हिन्दू धर्म वर्तमान राजनैतिक परिपेक्ष में

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भेड़-चाल


दिल्ली में ‘AAP’ की सरकार है जिन्हों ने जनता के सामने बहुत बड़े बड़े वादे किये थे –

  • क्या सरकार के मंत्री छोटे बंगलों में रहने का दिखावा करने से ही आम आदमियों की समस्यायें सुलझ जायें गी?
  • क्या सरकार के मंत्री सुरक्षा नहीं लें गे तो आप का निजि सुरक्षा अपने आप बढ़ जाये गी? क्या अब दिल्ली में रेप मर्डर आदि होने बन्द हो गये हैं?
  • क्या दिल्ली में 500 नये स्कूल खुल गये हैं?
  • क्या दिल्ली के झुग्गी वालों को पक्के मकान मिल गये हैं? वहाँ पर बिजली पानी पहुँच गया है? क्या दिल्ली में अब नयी झुग्गियाँ नहीं बने गी?
  • क्या दिल्ली में बिजली की दरें आधी हो गयी हैं?
  • क्या दिल्ली में प्रत्येक घर को 700 लिटर मुफ्त पानी प्रतिदिन मिल रहा है?
  • क्या दिल्ली के मंत्रियों के जनता दरबारों में जनता की फरियाद पर समाधान मिल रहा है? फरियादों के आँकडे तो हैं समाधान के आँकडे कहाँ हैं ?
  • क्या दिल्ली भ्रष्टाचार मुक्त हो गयी है?
  • क्या ‘AAP’ की सरकार काँग्रेस और बी जे पी को समान दूरी पर रख रही है?
  • क्या अन्य देशों में प्रजातान्त्रिक सरकारें स्टिंग आप्रेशनों से चलती हैं?

नहीं इन में से कुछ भी तो नहीं हुआ !

राष्ट्रीय समस्याओं को सुलझाने के विषय में इस छोकरा गुट के पास कोई सोच, विचारधारा, दृष्टीकोण, संगठन, अनुभव या योग्यता आदि कुछ भी तो नही ! दिशाहीन भीड़ सरकार नहीं चला सकती। ऐक भेड के पीछे चलती हुयी सभी भेडें कुयें में जा गिरती हैं।

अगर किसी बन्दर को किसी विशाल मशीन पर बैठा दिया जाय तो जैसे वह मशीन के कल पुरज़ों के साथ छेड छाड कर के देखता है उसी तरह सिर्फ कुछ अनुभव हीन छोकरों का ऐक गुट सरकारी सत्ता के गलियारों पर जम गया है और उल्टे सीधे तरीकों से प्रशासन को टटोल रहा है – शायद कुछ चल पडें।

क्या हम देश की प्रगति को रोक कर उसे अस्थिरता और आराजिक्ता की तरफ मोडने का जोखिम उठा सकते हैं।

अगर नहीं तो देश को इस वक्त स्शक्त नेतृत्व और स्थिर राष्ट्रवादी सरकार की आवश्यक्ता है जो आज केवल नरेन्द्र मोदी ही दे सकते हैं। उन्हें बार बार परखा जा चुका है।

राष्ट्रवादी, भारतीय संस्कृति से जुडी हुयी तथा परिवार क्षेत्रवाद और मार्क्सवाद से दूर केवल भारतीय जनता पार्टी ही देश को ऐकता और सुरक्षा दे सकती है। भारत स्वाभिमान और स्वदेशी गौरव को पुनर्स्थापित कर सकती है। जिस को विशवास ना हो वह गुजरात, मध्यप्रदेश, गोवा, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जा कर देख ले।

अब अस्थिरता, अनुभवहीनता या छोकरा मस्ती करने का समय नहीं है। ‘AAP’ की असलीयत देखी जा चुकी है। इस के पीछे छुपे हुये चेहरे भी ऐक के बाद ऐक सामने आ रहै हैं।

चाँद शर्मा

काँग्रेसी दीमक का प्रकोप


काँग्रेस ने देश का तीन हथियारों से विनाश किया है।

पहला विनाश – विकास के नाम गाँधी-नेहरू परिवारों के नाम पर योजनायें तैयार हो जाती रही हैं और फिर कुछ समय बाद ही उन योजनाओं में से घोटाले और जाँच कमेटियाँ आदि शुरु होती रही हैं। भ्रष्टाचार सभी तरह के विकास योजनाओं को निगलता रहा है। मीडिया कुछ दिन तक ढोल पीटता है, जाने पहचाने बुद्धिजीवी टीवी पर बहस करते हैं, कुछ गिरफतारियाँ होती हैं, अपराधी जमानतों पर छूट जाते हैं और चींटी की चाल से अदालतों में केस रैंगने लगते हैं। लम्बे अरसे के बाद ज्यादातर आरोपी सबूतों के अभाव के कारण छूट जाते हैं।

