हिन्दू धर्म वर्तमान राजनैतिक परिपेक्ष में

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गिरगटी बदलाव


चुनावों में दिल्ली की जनता का जनमत स्पष्ट था –

  • 70 में से 62 विधायक काँग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिये चुने गये – लेकिन सत्ता की चाबी आज भी काँग्रेस के पास है।
  • 32 विधायक बी जे पी के और 28 विधायक आप के चुने गये – मतलब यह कि दोनो काँग्रेस विरोधी दिल्ली के शासन को पाँचसाल तक निर्विघन मिल कर चलायें।

लेकिन चुनावों के बाद गिरगिटों ने अपने अपने बहाने बना कर रंग बदलने शूरू कर दिये जो दिल्ली की जनता के साथ धोखा धडी है।

केजरीवाल का स्वांग

केजरीवाल अपने आप को आम, बेनाम और गरीब आदमी दिखाने की नौटंकी में जुट गये हैं। पंचायती तरीकों से गली मौहल्लों की सभायें, मैट्रो रेल में सफर, जमीन पर बैठ कर शपथ गृहण समारोह, सुरक्षा से इनकार, फलैटों मे रहना और ना जाने आगे और क्या कुछ देखने को मिले गा उन्हें आम आदमी का स्थाई मेक-अप नहीं दे पायें गी।

जोश में हो सकता है अब शायद वह अपने घर की बिजली भी कटवा दें और आम आदमी की तरह लालटैन से काम चलायें, पी सी ओ पर जा कर टेलीफोन करें, बाल्टी में पानी भर कर सडक पर लगे सरकारी हैंड पम्प पर खुले में नहायें, और सरकारी जमीनों पर दिल्ली में रोज हजारों की तादाद में आने वालों को पहले झुग्गियां बनाने दें और फिर उन्हें पक्के मालिकाना हक दे कर अपना वोट बैंक कायम करें लें।

लेकिन इन सब नाटकों से दिल्ली की समस्यायें हल नहीं हों गी – और बढती जायें गी। सुशासन के लिये आम आदमी को समय के साथ साथ व्यवहारिक भी होना जरूरी है। दिल्ली की जनता ने उन्हें आम आदमी से विशिष्ट आदमी – मुख्यमंत्री – बनाया है। उन के लिये उचित यही होगा कि वह मुख्य मत्री के दाईत्व को सक्षमता से निभायें। ऐक मुख्य मंत्री की जिम्मेदारी निभाने के लिये जिन उपकरणों और सुविधाओं की जरूरत अनिवार्य है उन्हे जरूर इस्तेमाल करे ताकि आम आदमी को वास्तविक फायदा हो और उन की समस्यायें सुलझ जायें। सभी को हर समय खुश रखने के प्रयत्न मत करें और जरूरत अनुसार कडे फैसले भी लें। दिल्ली राज्य की सरकार को ग्राम पंचायत की तरह से चलाने का नाटक बन्द करें।

मीडिया

हमारा मीडिया जब तक कारोबारी दृष्टीकोण छोड कर इण्डिया फर्स्ट की भावना को नहीं अपनाता तो उस के सुधरने की कोई उम्मीद नहीं करी जा सकती। मीडिया अब कोई समाज सेवा का काम नही रहा – पूर्णत्या ऐक व्यापारिक क्षेत्र है जो सिर्फ समाचारो को बेचने के लिये उन्हें सनसनी युक्त करता रहता है।  आजकल मीडिया नयी तरह की राजनीति की मार्किटिंग में जुट गया है। टी वी पर अति संवेदनशील या ससनीखेज़ भाषा में लिखे आख्यान प्रसारित करने मे व्यस्त है। आम आदमी पार्टी के नेताओं की अव्यवहारिक कर्म शैली के आधार पर उन का चरित्र चित्रण, व्यवहारिकता से कोसों दूर यूटोपिया में ले जाने वाले, बासी बुद्धिजीवियों की अनाप शनाप बहस अब रोज मर्रा के प्रोग्रामों की बात बन गयी है। मीडिया पर हंटर चलाना अति आवश्यक हो चुका है।

काँग्रेस

राहुल गाँधी भी भ्रष्ट काँग्रेसियों से दूर अपनी अलग पहचान बनाने जुट गये हैं। उनकी मां के इशारो पर आज तक जो यू पी ऐ सरकार करती रही है वह उसी सरकार के मंत्रियों की कथनियों और करणियों को नकारने मे जुट गये है। आदर्श घोटाले की रिपोर्ट पर दोबारा विचार होगा। लालू को राजनीति मे फिर से बसा लिया जाये गा। संजय दत्त की पैरोल की जाँच भी होगी और… आने वाले दिनों में  भारत मुक्त होने से पहले काँग्रेस को भ्रष्टाचार मुक्त कर दिया जाये गा। काँग्रेस अब ऐक पुराना चुटकला है जिसे सुनना या सुनाना बेकार का काम है।

बी जे पी

खिसियानी बिल्ली की तरह बी जे पी केजरीवाल को अब हाथ में जादुई चिराग़ के साथ आलादीन की भूमिका में देखना चाहती है ताकि या तो दिल्ली वासियों की सभी नयी पुरानी समस्याऐं शपथ ग्रहण के पाँच मिन्ट बाद ही सुलझ जायें या फिर आप पार्टी की सरकार गिर जाये और दिल्ली के लोग बी जे पी की सरकार चुन लें।

