(मैं ने आज तक बी जे पी को ही समर्थन दिया है और आगे भी देता रहूँ गा ताकि हिन्दूओं में राजनैतिक जागृति और ऐकता आये और हिन्दू अपने देश में सम्मान से अपनी वोट संख्या के बल पर सुरक्षित रह सकें। उन का घर उन से कोई छीन ना ले। बी जे पी को समर्थन देना हिन्दूओं की मजबूरी है क्यों कि इस समय अन्य कोई संगठन सक्ष्म नहीं है जो भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पित होने का ‘दावा’ करता हो। यह दावे कितने सच्चे हैं उन पर से पर्दा उठाते समय मुझे अफसोस भी हो रहा है। फिर भी देश, बी जे पी, और हिन्दूओं के हित में इन बातों का विशलेशण करना जरूरी है।)
बी जे पी का हिन्दू भ्रम
काँग्रेस और मुस्लिम लीग ने कट्टर पंथी मुसलमानों के लिये देश को विभाजित करवा कर पाकिस्तान बनवाया। विभाजन के पश्चात खण्डित भारत में अपनी सत्ता बनाये रखने के लिये काँग्रेस के नेताओं ने बहुसंख्यक हिन्दूओं को राजनैतिक तौर पर कमजोर किया, अल्प संख्यकों को हिन्दूओं के विरुद्ध कट्टर पंथी बने रहने के लिये संगठित किया और उसे ‘धर्म-निर्पेक्षता’ का नाम दे दिया। हिन्दूओं में फूट डाल कर नेहरू गाँधी परिवार का पीढ़ी दर पीढ़ी राज्य स्थापित किया। इन काँग्रेसी कारनामों से सभी परिचित हैं इस लिये उस का अब ज्यादा उल्लेख करने की जरूरत नहीं।
बी जे पी के स्वार्थी नेता भी काँग्रेसियों से कम नहीं निकले। वह हिन्दू-राष्ट्र, हिन्दू संस्कृति और भारत माता का जयघोष तो रात-दिन करते रहते हैं मगर निर्वाचन से ठीक पहले अपने ऊपर धर्म-निर्पेक्ष्ता की चादर ओढ़ लेते हैं, उन क्षेत्रीय दलों के साथ चुनावी समझोते करते हैं जिन का हिन्दू-राष्ट्र, हिन्दू संस्कृति और भारत माता के साथ कुछ वास्ता नहीं है क्यों कि क्षेत्रीय दल कुछ परिवारों या सामाजिक घटकों की पार्टियां हैं। सत्ता प्राप्ति के बाद बी जे पी के स्वार्थी नेता (जिन में अटल बिहारी वाजपाई और लाल कृष्ण आडवाणी अग्रेसर रहै हैं) अपनी सत्ता को बचाने के लिये ऐन डी ऐ के घटक नेताओं और अल्प संख्यकों की चापलूसी करते हैं जिस के लिये कुर्बानी केवल हिन्दूओं के हितों की ही दी जाती है। किसी बी जे पी के नेता में दम हो तो इन बातों का सार्वजनिक तौर पर खण्डन इस ब्लाग पर कर के हिन्दूओं की संतुष्टि करे।
क्या यह सच नहीं कि बी जे पी के स्वार्थी नेता राम मन्दिर बनाने का झाँसा तो इलेकशन से पहले देते हैं, धारा 370 हटा कर काशमीर को भारत का अटूट अंग बनाने की प्रतिज्ञा करते हैं, सभी भारतीयों में समानता लाने के लिये समान आचार संहिता लागू करने के लिये वचन बद्ध होते हैं लेकिन सत्ता के समीप आते ही इन्हीं बातों को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। सत्ता-सुख के लिये ‘गठ-बन्धन-धर्म’ की आड में देश-धर्म और हिन्दू संस्कृति के प्रति निष्ठा को दर किनार कर ‘ईण्डिया शाईनिंग’ और विकास के लुभावने वादे करने लग जाते हैं। सत्ता हाथ से निकलते ही इन में फिर से राम-भक्ती, भारत माता के प्रति निष्ठा और भारतीय संस्कृति के लिये प्रेम की उमंगें हिलोरें खाने लगती हैं। यही चक्र विभाजन के समय से ही आज तक चलता रहा है और अब भी चल रहा है। काँग्रेसी तो जाने पहचाने हिन्दू विरोधी हैं मगर भगवे रंग में लिपटे छद्म-वेशी हिन्दू हितेषी भाजपाई कहीं ज्यादा घातक और स्वार्थी साबित हो रहै हैं।
आडवाणी की राम भक्ति
बाबरी मस्जिद का ढांचा राम जन्म भूमि की छाती पर ऐक रिसता हुआ नासूर था। जब आडवाणी जी राम-रथ-यात्रा ले कर आये तो राम भक्तों ने इस राम भक्त नेता की अगुवाई में उस ढांचे को राम जन्म भूमि से हटाने की कोशिश की। ढांचा गिरा तो आडवाणी अपने ऊपर खतरा भांप कर राम भक्तों से दूर जा बैठे। क्या आडवाणी जी अयोध्या केवल तमाशा देखने के लिये गये थे?