दूसरा विनाश तुष्टीकरण के नाम पर किया है। अल्प संख्यकों, दलितों, महिलाओं, विकलांगों, वरिष्ट नागरिकों, किसानों, उग्रवादियों तथा ‘स्वतन्त्रता सैनानियों’ के नाम पर कई तरह की पुनर्वास योजनायें, स्शकतिकरण कानून, विशेष अदालतें, वजीफे, सबसिडिज, कोटे, बनाये जाते रहै हैं। आरक्षण के बहाने समाज को बाँटा है, भ्रष्टाचार के रास्ते खोलने के लिये कई कानूनों में भारी छूट दी है। इन सब कारणों से समाज के अंग मुख्य धारा से टूट कर अलग अलग टोलियों में बटते रहै हैं।

तीसरा विनाश बाहरी शक्तियों के तालमेल से किया है। पाकिस्तानी और बंगलादेशी घुसपैठियों के अतिरिक्त नेपाल, तिब्बत और श्रीलंका से शर्णार्थी यहाँ आकर कई वर्षों से बसाये गये हैं। जिन के खाने खर्चे का बोझ भी स्थानीय लोग उठाते हैं। मल्टीनेशनल कम्पनियाँ अपने व्यापारिक लाभ उठा रही हैं।  बडे शहरों में अविकसित राज्यों से आये बेरोजगार परिवार सरकारी जमीनो पर झुग्गियाँ डाल कर बैठ जाते हैं, मुफ्त में बिजली पानी सिर्फ इस्तेमाल ही नहीं करते बल्कि उसे वेस्ट भी करते हैं। फिर ‘ गरीबी हटाओ ’ के नारे के साथ कोई नेता उन्हें अपना निजि वोट बैंक बना कर उन्हें अपना लेता है और इस तरह शहरी विकास की सभी योजनायें अपना आर्थिक संतुलन खो बैठती हैं। अंत में य़ह सभी लोग ऐक वोट बैंक बन कर काँग्रेस को सत्ता में बिठा कर अपना अपना ऋण चुका देते हैं।

उमीद किरण को ग्रहण                                                   

काँग्रेस के भ्रष्टाचार से तंग आकर स्वामी रामदेव ने भारत स्वाभिमान आन्दोलन के माध्यम से देश में योग, स्वदेशी वस्तुओं के प्रति जाग़ृति, शिक्षा पद्धति में राष्ट्रभाषा का प्रयोग, विदेशों में भ्रष्ट नेताओं के काले धन की वापसी और व्यवस्था परिवर्तन आदि विषयों को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर चेतना की ऐक लहर पैदा करी। उन के प्रयास को विफल करने के लिये काँग्रेस ने अन्ना हजारे और केजरीवाल को भ्रष्टाचार के विरूद्ध नकली योद्धा के तौर पर खडा करवा दिया। काँग्रेस तो अपना वर्चस्व खो ही चुकी है इस लिये काँग्रेसियों के सहयोग से अब नये शासक आम आदमी के नाम से खडे हो चुके हैं जो स्वामी रामदेव और नरेन्द्र मोदी का विरोध करें गे। भ्रष्टाचार से लडने के लिये जनलोक पाल का ऐक सूत्री ऐजेंडा ले कर भेड चाल में बरगलाये गये युवा, स्वार्थी और दलबदलू नेता अब आम आदमी पार्टी की स्दस्यता पाने की दौड में जुट रहै हैं। वास्तव में यह लोग भ्रष्टाचार के विरुद्ध नहीं बल्कि देश की संस्कृति की पहचान की रक्षा करने वाले स्वामी रामदेव, विकास पुरुष नरेन्द्र मोदी और आम आदमी के खिलाफ ही लडें गे और देश को आर्थिक गुलामी और आराजिक्ता की तरफ धकेल दें गे।

‘AAP’ के नेताओं की नीयत और नीति

अमेरिका और उस के सहयोगी योरोपीय देश नहीं चाहते कि भारत विकसित होकर आधुनिक महा शक्ति बने और उन का प्रति स्पर्द्धी बन जाये। वह भारत को ऐक साधारण, गरीब और दया पर जीने वाला देश ही बने रहना चाहते है ताकि यह देश अपनी सँस्कृति से दूर उन्ही देशों का पिछलग्गू बना रहै, और ऐक अन्तरराष्ट्रीय मण्डी या सराय बन जाये जहाँ विदेशी मौज मस्ती के लिये आते जाते रहैं। भारत के ‘आम आदमियों ’ की आकाँक्षायें केवल अपनी शरीरिक जरूरतों को पूरा करने में ही सिमटीं रहैं।

अनुभव के आभाव में केजरीवाल और उन के मंत्री पंचायती सूझबूझ ही भारत की राजधानी का शासन चला रहै हैं। कल को यही तरीका राष्ट्रीय सरकार को चलाने में भी इस्तेमाल करें गे तो यह देश ऐक बहुत बडा आराजिक गाँव बन कर रह जाये गा जिस में अरेबियन नाईटस के खलीफों की तरह सरकारी नेता, कर्मचारी भेष बदल आम आदमी की समस्यायें हल करने के लिये कर घूमा करें गे। उन की लोक-लुभावन नीतियाँ भारत को महा शक्ति नहीं – मुफ्तखोरों का देश बना दें गी जहाँ ‘आम आदमी ’ जानवरों की तरह खायें-पियें गे, बच्चे पैदा करें और मर जायें – यह है ‘AAP’ की अदूरदर्शी नीति।