बी जे पी यह भूल चुकी है कि दिल्ली में उन की हार का मुख्य कारण भाई भतीजावाद, नेताओं की आपसी लडाई, जनता की अनदेखी और नरेन्द्र मोदी पर ओवर रिलायंस था। बी जे पी के नेता काँग्रेसी तौर तरीके अपनाने में जुट चुके हैं। यही कारण था कि कछुऐ ने खरगोश को चुनावी दौड में पछाड दिया।

अब बी जे पी को केजरीवाल की सरकार गिराने की उतावली के बजाये मध्यप्रदेश, गोवा, राजस्थान, छत्तीस गढ़ और गुजरात में विशिष्ट बहुमत के साथ विशिष्ट सुशासन दिखाना चाहिये। केजरीवाल की अच्छी बातों को अपनानें में शर्म नहीं करनी चाहिये। कम से कम आम आदमी पार्टी के सामने साकारात्मिक विपक्ष ही बन कर रहैं और सरकार गिराने की उतावली छोड दें। उसे अपने आप गिरना होगा तो गिर जाये गी।

स्वार्थवश जब भी काँग्रेस केजरीवाल की सरकार को गिराना चाहै तो ताली बजाने के बजाये बी जे पी को केजरीवाल को गिरने से बचाना चाहिये ताकि केजरीवाल अपने आप को शहीद घोषित ना कर सके और कुछ कर के दिखाये। आलोचना करने के अतिरिक्त सकारात्मिक विपक्ष होने के नाते बी जे पी का यह दाईत्व भी है कि वह केजरीवाल की सरकार को कुछ कर दिखाने के लिये पर्याप्त समय भी दे और उसे काँग्रेस के शोषण से बचाये रखे।

आम आदमी

नेतागण – अब गिरगिट नौटंकी छोड कर साधारण आदमी बने, व्यवहारिक और सकारात्मिक काम करें तभी वह आम आदमियों के नेता बन सकते हैं। नहीं तो आम आदमी की आँधी और आराजिक्ता के रेगिस्तान में पानी ढूंडते ढूंडते प्यासे ही मर जायें गे। बदलाव की लहर को रोकना मूर्खता होगी लेकिन गिरगटी बदलाव से बचें।

 

चाँद शर्मा

 

त्रिशंकु चुनावी नतीजे


बिना परिश्रम अगर कुछ प्राप्त हो जाये तो उस की कीमत नहीं आंकी जाती। यह बात हमारे लोकतन्त्र और मत देने के अधिकार के साथ भी सार्थक है। कहने को दिल्ली में 68 प्रतिशत मत दान हुआ जो पिछले चुनावों से ज्यादा है लेकिन इस से कहीं ज्यादा मत दान दूसरे राज्यों में हुआ है। देश की राजधानी से 32 प्रतिशत पढे लिखे और जागरूक मत दाता वोट डालने नहीं गये क्यों कि उन्हें लोकतंत्र के बजाये आराम करना ज्यादा पसंद था। अगर दिल्ली में आज त्रिशंकु विधान सभा है तो उस के लिये दिल्ली के मतदाता जिम्मेदार हैं जो अपने वोट का महत्व नहीं समझे और भ्रामित रहै हैं। प्रजातंत्र को सफल बनाने के लिये वोटरों में जागरुक्ता होनी चाहिये । जो मतदाता दो मुठ्ठी अनाज और ऐक बोतल शराब पर बिक जायें उन्हें तो मत दान का अधिकार ही नहीं होना चाहिये। हमारे देश की दुर्दशा का ऐक मुख्य कारण अधिक और अनाधकृत मतदाता हैं। ऐसे नेता चुन कर आते हैं जिन्हें बाहर से ताला लगा कर रखना पडता है कि वह दूसरे राजनैतिक दल के पास बिक ना जायें – ऐसे प्रजातंत्र पर शर्म आनी चाहिये।

लोकतन्त्र के मापदण्ड

अगर कोई भी राजनैतिक दल विधानसभा या संसद के चुनाव में 51 प्रतिशत से कम प्रत्याशी खडे करता है तो ऩिशचित है कि वह सरकार नहीं चलायें गे। वह केवल विजयी उमीदवारों के बलबूते पर सिर्फ जोड-तोड ही करें गे। यही बात स्वतन्त्र प्रत्याशियों पर भी लागू होती है। उन की निजि योग्यता और लोकप्रियता चाहे कुछ भी हो लेकिन सफल हो कर वह अपने आप को बेच कर पैसा कमाने या कोई पद प्राप्त करने के इलावा जनता के लिये कुछ नहीं कर सकते। उन्हें वोट देना ही बेकार है। लोकतंत्र में राजनैतिक दलों का महत्व है क्यों कि उन के पास संगठन, सोच, अनुशासन और जवाबदारी होती है।

