवाल और उन के मंत्री पंचायती सूझबूझ ही भारत की राजधानी का शासन चला रहै हैं। कल को यही तरीका राष्ट्रीय सरकार को चलाने में भी इस्तेमाल करें गे तो यह देश ऐक बहुत बडा आराजिक गाँव बन कर रह जाये गा जिस में अरेबियन नाईटस के खलीफों की तरह सरकारी नेता, कर्मचारी भेष बदल आम आदमी की समस्यायें हल करने के लिये कर घूमा करें गे। उन की लोक-लुभावन नीतियाँ भारत को महा शक्ति नहीं – मुफ्तखोरों का देश बना दें गी जहाँ ‘आम आदमी ’ जानवरों की तरह खायें-पियें गे, बच्चे पैदा करें और मर जायें – यह है ‘AAP’ की अदूरदर्शी नीति।
केवल खाने पीने और सुरक्षा के साथ आराम करना, बच्चे पैदा करना और मर जाना तो जानवर भी करते हैं परन्तु उन का कोई देश या इतिहास नहीं होता। लेकिन कोई भी देश केवल ‘आम आदमियों ’ के बल पर महा शक्ति नहीं बन सकता। ‘आम आदमियों ’ के बीच भी खास आदमियों, विशिष्ठ प्रतिभाओं वाले नेताओं की आवशक्ता होती है। जो मानव शरीरिक आवशयक्ताओं की पूर्ति में ही अपना जीवन गंवा देते हैं। उन के और पशुओं के जीवन में कोई विशेष अन्तर नहीं रहता।
फोकट मे जीना
लडकपन से अभी अभी निकले आम आदमी पार्टी के नेता यह नहीं जानते कि हमारे पूर्वजों ने मुफ्त खोरी के साथ जीने को कितना नकारा है और पुरुषार्थ के साथ ही कुछ पाने पर बल दिया है। आज से हजारों वर्ष पूर्व जब अमेरिका तथा योरुपीय विकसित देशों का नामोनिशान भी कहीं नहीं था भारत के ऋषि मनु ने अपने विधान मे कहा थाः-
यत्किंचिदपि वर्षस्य दापयेत्करसंज्ञितम्।
व्यवहारेण जीवंन्तं राजा राष्ट्रे पृथग्जनम्।।
कारुकाञ्छिल्पिनश्चैव शूद्रांश्चात्मोपजीविनः।
एकैकं कारयेत्कर्म मसि मसि महीपतिः ।। (मनु स्मृति 7- 137-138)
राजा (सभी तरह के प्रशासक) अपने राज्य में छोटे व्यापार से जीने वाले व्यपारियों से भी कुछ न कुछ वार्षिक कर लिया करे। कारीगरी का काम कर के जीने वाले, लोहार, बेलदार, और बोझा ढोने वाले मज़दूरों से कर स्वरुप महीने में एक दिन का काम ले।
नोच्छिन्द्यात्मनो मूलं परेषां चातितृष्णाया।
उच्छिन्दव्ह्यात्मनो मूलमात्मानं तांश्च पीडयेत्।।
तीक्ष्णश्चैव मृदुश्च स्यात्कार्यं वीक्ष्य महीपतिः।
तीक्ष्णश्चैव मृदुश्चैव राजा भवति सम्मतः ।। (मनु स्मृति 7- 139-140)
(प्रशासन) कर न ले कर अपने मूल का उच्छेद न करे और अधिक लोभ वश प्रजा का मूलोच्छेदन भी न करे क्यों कि मूलोच्छेद से अपने को और प्रजा को पीड़ा होती है। कार्य को देख कर कोमल और कठोर होना चाहिये। समयानुसार राजा( प्रशासन) का कोमल और कठोर होना सभी को अच्छा लगता है।
अतीत काल में लिखे गये मनुसमृति के यह श्र्लोक आजकल के उन नेताओं के लिये अत्यन्त महत्वशाली हैं जो चुनावों से पहले लेप-टाप, मुफ्त बिजली-पानी, और तरह तरह के लोक लुभावन वादे करते हैं और स्वार्थवश बिना सोचे समझे देश के बजट का संतुलन बिगाड देते हैं। अगर उन्हें जनता का आवशक्ताओं का अहसास है तो सत्ता समभालने के समय से ही जरूरी वस्तुओं का उत्पादन बढायें, वितरण प्रणाली सें सुधार करें, उन वस्तुओं पर सरकारी टैक्स कम करें नाकि उन वस्तुओं को फोकट में बाँट कर, जनता को रिशवत के बहाने अपने लिये वोट संचय करना शुरु कर दें। अगर लोगों को सभी कुछ मुफ्त पाने की लत पड जाये गी तो फिर काम करने और कर देने के लिये कोई भी व्यक्ति तैयार नहीं होगा।
सिवाय भारत के आजकल पानी और बिजली जैसी सुविधायें संसार मे कहीं भी मुफ्त नहीं मिलतीं। उन्हें पैदा करने, संचित करने और फिर दूरदराज तक पहुँचाने में, उन का लेखा जोखा रखने में काफी खर्चा होता है। अगर सभी सुविधायें मुफ्त में देनी शुरू हो जायें गी तो ऐक तरफ तो उन की खपत बढ जाये गी और दूसरी तरफ सरकार पर बोझ निरंकुशता के साथ बडने लगे गा। क्या जरूरी नहीं कि इस विषय पर विचार किया जाये और सरकारी तंत्र की इस सार्वजनिक लूट पर अंकुश लगाया जाये। अगर ऐसा नहीं किया गया तो फोकट मार लोग देश को दीमक की तरह खोखला करते रहैं गे और ऐक दिन चाट जायें गे।
आरक्षण और सबसिडी आदि दे कर इलेक्शन तो जीता जा सकता है परन्तु वह समस्या का समाधान नहीं है। इस प्रकार की बातें समस्याओं को और जटिल कर दें गी। इमानदार और मेहनत से धन कमाने वालों को ही इस तरह का बोझा उठाना पडे गा जो कभी कम नहीं होगा और बढता ही जाये गा।
चाँद शर्मा
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