केवल खाने पीने और सुरक्षा के साथ आराम करना, बच्चे पैदा करना और मर जाना तो जानवर भी करते हैं परन्तु उन का कोई देश या इतिहास नहीं होता। लेकिन कोई भी देश केवल ‘आम आदमियों ’ के बल पर महा शक्ति नहीं बन सकता। ‘आम आदमियों ’ के बीच भी खास आदमियों, विशिष्ठ प्रतिभाओं वाले नेताओं की आवशक्ता होती है। जो मानव शरीरिक आवशयक्ताओं की पूर्ति में ही अपना जीवन गंवा देते हैं। उन के और पशुओं के जीवन में कोई विशेष अन्तर नहीं रहता।

फोकट मे जीना

लडकपन से अभी अभी निकले आम आदमी पार्टी के नेता यह नहीं जानते कि हमारे पूर्वजों ने मुफ्त खोरी के साथ जीने को कितना नकारा है और पुरुषार्थ के साथ ही कुछ पाने पर बल दिया है। आज से हजारों वर्ष पूर्व जब अमेरिका तथा योरुपीय विकसित देशों का नामोनिशान भी कहीं नहीं था भारत के ऋषि मनु ने अपने विधान मे कहा थाः-

यत्किंचिदपि वर्षस्य दापयेत्करसंज्ञितम्।

व्यवहारेण जीवंन्तं राजा राष्ट्रे पृथग्जनम्।।

कारुकाञ्छिल्पिनश्चैव शूद्रांश्चात्मोपजीविनः।

एकैकं कारयेत्कर्म मसि मसि महीपतिः ।। (मनु स्मृति 7- 137-138)

राजा (सभी तरह के प्रशासक) अपने राज्य में छोटे व्यापार से जीने वाले व्यपारियों से भी कुछ न कुछ वार्षिक कर लिया करे। कारीगरी का काम कर के जीने वाले, लोहार, बेलदार, और बोझा ढोने वाले मज़दूरों से कर स्वरुप महीने में एक दिन का काम ले।

नोच्छिन्द्यात्मनो मूलं परेषां चातितृष्णाया।

उच्छिन्दव्ह्यात्मनो मूलमात्मानं तांश्च पीडयेत्।।

तीक्ष्णश्चैव मृदुश्च स्यात्कार्यं वीक्ष्य महीपतिः।

तीक्ष्णश्चैव मृदुश्चैव राजा भवति सम्मतः ।। (मनु स्मृति 7- 139-140)

(प्रशासन) कर न ले कर अपने मूल का उच्छेद न करे और अधिक लोभ वश प्रजा का मूलोच्छेदन भी न करे क्यों कि मूलोच्छेद से अपने को और प्रजा को पीड़ा होती है। कार्य को देख कर कोमल और कठोर होना चाहिये। समयानुसार राजा( प्रशासन) का कोमल और कठोर होना सभी को अच्छा लगता है।

अतीत काल में लिखे गये मनुसमृति के यह श्र्लोक आजकल के उन नेताओं के लिये अत्यन्त महत्वशाली हैं जो चुनावों से पहले लेप-टाप, मुफ्त बिजली-पानी, और तरह तरह के लोक लुभावन वादे करते हैं और स्वार्थवश बिना सोचे समझे देश के बजट का संतुलन बिगाड देते हैं। अगर उन्हें जनता का आवशक्ताओं का अहसास है तो सत्ता समभालने के समय से ही जरूरी वस्तुओं का उत्पादन बढायें, वितरण प्रणाली सें सुधार करें, उन वस्तुओं पर सरकारी टैक्स कम करें नाकि उन वस्तुओं को फोकट में बाँट कर, जनता को रिशवत के बहाने अपने लिये वोट संचय करना शुरु कर दें। अगर लोगों को सभी कुछ मुफ्त पाने की लत पड जाये गी तो फिर काम करने और कर देने के लिये कोई भी व्यक्ति तैयार नहीं होगा।

सिवाय भारत के आजकल पानी और बिजली जैसी सुविधायें संसार मे कहीं भी मुफ्त नहीं मिलतीं। उन्हें पैदा करने, संचित करने और फिर दूरदराज तक पहुँचाने में, उन का लेखा जोखा रखने में काफी खर्चा होता है। अगर सभी सुविधायें मुफ्त में देनी शुरू हो जायें गी तो ऐक तरफ तो उन की खपत बढ जाये गी और दूसरी तरफ सरकार पर बोझ निरंकुशता के साथ बडने लगे गा। क्या जरूरी नहीं कि इस विषय पर विचार किया जाये और सरकारी तंत्र की इस सार्वजनिक लूट पर अंकुश लगाया जाये। अगर ऐसा नहीं किया गया तो फोकट मार लोग देश को दीमक की तरह खोखला करते रहैं गे और ऐक दिन चाट जायें गे।

आरक्षण और सबसिडी आदि दे कर इलेक्शन तो जीता जा सकता है परन्तु वह समस्या का समाधान नहीं है। इस प्रकार की बातें समस्याओं को और जटिल कर दें गी। इमानदार और मेहनत से धन कमाने वालों को ही इस तरह का बोझा उठाना पडे गा जो कभी कम नहीं होगा और बढता ही जाये  गा।

 चाँद शर्मा

 