केवल विरोध के नकारात्मिक मुद्दे पर संगठन खडा कर के देश का शासन नहीं चलाया जा सकता। ऐमरजैंसी के बाद जनता पार्टी सिर्फ इन्दिरा गाँधी के विरोध के आधार पर ही गठित करी गयी थी जिस में मुलायम, नितिश, लालू, राजनारायण, चरण सिहं, बहुगुणा, वाजपायी, जगजीवनराम से ले कर हाजी मस्तान आदि तक सभी शामिल थे। तीन वर्ष के समय में ही जनता पार्टी अपने अन्तर-विरोधों के कारण बिखर गयी थी और आज उसी पार्टी के बिखरे हुये टुकडे कई तरह के जनता दलों के नाम से परिवारवाद और व्यक्तिवाद को बढावा दे रहै हैं। आम आदमी पार्टी भी कोई संगठित पार्टी नहीं बल्कि सिर्फ भ्रष्टाचार के विरुध जनता के रोष का प्रतीक है जिस के पास सिर्फ ऐक मात्र मुद्दा है जनलोकपाल बिल पास करवाना और सत्ता में बैठना। इस से आगे देश की दूसरी समस्याओं और उन के समाधान के बारे में नीतियों के बारे में उन के पास कोई सकारात्मिक सोच, संगठन, आदर्श, अनुभव या टेलेन्ट नहीं है। जैसे गलियों से आकर हताश लोगों की भीड चौराहों पर भ्रष्टाचार के विरूध नारे लगाने लग जाती है तो अगले चौराहे पर जाते जाते भीड का स्वरूप भी घटता बढता रहता है। उन को संगठित रखने का कोई भी ऐक मात्र मुद्दा भारत जैसे देश का शासन नहीं चला सकता। शासक के लिये कुछ गुण भी चाहियें। शालीनता, गम्भीरता, योग्यता और अनुभव आदि आम आदमी पार्टी के सदस्यों में बिलकुल ही नहीं दिख रहै। यह केवल उग्रवादी युवाओं का अनुभवहीन नकारात्मिक जमावडा है जो सत्ता मिलने पर ऐक माफिया गुट का रूप ले ले गा।

आम आदमी पार्टी की परीक्षा

दिल्ली के 68 प्रतिशत मतदाताओं ने बी जे पी को ही स्पष्ट मत से सब से बडी पार्टी माना है। केजरीवाल ने दिल्ली का चुनाव काँग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ा था इसलिये त्रिशंकु विधान सभा बनने की सूरत में वह काँग्रेस को समर्थन नहीं दे सकते लेकिन उन से बिना शर्त समर्थन ले तो सकते हैं। सकारात्मिक राजनीति करने के लिये उन्हें बी जे पी को समर्थन देना चाहिये था – और सरकार के अन्दर रह कर या बाहर से सरकार के भ्रष्टाचार पर नजर रखनी चाहिये थी। लेकिन केजरीवाल ने तो नकारात्मिक राजनीति करनी है इसलिये वह दोबारा चुनाव के लिये तैय्यार है जिस का खर्च दिल्ली के लोगों पर पडे गा।

अगर केजरीवाल स्वयं सरकार नहीं बना सकता तो चाहे तो काँग्रेस से समर्थन ले ले या बी जे पी से – सरकार बना कर अपना कुछ ऐजेण्डा तो पूरा कर के दिखायें। दिल्ली से भ्रष्टाचार खत्म करना, नागरिक सुरक्षा, महंगाई, बिजली – पानी के रेट कम करना आदि पर तो कुछ यथार्थ में कर के दिखलायें। वह जिम्मेदारी से भाग क्यों रहै हैं।

लोकतन्त्र के लिये खतरा

पिछले साठ वर्षों में काँग्रेस ने देश का ताना बाना ऐसा भ्रष्ट किया है कि आज सवा अरब की आबादी में 500 इमानदार भारतीय ढूंडने मुशकिल हैं जो संसद में बैठाये जा सकें। काँग्रेस के भ्रष्टाचार से तंग आ कर भारत के लोग आजतक इमानदार लोगों को ही तलाशते रहै हैं – चाहे कहीं से भी मिल जायें। अब कुछ विदेशी और कुछ देसी तत्व नरेन्द्र मोदी की राष्ट्रवादी बातों से इतना परेशान हैं कि वह भारत की राजसत्ता नरेन्द्र मोदी के बजाये किसी दूसरे के हाथ में देने का षटयंत्र कर रहै थे जो अपनी ‘इमानदारी’  का ढोल पीट कर काँग्रेस का विकल्प बन सकें और उसी खोज में उन्हें केजरीवाल की प्राप्ति हो गयी। उन की आम आदमी पार्टी जिसे अब आराजिक्ता आवाहन पार्टी कहना सही होगा अब देश को भूल-भूलियां में धकेलने के लिये विदेशियों की पैदायश के तौर पर उभर चुकी है। यह तसवीर आने वाले लोकसभा चुनाव में और स्पष्ट हो जाये गी। यह पार्टी नरेन्द्र मोदी की लोक प्रियता में सेंध लगाये गी और मीडिया इसे बढ चढ कर इस्तेमाल करे गा।

क्या आम आदमी पार्टी पूरे हिन्दुस्तान में भ्रष्ट काँग्रेस का विकल्प बन सकती है ? क्या उन के पास इतना संगठन, योग्यता, अनुभव और ‘इमानदार’ प्रशासक हैं कि वह देश को चला सकें ? भ्रष्टाचार से जूझने के जोश में हमारे युवा बिना सोचे समझे केजरीवाल के मकड़ जाल में फंसते चले जा रहै हैं । वह नहीं जानते कि इस पार्टी के पीछे कौन लोग खडे हैं। युवाओं ने शायद इस पार्टी के नेताओं के ये बयान शायद याद नहीं रखे…