त्रिशंकु चुनावी नतीजे


बिना परिश्रम अगर कुछ प्राप्त हो जाये तो उस की कीमत नहीं आंकी जाती। यह बात हमारे लोकतन्त्र और मत देने के अधिकार के साथ भी सार्थक है। कहने को दिल्ली में 68 प्रतिशत मत दान हुआ जो पिछले चुनावों से ज्यादा है लेकिन इस से कहीं ज्यादा मत दान दूसरे राज्यों में हुआ है। देश की राजधानी से 32 प्रतिशत पढे लिखे और जागरूक मत दाता वोट डालने नहीं गये क्यों कि उन्हें लोकतंत्र के बजाये आराम करना ज्यादा पसंद था। अगर दिल्ली में आज त्रिशंकु विधान सभा है तो उस के लिये दिल्ली के मतदाता जिम्मेदार हैं जो अपने वोट का महत्व नहीं समझे और भ्रामित रहै हैं। प्रजातंत्र को सफल बनाने के लिये वोटरों में जागरुक्ता होनी चाहिये । जो मतदाता दो मुठ्ठी अनाज और ऐक बोतल शराब पर बिक जायें उन्हें तो मत दान का अधिकार ही नहीं होना चाहिये। हमारे देश की दुर्दशा का ऐक मुख्य कारण अधिक और अनाधकृत मतदाता हैं। ऐसे नेता चुन कर आते हैं जिन्हें बाहर से ताला लगा कर रखना पडता है कि वह दूसरे राजनैतिक दल के पास बिक ना जायें – ऐसे प्रजातंत्र पर शर्म आनी चाहिये।

लोकतन्त्र के मापदण्ड

अगर कोई भी राजनैतिक दल विधानसभा या संसद के चुनाव में 51 प्रतिशत से कम प्रत्याशी खडे करता है तो ऩिशचित है कि वह सरकार नहीं चलायें गे। वह केवल विजयी उमीदवारों के बलबूते पर सिर्फ जोड-तोड ही करें गे। यही बात स्वतन्त्र प्रत्याशियों पर भी लागू होती है। उन की निजि योग्यता और लोकप्रियता चाहे कुछ भी हो लेकिन सफल हो कर वह अपने आप को बेच कर पैसा कमाने या कोई पद प्राप्त करने के इलावा जनता के लिये कुछ नहीं कर सकते। उन्हें वोट देना ही बेकार है। लोकतंत्र में राजनैतिक दलों का महत्व है क्यों कि उन के पास संगठन, सोच, अनुशासन और जवाबदारी होती है।

केवल विरोध के नकारात्मिक मुद्दे पर संगठन खडा कर के देश का शासन नहीं चलाया जा सकता। ऐमरजैंसी के बाद जनता पार्टी सिर्फ इन्दिरा गाँधी के विरोध के आधार पर ही गठित करी गयी थी जिस में मुलायम, नितिश, लालू, राजनारायण, चरण सिहं, बहुगुणा, वाजपायी, जगजीवनराम से ले कर हाजी मस्तान आदि तक सभी शामिल थे। तीन वर्ष के समय में ही जनता पार्टी अपने अन्तर-विरोधों के कारण बिखर गयी थी और आज उसी पार्टी के बिखरे हुये टुकडे कई तरह के जनता दलों के नाम से परिवारवाद और व्यक्तिवाद को बढावा दे रहै हैं। आम आदमी पार्टी भी कोई संगठित पार्टी नहीं बल्कि सिर्फ भ्रष्टाचार के विरुध जनता के रोष का प्रतीक है जिस के पास सिर्फ ऐक मात्र मुद्दा है जनलोकपाल बिल पास करवाना और सत्ता में बैठना। इस से आगे देश की दूसरी समस्याओं और उन के समाधान के बारे में नीतियों के बारे में उन के पास कोई सकारात्मिक सोच, संगठन, आदर्श, अनुभव या टेलेन्ट नहीं है। जैसे गलियों से आकर हताश लोगों की भीड चौराहों पर भ्रष्टाचार के विरूध नारे लगाने लग जाती है तो अगले चौराहे पर जाते जाते भीड का स्वरूप भी घटता बढता रहता है। उन को संगठित रखने का कोई भी ऐक मात्र मुद्दा भारत जैसे देश का शासन नहीं चला सकता। शासक के लिये कुछ गुण भी चाहियें। शालीनता, गम्भीरता, योग्यता और अनुभव आदि आम आदमी पार्टी के सदस्यों में बिलकुल ही नहीं दिख रहै। यह केवल उग्रवादी युवाओं का अनुभवहीन नकारात्मिक जमावडा है जो सत्ता मिलने पर ऐक माफिया गुट का रूप ले ले गा।

आम आदमी पार्टी की परीक्षा

दिल्ली के 68 प्रतिशत मतदाताओं ने बी जे पी को ही स्पष्ट मत से सब से बडी पार्टी माना है। केजरीवाल ने दिल्ली का चुनाव काँग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ा था इसलिये त्रिशंकु विधान सभा बनने की सूरत में वह काँग्रेस को समर्थन नहीं दे सकते लेकिन उन से बिना शर्त समर्थन ले तो सकते हैं। सकारात्मिक राजनीति करने के लिये उन्हें बी जे पी को समर्थन देना चाहिये था – और सरकार के अन्दर रह कर या बाहर से सरकार के भ्रष्टाचार पर नजर रखनी चाहिये थी। लेकिन केजरीवाल ने तो नकारात्मिक राजनीति करनी है इसलिये वह दोबारा चुनाव के लिये तैय्यार है जिस का खर्च दिल्ली के लोगों पर पडे गा।

अगर केजरीवाल स्वयं सरकार नहीं बना सकता तो चाहे तो काँग्रेस से समर्थन ले ले या बी जे पी से – सरकार बना कर अपना कुछ ऐजेण्डा तो पूरा कर के दिखायें। दिल्ली से भ्रष्टाचार खत्म करना, नागरिक सुरक्षा, महंगाई, बिजली – पानी के रेट कम करना आदि पर तो कुछ यथार्थ में कर के दिखलायें। वह जिम्मेदारी से भाग क्यों रहै हैं।

लोकतन्त्र के लिये खतरा

पिछले साठ वर्षों में काँग्रेस ने देश का ताना बाना ऐसा भ्रष्ट किया है कि आज सवा अरब की आबादी में 500 इमानदार भारतीय ढूंडने मुशकिल हैं जो संसद में बैठाये जा सकें। काँग्रेस के भ्रष्टाचार से तंग आ कर भारत के लोग आजतक इमानदार लोगों को ही तलाशते रहै हैं – चाहे कहीं से भी मिल जायें। अब कुछ विदेशी और कुछ देसी तत्व नरेन्द्र मोदी की राष्ट्रवादी बातों से इतना परेशान हैं कि वह भारत की राजसत्ता नरेन्द्र मोदी के बजाये किसी दूसरे के हाथ में देने का षटयंत्र कर रहै थे जो अपनी ‘इमानदारी’  का ढोल पीट कर काँग्रेस का विकल्प बन सकें और उसी खोज में उन्हें केजरीवाल की प्राप्ति हो गयी। उन की आम आदमी पार्टी जिसे अब आराजिक्ता आवाहन पार्टी कहना सही होगा अब देश को भूल-भूलियां में धकेलने के लिये विदेशियों की पैदायश के तौर पर उभर चुकी है। यह तसवीर आने वाले लोकसभा चुनाव में और स्पष्ट हो जाये गी। यह पार्टी नरेन्द्र मोदी की लोक प्रियता में सेंध लगाये गी और मीडिया इसे बढ चढ कर इस्तेमाल करे गा।

क्या आम आदमी पार्टी पूरे हिन्दुस्तान में भ्रष्ट काँग्रेस का विकल्प बन सकती है ? क्या उन के पास इतना संगठन, योग्यता, अनुभव और ‘इमानदार’ प्रशासक हैं कि वह देश को चला सकें ? भ्रष्टाचार से जूझने के जोश में हमारे युवा बिना सोचे समझे केजरीवाल के मकड़ जाल में फंसते चले जा रहै हैं । वह नहीं जानते कि इस पार्टी के पीछे कौन लोग खडे हैं। युवाओं ने शायद इस पार्टी के नेताओं के ये बयान शायद याद नहीं रखे…

  • आप कांग्रेस से गठबंधन कर सकती है – शाजिया इल्मी
  • तरुण तेजपाल निर्दोष है – शाजिया इल्मी
  • नरेन्द्र मोदी मानवता का हत्यारा है – संजय सिंह
  • (भगवान शिव को) ठंड में हिमालय पर बैठा दिया और कपडे भी नही दिए बिचारे को और सर के ऊपर से गंगा निकाल दी तो वो शंकर तांडव नही तो क्या डिस्को करेगा – कुमार विशवास
  • पदम् श्री मेरे पाँव की जूती है – कुमार विशवास
  • इशरत जहाँ मासूम थी – योगेन्द्र यादव
  • 42%भारतीय चाहते हैं की राहुल गाँधी जी प्रधानमन्त्री बने – योगेन्द्र यादव
  • बटला हाउस फर्जी है – अरविन्द केजरीवाल
  • राजीव गाँधी इकलौते ऐसे नेता थे, जिन्होंने आम आदमी की भलाई के लिए काम किया – अरविन्द केजरीवाल
  • राहुल गाँधी जी को देश की समस्याओं की समझ है – अरविन्द केजरीवाल
  • भारत के लिए हिन्दू शक्तियां खतरा है – प्रशांत भूषण
  • कश्मीर को पकिस्तान को दे देना चाहिए – प्रशांत भूषण

AAP वाले सिर्फ दिल्ली में आराजिक्ता फैलाने के इलावा और कुछ नहीं कर सकें गे। सात आठ यार दोस्त अगर कहीं इकट्ठे बैठ जायें जो ऐक दूसरे को ज्यादा जानते भी नहीं, चुनाव से कुछ वक्त पहले ही मिले हैं, तो उन को सरकार नहीं कहा जा सकता वह केवल ऐक चौकडी ही होती है जिसे अंग्रेड़ी में कैकस कहते हैं।