  • आप कांग्रेस से गठबंधन कर सकती है – शाजिया इल्मी
  • तरुण तेजपाल निर्दोष है – शाजिया इल्मी
  • नरेन्द्र मोदी मानवता का हत्यारा है – संजय सिंह
  • (भगवान शिव को) ठंड में हिमालय पर बैठा दिया और कपडे भी नही दिए बिचारे को और सर के ऊपर से गंगा निकाल दी तो वो शंकर तांडव नही तो क्या डिस्को करेगा – कुमार विशवास
  • पदम् श्री मेरे पाँव की जूती है – कुमार विशवास
  • इशरत जहाँ मासूम थी – योगेन्द्र यादव
  • 42%भारतीय चाहते हैं की राहुल गाँधी जी प्रधानमन्त्री बने – योगेन्द्र यादव
  • बटला हाउस फर्जी है – अरविन्द केजरीवाल
  • राजीव गाँधी इकलौते ऐसे नेता थे, जिन्होंने आम आदमी की भलाई के लिए काम किया – अरविन्द केजरीवाल
  • राहुल गाँधी जी को देश की समस्याओं की समझ है – अरविन्द केजरीवाल
  • भारत के लिए हिन्दू शक्तियां खतरा है – प्रशांत भूषण
  • कश्मीर को पकिस्तान को दे देना चाहिए – प्रशांत भूषण

AAP वाले सिर्फ दिल्ली में आराजिक्ता फैलाने के इलावा और कुछ नहीं कर सकें गे। सात आठ यार दोस्त अगर कहीं इकट्ठे बैठ जायें जो ऐक दूसरे को ज्यादा जानते भी नहीं, चुनाव से कुछ वक्त पहले ही मिले हैं, तो उन को सरकार नहीं कहा जा सकता वह केवल ऐक चौकडी ही होती है जिसे अंग्रेड़ी में कैकस कहते हैं।

आम आदमी पार्टी पूरी तरह से हिन्दू विरोधी और मुस्लिम समर्थक पार्टी है। उन के चुनावी उमीदवार आम तौर पर वह लोग हैं जो वर्षों तक काँग्रेस या बी जे पी के टिक्ट पाने के लिये झक मारते रहै हैं और अब इमानदारी का नकाब लगा कर आम आदमी बन बैठे हैं। यह सिर्फ भ्रष्टाचार विरोधी वोटों का बटवारा करवा कर काँग्रेस का फायदा करवायें गे। वह नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में राष्ट्रवादी सरकार बनने के रास्ते में रोड़े अटकायें गे।

चुनौती स्वीकार करो

अगर केजरीवाल और उन के साथियों में हिम्मत है तो अभी काँग्रेस या बी जे पी से बिना शर्त समर्थन के आधार पर कुछ तो कर के दिखायें। देश के शासन की बागडोर के साथ जुआ नहीं खेला जा सकता। आम आदमी पार्टी की ऐकमात्र सोच है कि सिर्फ वही अकेले इमानदार हैं और बाकी सभी बेईमान हैं। केजरीवाल का कहना था कि जब वह दिल्ली में अपनी सरकार बनायें गे तो राम लीला ग्राउंड में विधान सभा का सत्र करें गे और उस में जनलोक पाल बिल पास करें गे। उतना कर देने से भ्रष्टाचार खत्म हो जाये गा। इमानदार बनने के लिये नारे लगाने के बजाये इमानदार बन कर दिखाओ। कम से कम अपना स्टेंड तो साफ करो। पहली चुनौती को स्वीकार करो, सरकार बनाओ और कुछ कर के दिखाओ।

केजरीवाल तो अब फिर से चुनाव के लिये भी तैय्यार हैं जैसे कोई जादू उन के पक्ष में हो जाये गा। अगर दोबारा चुनाव करवाये जायें और फिर भी त्रिशंकु परिणाम आये तो कितनी बार दिल्ली में केजरीवाल नया मतदान करवाते रहैं गे ? अगर यह हाल लोकसभा के चुनाव में हुआ तो बार बार चुनाव करवाने और देश में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने के लिये कौन जिम्मेदार होगा ? अगर हम चाहैं तो इस के विकल्प तलाशे जा सकते हैं जैसे किः-

  1. त्रिशंकु परिणाम के कारण या तो अगले पाँच वर्षों तक दिल्ली के नागरिकों को लोकतंत्र से वंचित किया जाये और उप राज्यपाल का शासन लागू रहै।
  2. दिल्ली में चुने गये विधायकों को इकठ्ठा कर के उन्हीं में से ऐक वैकल्पिक सरकार बनाई जाये जो सदन में पार्टी रहित साधारण बहुमत के अनुसार पाँच वर्ष तक काम करे और चाहे तो अपना मुख्यमंत्री आवश्क्तानुसार बदलती रहै।
  3. दोबारा या जितनी भी बार चुनाव कराये जायें उन का खर्च मत दाताओं से अतिरिक्त कर के तौर पर वसूला जाये।

केजरीवाल जी – हरियाणा और लोकसभा का लालच करने से पहले जो कुछ दिल्ली में प्लेट पर प्राप्त हुआ है उस की चुनौती में सफल हो कर दिखाओ यदि ऐसा नहीं करते तो आम आदमी पार्टी जनता के साथ ऐक धोखा है उसे राजनैतिक पार्टी कहलाने का कोई अधिकार नहीं।

चाँद शर्मा

दुहाई आदर्शवाद की


कल तक आडवाणी जी बीमार थे इस लिये वह गोवा नहीं जा सके थे। उन की अनुपस्थिति में बी जे पी की संसदीय कार्यकारिणी ने विधिवत नरेन्द्र मोदी को प्रचार समिति का अध्यक्ष बना दिया। अधिवेशन से गैरहाजिर रहै अधिकांश नेताओं ने अपनी गैरहाजिरी के कारण भी सार्वजनिक कर दिये जिस से सभी का मन-मुटाव भी शान्त हो गया। राजनाथ सिहँ तथा नरेन्द्र मोदी ने आडवाणी जी से आशीर्वाद भी प्राप्त कर लिया और शुभ संकेतों के साथ बी जे पी का सम्मेलन सम्पूर्ण होगया – देश में जोश, आत्म विशवास और आशा की नयी किरण चमक उठी।

आज आडवाणी जी के स्वास्थ में अचानक सुधार होगया तो उन्हों ने अपना त्यागपत्र भी दे दिया। हैरानी इस बात की है कि कल तक बी जे पी के सभी अध्यक्ष निरन्तर आडवाणी जी के परामर्ष और आशीर्वाद से ही पार्टी को चला रहै थे तो फिर ऐक ही रात में भारतीय जनता पार्टी अपने ‘आदर्शों’ से कैसे गिर गयी और ‘पार्टी के नेता’ देश की चिन्ता छोड कर ‘स्वार्थी’ कैसे बन गये? ऐसी विकट स्थिति अचानक कैसे पैदा हो गयी जब कि आडवाणी जी अध्यक्ष से भी ऊपर पार्टी के सर्वे-सर्वा की तरह सम्मानित थे। उन का नेतृत्व ऐकदम विफल क्यों हो गया?

फेलैशबेक में देखें तो कुछ समय पहले आडवाणी जी ने अपने ब्लाग लेख में ऐक भविष्यवाणी की थी कि ‘2014 में ना तो काँग्रेस का और ना ही बी जे पी का नेता प्रधान मंत्री बने गा बल्कि कोई गैर NDA और काँग्रेस का नेता प्रधान मंत्री बन कर सरकार बनाये गा’। आडवाणी जी के त्यागपत्र के तुरन्त बाद आज ममता बैनर्जी ने भी न्योता दिया है कि गैर NDA और काँग्रेसी दल ऐक जुट हो कर 2014 में चुनाव के लिये फ्रंट बनायें। आडवाणी जी ने कहीं वह भविष्यवाणी अपने लिये ही तो नहीं करी थी? BJP से त्यागपत्र के बाद आडवाणी जी अपने आप को पूर्णत्या ‘ग़ैर बी जे पी’ और ‘गैर काँग्रेसी’ साबित कर सकते हैं। आडवाणी जी सीधी बात करने के बजाये इशारों में बातें करना ज्यादा पसंद करते हैं जिस की रिहर्सल उन्हों ने अपने महाभारत लेख में अभी अभी करी है।

साफ और स्पष्ट बात तो यह लग रही है कि चाहै संघ ने बी जे पी के अध्यक्षों को मनोनीत किया था लेकिन आडवाणी जी बी जे पी को अपने स्वार्थ के लिये परोक्ष रूप से स्वयं चलाना चाहते हैं ताकि वह NDA का मनवाँछित विस्तार कर के प्रधान मंत्री बन सकें, या फिर गैर NDA और गैर काँग्रेसी बन के अपनी ही भविष्यवाणी को सार्थक कर सकें। इस मानवी इच्छा में आदर्शवाद का कोई स्थान नहीं है। कल तक आडवाणी समर्थक भाजपाई नेता चुप हो कर नरेन्द्र मोदी के पीछे खडे हो गये थे परन्तु आडवाणी जी से शह पा कर वही NDA ब्रांड ‘सैक्यूलर पंथी’ ऐक बार फिर मोदी के रास्ते में कांटे बिछा सकते हैं। उन के नाम और कारनामें सर्व विदित हैं। आजतक वह आडवाणी की मेहरबानी से वह संसद में पिछले दरवाजे से बैठे आराम कर रहै थे लेकिन नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व से उन्हें कुछ जलन होना भी स्वाभाविक है।

आडवाणी जी अपने अहं और निजि आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये बी जे पी के सांवैधानिक निर्णय को बदलने के लिये गाँधी जी की तरह का भावात्मिक दबाव बना रहै हैं और देश के युवाओं के मनोबल को तबाह करने में जुटे हैं। लेकिन आज देश में प्रत्येक हिन्दू युवा अपनी पहचान पाने के लिये नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की ओर आशापूर्वक देख रहा है। आडवाणी जी और उन के समर्थकों का युग हिन्दू युवाओं को अन्धकार में छोड कर समाप्त हो चुका है और नयी सुबह की किरणें फूट रही हैं। अगर आडवाणी आज बी जे पी छोड भी दें गे तो उन की हालत उस सूखे पत्ते की तरह हो गी जो पेड से गिर जाता है और केवल खाद बन जाता है।