आम आदमी पार्टी पूरी तरह से हिन्दू विरोधी और मुस्लिम समर्थक पार्टी है। उन के चुनावी उमीदवार आम तौर पर वह लोग हैं जो वर्षों तक काँग्रेस या बी जे पी के टिक्ट पाने के लिये झक मारते रहै हैं और अब इमानदारी का नकाब लगा कर आम आदमी बन बैठे हैं। यह सिर्फ भ्रष्टाचार विरोधी वोटों का बटवारा करवा कर काँग्रेस का फायदा करवायें गे। वह नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में राष्ट्रवादी सरकार बनने के रास्ते में रोड़े अटकायें गे।

चुनौती स्वीकार करो

अगर केजरीवाल और उन के साथियों में हिम्मत है तो अभी काँग्रेस या बी जे पी से बिना शर्त समर्थन के आधार पर कुछ तो कर के दिखायें। देश के शासन की बागडोर के साथ जुआ नहीं खेला जा सकता। आम आदमी पार्टी की ऐकमात्र सोच है कि सिर्फ वही अकेले इमानदार हैं और बाकी सभी बेईमान हैं। केजरीवाल का कहना था कि जब वह दिल्ली में अपनी सरकार बनायें गे तो राम लीला ग्राउंड में विधान सभा का सत्र करें गे और उस में जनलोक पाल बिल पास करें गे। उतना कर देने से भ्रष्टाचार खत्म हो जाये गा। इमानदार बनने के लिये नारे लगाने के बजाये इमानदार बन कर दिखाओ। कम से कम अपना स्टेंड तो साफ करो। पहली चुनौती को स्वीकार करो, सरकार बनाओ और कुछ कर के दिखाओ।

केजरीवाल तो अब फिर से चुनाव के लिये भी तैय्यार हैं जैसे कोई जादू उन के पक्ष में हो जाये गा। अगर दोबारा चुनाव करवाये जायें और फिर भी त्रिशंकु परिणाम आये तो कितनी बार दिल्ली में केजरीवाल नया मतदान करवाते रहैं गे ? अगर यह हाल लोकसभा के चुनाव में हुआ तो बार बार चुनाव करवाने और देश में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने के लिये कौन जिम्मेदार होगा ? अगर हम चाहैं तो इस के विकल्प तलाशे जा सकते हैं जैसे किः-

  1. त्रिशंकु परिणाम के कारण या तो अगले पाँच वर्षों तक दिल्ली के नागरिकों को लोकतंत्र से वंचित किया जाये और उप राज्यपाल का शासन लागू रहै।
  2. दिल्ली में चुने गये विधायकों को इकठ्ठा कर के उन्हीं में से ऐक वैकल्पिक सरकार बनाई जाये जो सदन में पार्टी रहित साधारण बहुमत के अनुसार पाँच वर्ष तक काम करे और चाहे तो अपना मुख्यमंत्री आवश्क्तानुसार बदलती रहै।
  3. दोबारा या जितनी भी बार चुनाव कराये जायें उन का खर्च मत दाताओं से अतिरिक्त कर के तौर पर वसूला जाये।

केजरीवाल जी – हरियाणा और लोकसभा का लालच करने से पहले जो कुछ दिल्ली में प्लेट पर प्राप्त हुआ है उस की चुनौती में सफल हो कर दिखाओ यदि ऐसा नहीं करते तो आम आदमी पार्टी जनता के साथ ऐक धोखा है उसे राजनैतिक पार्टी कहलाने का कोई अधिकार नहीं।

चाँद शर्मा

केजरीवाल से सवाल


भारत में जहाँ हवा और सूर्य की रौशनी जा सकती है वहाँ पर भ्रष्टाचार भी जा चुका है। पिछले सात दशकों में हमारे समाज की मान्यताओं में जो बदलाव आये हैं उन में प्रमुख स्थान भ्रष्टाचार को मिला है। किसी भी काम को शार्टकट से करने लेना या करवाने वाले को ‘हैल्पफुल एटिच्यूड’, ‘टैक्ट फुल’, ‘अडजस्टेबल’, या ‘ओपन-माईडिड’ कह कर दरकिनार कर दिया जाता है। जो नियमों के अनुसार चले उसे ‘रिजिड’, ‘दकियानूस’ या ‘रेडटेपिस्ट’ की उपाधि मिल जाती है। यही वजह है कि भ्रष्टाचार अब हमारी रगों में समा गया है।

लेकिन कहीं भी अन्धेरा ज्यादा देर तक नहीं रहता। सुबह जरूर होती है। अब फिर से लोग भ्रष्टाचार से तंग आ चुके हैं। पिछले दो दश्कों से तो हम बेसबरी से इमानदार व्यक्ति की तलाश कर रहै हैं। जिस ने भी अपने आप को ‘इमानदार’ बताया हम ने उसे ही प्रधानमन्त्री की कुरसी आफ़र कर दी। राजीव गान्धी, वी पी सिहँ, आई के गुजराल और मनमोहन सिहं आदि जैसे कई ‘इमानदार’ आये और भ्रष्टाचार के साथ साथ कई अन्य रोग भी हमारी राजनीति में लगा गये।