देश को अब बीमार नेतृत्व नहीं चाहिये। गुजरात में हुए लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव में ‘विकास’ कोई मुद्दा नहीं था। काँग्रेस नरेन्द्र मोदी के सामने ‘विकास’ पर तो मूहँ ही नहीं खोल सकती। इस बार मुद्दा था गुजरात की असमिता, भारत की संस्कृति की पहचान और सुरक्षा का। काँग्रेस और मीडिया ने ‘गुजरात-दंगों’ का ढोल तो पीटा मगर मतदाताओं ने अपना फैसला स्पष्ट दे दिया है। वहाँ कोई ‘दंगे’ नहीं थे वह ‘जुल्म’ के खिलाफ ‘हिन्दू प्रतिकार’ था। 2014 के चुनाव में अगर बी जे पी विकास, घोटाले, तुष्टिकरण, आतंकवाद, गठबन्धन राजनीती की दल दल से अब बाहर निकल कर पहले भारत की हिन्दू पहचान को मुद्दा रख कर अकेली ही आगे बढे गी तो निश्चय ही जीत मिलेगी। देश के लोग विशेष कर युवा अब यही चाहते हैं।

आडवाणी जी जिस ऐन डी ऐ के कीचड में दोबारा बी जे पी को धकेलना चाहते हैं उस से बचने के लिये नरेन्द्र मोदी को दो तिहाई मत के साथ अपने दम पर ही सरकार बनाने दो। NDA में घटक दलों के स्वार्थी नेता किस तरह से अटल जी की सरकार को शिथल बनाते रहै थे यह किसी से छुपा नहीं है। वह अब फिर नये प्रधान मंत्री के साथ भी वही करें गे इस लिये बी जे पी को अपने दम पर ही आगे बढना होगा जिस के लिये कार्य कर्ताओं में जोश और आत्म विशवास है। इस आत्म विशवास के साथ आडवाणी जी अपनी निजि आकाक्षाओं की पूर्ति के लिये खिलवाड मत करें।

आडवाणी जी ने त्याग पत्र दे कर अन्य वृद्ध नेताओं के लिये ऐक अच्छी मिसाल तो कायम की है लेकिन अपनी और पार्टी को ऐक मजाक भी बना दिया है। उन से यह उमीद नहीं थी। अब भले ही आडवाणी जी अपनी बातें मनवा कर त्यागपत्र वापिस भी ले लें तो भी जो हुआ वह वापिस नहीं लाया जा सकता। देश हित में अच्छा यही होगा कि उन की आयु के सभी नेताओं को अब राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिये। यही भारतीय संस्कृति की मर्यादा है।

चाँद शर्मा

नरेन्द्र मोदी की पहचान


काँग्रेस और बिकाऊ मीडिया नरेन्द्र मोदी को ‘साम्प्रदायक’ कह रहै हैं तो मुस्लिम वोट हासिल करने के लिये बी जे पी उन्हें ‘धर्म निर्पेक्ष’ बनने के लिये मजबूर कर रही है। ‘साम्प्रदायक’ और ‘धर्म निर्पेक्ष’ की परिभाषा और पहचान क्या है यह नरेन्द्र मोदी ने स्वयं स्पष्ट कर दी है – ‘इण्डिया फर्स्ट’ ! नरेन्द्र मोदी की लोक प्रियता का कारण उन की भ्रष्टाचार मुक्त ‘मुस्लिम तुष्टिकरण रहित’ छवि है। अगर नरेन्द्र मोदी को काँग्रेसी ब्राँड का धर्म निर्पेक्ष बना कर चुनाव में उतारा जाये तो फिर नितिश कुमार और नरेन्द्र मोदी में कोई फर्क नहीं रहै गा। इस लिये नरेन्द्र मोदी को नरेन्द्र मोदी ही बने रहना चाहिये।

बी जे पी के  जिन स्वार्थी नेताओं को ‘हिन्दू समर्थक’ कहलाने में ‘साम्प्रदायकता’ लगती है तो फिर वह बी जे पी छोड कर काँग्रेसी बन जायें। अगर सिख समुदाय के लिये शिरोमणि अकाली दल, मुस्लमानो के लिये मुस्लिम लीग को ‘सैक्यूलर’ मान कर उन के साथ चुनावी गठ जोड करे जा सकते हैं तो हिन्दू समर्थक पार्टी को साम्प्रदायक क्यों कहा जाता है? इस लिये अब बी जे पी केवल उन्हीं पार्टियों के साथ चुनावी गठ जोड करे जिन्हें हिन्दूत्व ऐजेंडा मंजूर हो नहीं तो ऐकला चलो…

काँग्रेस की हिन्दू विरोधी नीति

1947 के बटवारे के बाद हिन्दूओं ने सोचा था कि देश का ऐक भाग आक्रानताओं को  दे कर हिन्दू और मुस्लमान अपने-अपने भाग में अपने धर्मानुसार शान्ति से रहैं गे लेकिन गाँधी और नेहरू जैसे नेताओं के कारण हिन्दू बचे खुचे भारत में भी चैन से नहीं रह सके। उन का जीवन और हिन्दू पहचान ही मिटनी शुरु हो चुकी है। अब इटली मूल की सोनियाँ दुस्साहस कर के कहती है ‘भारत हिन्दू देश नहीं है’। उसी सोनियाँ का कठपुतला बोलता है ‘मुस्लिमों का इस देश पर प्रथम हक है’।