अन्ना और स्वामी रामदेव

इसी वातावरण में ऐक नाम अन्ना हजारे का भी उभरा जो महाराष्ट्र की राजनीति में अनशन कर के मशहूर होते गये। अन्ना अपने आप को गाँधी वादी कहते रहै हैं। सत्य तो यह है कि जब गाँधी जी ने बिडला हाऊस के प्रांगण में ‘हेराम’ कह कर अन्तिम सांस लिया था तो अन्ना नौ दस वर्ष की आयु के रहै होंगे। फिर भी वह गाँधी की तरह अपनी जिद मनवाने के लिये आमरण-अनशन का सहारा लेते रहै हैं। वह बात अलग है कि अपने आप को ‘री-यूज़’ करने के लिये अन्ना खुद ही कोई ना कोई बहाना ले कर अनशन खोलते भी रहै हैं।

अन्ना को राष्ट्रीय मंच पर स्वामी रामदेव लाये जो भ्रष्टाचार के खिलाफ सिर्फ आवाज ही नहीं उठा रहै थे बल्कि व्यवस्था परिवर्तन का सक्षम विकल्प भी दे रहै थे। उस विकल्प को ठोस रूप दिया जा चुका था। उनकी योजना में स्वदेशी वस्तुओं का दैनिक जीवन में इस्तेमाल, भ्रष्ट व्यकतियों का राजनीति से निष्कासन, हिन्दी तथा प्रान्तीय भाषाओं के माध्यम से उच्च शिक्षा, योगाभ्यास के दूआरा चरित्र निर्माण और भारत स्वाभिमान की पुनर्स्थापना आदि शामिल थे। स्वामी राम देव अपने विकल्प को प्रत्यक्ष रूप देने के लिये ऐक सक्ष्म संगठन भारत स्वाभिमान भी स्थापित कर चुके थे। भारत स्वाभिमान की बहती गंगा में हाथ धोने के लिये अन्ना भी ऐक जनलोक पाल का घिसापिटा विषय लेकर कूद पडे।

थोडे ही समय पश्चात अन्ना ने अपने समर्थकों के साथ, जिन में केजरीवाल, किरण बेदी और स्वामी अग्निवेश आदि अग्रेसर थे दिल्ली में अनशन पर बैठ गये। स्वामी रामदेव और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्थन से देश भर में इमानदारी की चिंगारी शोलों में परिवर्तित हो चुकी थी। युवा वर्ग उत्साहित हो कर स्वामी रामदेव के साथ उन के नये समर्थक अन्ना के गीत भी गाने लगा। भाण्ड मीडिया ने शंख नाद किया की “सरकार पाँच दिन में हिल गयी… ! ”

सत्ता में बैठी काँग्रेस ने नबज को पकडा और अन्ना से तोलमोल शुरु हो गया जिस में केजरीवाल और स्वामी अग्निवेश और कपिल सिब्बल थे। आननफानन में समझोता होगया – केजरीवाल और अग्निवेश ने जोश में अपनी पीठ थपथपाई और यह कह कर सरकार का भी धन्यवाद कर दिया कि समझोता कर के “सरकार ने उन्हें अपेक्षा से अधिक दे दिया है.. !”

सफलता के जोश में अन्ना और उन के साथियों ने पहले स्वामी रामदेव का साथ छोडा। फिर केजरीवाल ने अन्ना को भी किनारे कर दिया और अपनी राजनैतिक पार्टी खडी कर दी। अन्ना का प्रभाव टिमटिमाने लगा तो वह मायूस और बीमार पड गये, मगर केजरीवाल को चेतावनी दे गये कि “ राजनीति में ना तो मेरा फोटो इस्तेमाल करना और ना ही मेरा नाम इस्तेमाल करना।”  किरण बेदी भी केजरीवाल से अलग हो गयीं। केजरीवाल नें राजनीति में अपने कदम जमाने शुरु किये। थोडे ही दिनों में जग जाहिर होगया कि सरकार का समझोता केवल छलावा था जिस का मकसद भारत स्वाभिमान आन्दोलन को कमजोर करना था। उस के बाद की कहानी सभी जानते हैं।

जोश में दिशीहीनता

केजरीवाल को काँग्रेस ने इस्तेमाल करना शुरू किया। अपनी निष्पक्षता दिखाने के लिये केजरीवाल नें भी बीजेपी नेताओं के साथ काँग्रेस के नेताओं पर भी  भ्रष्टाचार के आक्षेप लगाये। भारत में प्रगट हुये ऐकमात्र इमानदार केजरीवाल के साथ वह महत्वकाँक्षी नेता जुडने लग गये जिन के मन में चुनाव जीतने की ललक थी लेकिन न्हें कोई बडी पार्टी टिकट नहीं देती थी। मोमबत्तियों के सहारे भ्रष्टाचार के अन्धेरे को मिटाने का प्रयास करते करते युवा तो दिशा हीन हो कर थकते जा रहै थे। यह सब कुछ काँग्रेस की इच्छा के अनुकूल हो रहा था। रामदेव के संस्थानों के खिलाफ सी बी आई और सरकारी तंत्र कारवाई तेज होती गयी लेकिन केजरीवाल ने स्वामी रामदेव के समर्थन में ऐक शब्द भी नहीं कहा।

आदि काल से भारत की पहचान केवल हिन्दू देश की ही रही है। स्वामी रामदेव भारत की संस्कृति की पुनर्स्थापना की बात कर रहै थे। केजरीवाल इन विषयों से अलग हो कर जामा मसजिद के इमाम अब्दुल्ला  बुखारी को संतुष्ट करने में जुटे रहै और राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ से दूरी बनाने या कोसने में तत्पर रहै। काँग्रेस के साथ कदम मिलाने के लिये केजरीवाल ने अपने आप को धर्म निर्पेक्ष बताने का मार्ग चुना और इमानदारी का बुर्का ओढ लिया।

भ्रष्टाचार विरोध में सेंध

यह सर्व-विदित सत्य है कि भ्रष्टाचार करने और भ्रष्टाचारी कामों को छुपाने के साधन उसी के पास होते हैं जो सत्ता में रहता है। इस देश में पिछले छः दशकों से काँग्रेस ही सत्ता में रही है। अतः भ्रष्टाचार के लिये सर्वाधिक जिम्मेदारी काँग्रेस की है।  भ्रष्टाचार के पनपने में बी जे पी या अन्य दलों का योग्दान अगर कुछ है तो वह आटे में नमक के बराबर है।

मुख्यता सभी इमानदार लोगों को काँग्रेस के विरुद्ध ऐक जुट होना चाहिये था ताकि भ्रष्टाचार विरोधी वोटों का बिखराव ना हो। छोटे दलों से तो बाद में भी निपटा जा सकता है। लेकिन अब केजरीवाल ने भ्रष्टाचार विरोधी वोटों का बिखराव करने के लिये अपनी पार्टी को खडा किया है। इस का फायदा सिर्फ काँग्रेस को होगा और वह सत्ता में बनी रहै गी। अगर कुछ थोडे से केजरीवाल के समर्थक चुनाव जीत गये तो वह अपनी सरकार कभी नहीं बना सकें गे। वह केवल पिछलग्गू बने रहैं गे।

सरकार का काम केवल भ्रष्टाचार बन्द करना ही नहीं होता। सरकार पर देश का प्रशासन, सुरक्षा, विकास और विदेश नीति की जिम्मेदारी होती है। ऐक जनलोकपाल को कुर्सी पर तैनात कर देने से ही देश की दूसरी समस्यायें अपने आप हल नहीं करी जा सकतीं। केजरीवाल के पास कोई इस तरह की प्रतिभा या संगठन नहीं जो सरकार की जिम्मेदारियों को निभा सके। देश को इमानदारी के जोश मे इकठ्टी करी गयी भीड के सपुर्द नहीं किया जा सकता। दूर की बातें अगर दरकिनार भी करें तो भी आजतक स्थानीय बातों पर ही केजरीवाल ने अपनी राय कभी व्यक्त नहीं करी। अगर उन की नियत साफ है तो सार्वजनिक तौर पर बताये कि निम्नलिखित मुद्दों पर उन की राय क्या हैः-

  1. इनकम टैक्स कमिश्नर रहते हुए उन्हों ने कितने भ्रष्ट नेताओं को बेनकाब किया।
  2. उन की पत्नी पिछले दो दशकों से दिल्ली में ही असिस्टेन्ट इंकमटेक्स कमिश्नर के पद पर किन कारणों से तैनात रही हैं।
  3. काशमीर समस्या के समाधान के लिये उन की तथा उन की पार्टी की सोच क्या है।
  4. अयोध्या में राम जन्म भूमी विवाद के बारे में उन की पार्टी की सोच क्या है।
  5. बटला हाउस इनकाउंटर में शहीद मोहनचंद्र शर्मा के बारे क्या सोचते है।
  6. माओवादी नेता बिनायक सेन को AAP की कोर कमेटी में क्या काम दिया गया है।
  7. इमाम बुखारी के खिलाफ दर्जनों अरेस्ट वारंट है, उसके साथ अपने सम्बन्ध के बारे में क्या कहना है।
  8. कृषि घोटाला में शरद पवार के नाम पर चुप्पी क्यों साध रखी है।
  9. अनशन के दौरान, भारत माता की तस्वीर क्यों हटाई गयी थी।
  10. लोकपाल जैसी संस्था में योग्यता के बजाये आरक्षण क्यों होना चाहिये।

य़ह केवल वही प्रश्न हैं जिन का सम्बन्ध दिल्ली चुनावों से है। केजरीवाल के लिये यह केवल लिट्मस टेस्ट है कि पार्टी अध्यक्ष के नाते इन का उत्तर दें। इन बातों को केवल कुछ सदस्यों की निजि राय कह कर दर किनार नहीं किया जा सकता। कोई भी भीड चाहे कितनी भी जोश से भरी हो वह होश का स्थान नहीं ले सकती। अगर वास्तव में केजरीवाल भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहते हैं तो पहले सभी भ्रष्टाचारी विरोधियों के साथ ऐक जुट हो कर भारत को काँघ्रेस मुक्त करें क्यों की काँग्रेस ही भ्रष्टाचार का वट वृक्ष है। काँग्रेस की तुलना में बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भारतीय संस्कृति का वट वृक्ष है। अगर उन में कुछ भ्रष्टाचार है तो उस से बाद में निपटा जा सकता है।

चाँद शर्मा

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