जयचन्दी नेता मुस्लमानों के अधिक से अधिक सुविधायें देने के लिये ऐक दूसरे से प्रति स्पर्धा में जुटे रहते हैं। मुस्लिम अपना वोट बैंक कायम कर के ‘किंग-मेकर’ के रूप में पनप रहै हैं। आज वह ‘किंग-मेकर’ हैं तो कल वह ‘इस्लामी – सलतनत’ भी फिर से कायम कर दें गे और भारत की हिन्दू पहचान हमेशा के लिये इतिहास के पन्नों में ग़र्क हो जाये गी।

देश विभाजन की पुनः तैय्यारियाँ

सिर्फ मुस्लिम धर्मान्धता को संतुष्ट करने के लिये आज फिर से हिन्दी के बदले उर्दू भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जा रहा है, सरकारी खर्च पर इस्लामी तालीम देने के लिये मदरस्सों का जाल बिछाया जा रहा है। शैरियत कानून, इस्लामी अदालतें, इस्लामी बैंक और मुस्लिम आरक्षण के जरिये समानान्तर इस्लामी शासन तन्त्र स्थापित किया जा रहा है। क्या धर्म निर्पेक्षता के नाम पर यह सब कुछ  राष्ट्रीय ऐकता को बढावा देगा या फिर से विभाजन के बीज बोये गा?

पुनर्विभाजन के फूटते अंकुर

आज जिन राज्यों में मुसलमानों ने राजनैतिक सत्ता में अपनी पकड बना ली है वहाँ पडोसी देशों से इस्लामी आबादी की घुस पैठ हो रही है, आतंकवादियों को पनाह मिल रही है, अलगाव-वाद को भड़काया जा रहा है और हिन्दूओं का अपने ही देश में शर्णार्थियों की हैसियत में पलायन हो रहा है। काशमीर, असम, केरल, आन्ध्राप्रदेश, पश्चिमी बंगाल आदि इस का  प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। यासिन मलिक, अबदुल्ला बुखारी, आजम खां, सलमान खुर्शीद, औबेसी, और अनसारी जैसे लोग खुले आम धार्मिक उन्माद भडकाते हैं मगर काँग्रेसी सरकार चुप्पी साधे रहती है। अगर कोई हिन्दू प्रतिक्रिया में सच भी बोलता है तो मीडिया, अल्प संख्यक आयोग और सरकारी तंत्र सभी ऐक सुर में हिन्दू को साम्प्रदायकता का प्रमाणपत्र थमा देते हैं। बी जे पी के कायर और स्वार्थी  नेता अपने आप को अपराधी मान कर अपनी धर्म निर्पेक्षता की सफाई देने लग जाते हैं।

भारत में इस्लाम 

यह ऐक ऐतिहासिक सच्चाई है कि इस्लाम का जन्म भारत की धरती पर नहीं हुआ था। इस्लाम दोस्ती और प्रेम भावना से नहीं बल्कि हिन्दू धर्म की सभी पहचाने मिटाने के लिये ऐक आक्रान्ता की तरह भारत आया था। भारत में मुस्लमान हैं उन्ही आक्रान्ताओं के वंशज हैं या फिर उन हिन्दूओं के वंशज हैं जो मृत्यु, भय, और अत्याचार से बचने के लिये या किसी लालच से इस्लाम में परिवर्तित किये गये थे। पाकिस्तान बनने के बाद अगर मुस्लमानों ने भारत में रहना स्वीकारा था तो वह उन का हिन्दूओं पर कोई अहसान नहीं था। उन्हों ने अपना घर बार त्यागने  के बजाये भारत में हिन्दूओं के साथ रहना स्वीकार किया था। लेकिन आज भी मुस्लमानों की आस्थायें और प्ररेणा स्त्रोत्र भारत से बाहर अरब देशों में है। भारत का नागरिक होने के बावजूद वह वन्दे मात्रम, समान आचार संहिता, योगिक व्यायाम तथा स्थानीय हिन्दू परम्पराओं से नफरत करते हैं। उन का उन्माद इस हद तक है कि संवैधानिक पदों पर रहते हुये भी उन की सोच में कोई बदलाव नहीं। और क्या प्रमाण चाहिये?

 गोधरा की चिंगारी

गोधरा स्टेशन पर हिन्दू कर-सेवकों को जिन्दा ट्रेन में जला डालना अमानवी अत्याचारों की चरम सीमा थी जो गुजरात में ऊँट की पीठ पर आखिरी तिनका साबित हुयी थी। अत्याचार करने वालों पर हिन्दूओं ने तत्काल प्रतिकार लिया और जब तक सरकारी तंत्र अचानक भडकी हिंसा को रोकने के लिये सक्ष्म होता बहुत कुछ हो चुका था। उस समय देश की सैनायें सीमा की सुरक्षा पर तैनात थीं। फिर भी गुजरात की नरेन्द्र मोदी सरकार ने धर्म निर्पेक्षता के साथ प्रतिकार की आग को काबू पाया और पीडितों की सहायता करी। लेकिन क्या आज तक किसी धर्म निर्पेक्ष, मानवअधिकारी ने मुस्लिम समाज को फटकारा है? क्या किसी ने कशमीर असम, और दिल्ली सरकार को हिन्दू-सिख कत्लेआम और पलायन पर फटकारा है?

अत्याचार करना पाप है तो अत्याचार को सहना महापाप है। सदियों से भारत में हिन्दू मुस्लमानों के संदर्भ में यही महापाप ही करते आ रहै थे। क्या आज तक किसी मानव अधिकार प्रवक्ता, प्रजातंत्री, और धर्म निर्पेक्षता का राग आलापने वालों ने मुस्लमानों की ‘जिहादी मुहिम’ को नकारा है? भारत में धर्म निर्पेक्षता की दुहाई देने वाले बेशर्म मीडिया या किसी मुस्लिम बुद्धिजीवी ने इस्लामी अत्याचारों के ऐतिहासिक तथ्यों की निंदा करी है?

 हिन्दूओं की आदर्शवादी राजनैतिक मूर्खता

मूर्ख हिन्दू जिस डाली पर बैठते हैं उसी को काटना शुरु कर देते हैं। खतरों को देख कर कबूतर की तरह आँखें बन्द कर लेते हैं और कायरता, आदर्शवाद और धर्म निर्पेक्षता की दलदल में शुतर्मुर्ग की तरह अपना मूँह छिपाये रहते हैँ। आज देश आतंकवाद, भ्रष्टाचार, अल्प-संख्यक तुष्टीकरण, बेरोजगारी और महंगाई से पूरा देश त्रस्त है। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर देश की अनदेखी हो रही है लेकिन हिन्दू पाकिस्तान क्रिकेट देखने में व्यस्त रहते हैं या पाकिस्तानी ग़ज़लें सुनने में मस्त रहते हैं। अगर निष्पक्ष हो कर विचार करें तो भारत की दुर्दशा के केवल दो ही कारण है – अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और नेताओं का स्वार्थ जिस में सब कुछ समा रहा है।

अंधेरी गुफा में ऐक किरण आज के युवा अंग्रेजी माध्यम से फैलाई गयी इकतरफा धर्म निर्पेक्षता के भ्रमजाल से छुटकारा पाना चाहते हैं। वह अपनी पहचान को ढूंडना चाहते हैं लेकिन उन्हें मार्ग नहीं मिल रहा क्योंकि हमारे अधिकांश राजनेता और   बुद्धिजीवी नागरिक  मैकाले तथा जवाहरलाल नेहरू के बहकावे के वातारवर्ण में ही रंगे हुये हैं।

केवल ऐक ही विकल्प – नरेन्द्र मोदी

युवाओं के समक्ष केवल नरेन्द्र मोदी ही ऐक उमीद की किरण बनकर ऐक अति लोकप्रिय नेता की तरह उभरे हैं। आज भ्रष्टाचार और मुस्लिम तुष्टिकरण के खिलाफ सुब्रामनियन स्वामी का ऐकाकी संघर्ष युवाओं को प्रेरणा दे रहा है। आज युवाओं को अतीत के साथ जोडने में स्वामी रामदेव की योग-क्रान्ति, स्वदेशी आयुर्वेदिक विकल्प तथा भारत स्वाभिमान आन्दोलन सफल हो रहै हैं लेकिन धर्म निर्पेक्षता की आड में काँग्रेस, पारिवारिक नेता, बिकाऊ पत्रकार, स्वार्थी नेता, बी जे पी के कुछ नेता, इस्लामिक संगठन तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ तरह तरह से भ्रान्तियाँ फैलाने में जुटे हैं ताकि भारत अमरीका जैसी महा शक्तियों का पिछलग्गु ही बना रहै।

बी जे पी अब तो  साहस करे

अगर बी जे पी को भारत माता या राम से कोई लगाव है तो बे खटके यह घोषणा करनी चाहिये कि दो तिहाई मतों से सत्ता में आने पर पार्टी निम्नलिखित काम करे गीः-

  •  धर्म के नाम पर मिलने वाली सभी तरह की सबसिडियों को बन्द किया जाये गा।
  • परिवारों या नेताओं के नाम पर चलने वाली सरकारी योजनाओं का राष्ट्रीय नामंकरण दोबारा किया जाये गा।
  •  भ्रष्ट लोगों के खिलाफ समय सीमा के अन्तर्गत फास्ट ट्रैक कोर्टों में मुकदमें चलाये जायें गे और मुकदमें का फैसला आने तक उन की सम्पत्ति जब्त रहै गी।
  • पूरे देश में शिक्षा का माध्यम राष्ट्रभाषा या राज्य भाषा में होगा। अंग्रजी शिक्षा ऐच्छिक हो गी।
  •  जिन चापलूस सरकारी कर्मचारियों ने कानून के विरुद्ध कोई काम किया है तो उन के खिलाफ भी प्रशासनिक कारवाई की जाये गी।
  • धारा 370 को संविधान से खारिज किया जाये गा।
  • पूरे देश में सरकारी काम हिन्दी और राज्य भाषा में होगा।
  • समान आचार संहिता लागू करी जाये गी।

तुष्टीकरण की जरूरत नहीं

अकेले नरेन्द्र मोदी ने ही प्रमाणित किया है कि ‘तुष्टिकरण’ के बिना भी चुनाव जीते जा सकते हैं। दिल्ली में बैठे बी जे पी के नेताओं को कोई संशय नहीं रहना चाहिये कि आज भारत के राष्ट्रवादी केवल मोदी की अगुवाई को ही चाहते हैं। देश के युवा अपनी हिन्दू पहचान को ढूंड रहै हैं जो धर्म निर्पेक्षता के झूठे आवरणों में छुपा दी गयी है। जो नेता इस समय मोदी के साथ नहीं होंगे हिन्दूओं के लिये उन का कोई राजनैतिक अस्तीत्व ही नहीं रहै गा।

चाँद शर्मा

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