जब निहत्थे हिन्दूओं को (जिन में बच्चे और महिलायें भी थीं) गोधरा के समीप ट्रेन में जिन्दा जलाने का दुसाहस मुस्लिम कट्टर पंथियों ने किया और हिन्दूओं ने प्रतिकार लिया तो प्रधान मन्त्री की कुर्सी पर बैठे अटल जी की आंखों से हिन्दूओं के लिये दो आँसू भी नहीं टपके मगर उन का “सिर शर्म से झुक गया” था क्यों कि उन की कुर्सी की टांगे डाँवाडोल होने लग गयी थी। उस के बाद तो वाजपाई जी ने मुस्लिम तुष्टीकरण करने के लिये योजनाओं की झडी लगा दी थी। सब से पहले नरेन्द्र मोदी को एक ‘राजनैतिक-अछूत’ बना दिया, पाकिस्तानियों के लिये भारतीय अस्पतालों में मुफ्त इलाज की सुविधायें पैदा कर दीं, समझौता ऐक्सप्रेस गाडियां चलवा दीं – लेकिन आज तक ऐक भी पाकिस्तानी आतंकी भारत के हाथ नहीं लगा। पाकिस्तानी सरकार तो अपने आतंकियों को बचाने में लगी थी – लेकिन बी जे पी के शासन में आज तक हिन्दू पुलिस कर्मी आतंकियों का ‘संहार करने के जुर्म’ में जेलों में बन्द हैं या सजायें काट रहै हैं। सत्ता के लिये राम भक्त वाजपाई राम विरोधी करुणानिधि के साथ गठ बन्धन धर्म ही तो निभाने लग गये। अलगाव वादी फारुख अबदुल्ला और औमर अबदुल्ला को ‘धारा 370 विरोधी वाजपाई’ के मन्त्री मण्डल में शामिल करना कौन से काशमीरी हिन्दूओं के हित में था जो आज भी शर्णार्थी बन कर अपने ही देश में भटक रहै हैं? उन सब प्रयत्नों का नतीजा क्या निकला?
तुष्टीकरण का नतीजा
अटल जी उस समय की ‘नौसिख्यिा’ सोनियाँ के आगे चुनाव हार गये। सत्ता हाथ से जाते ही ‘ सत्ता सुख भोगने वाले साथी’ ऐन डी ऐ का साथ छोड गये। निर्जीव काँग्रेस पुनः जीवित हो उठी। बी जे पी ने हिन्दूओं का विशवास ही खो दिया। मुस्लिम वोट तो उन्हें पहले भी नहीं मिलते थे और ना ही अब मिलें गे। आज हिन्दू भी पूछते हैं “जब बी जे पी सत्ता में थी तो उस ने हमारे लिये क्या किया?” – कुछ भी तो नहीं! हिन्दू सिर्फ धर्म निर्पेक्षता का बोझ अपने सिर पर ढोते रहै और आतंकवादियों से पिटते रहै! ‘इण्डिया शाईनिंग’ के प्रचार के बावजूद आडवाणी ‘प्राईम मिन्स्टर इन वेटिंग’ ही रहै। – और आगे उम्र भर भी यही रहैं गे! उन के सिर पर तो भागवान राम का ही श्राप है। वह प्रधान मन्त्री नहीं बन सकते और उन अगुवाई के कारण बी जे पी की सरकार भी नहीं बने गी।
धर्म-निर्पेक्ष्ता का नया नाम ‘गठ बन्धन धर्म’
अब 2014 से पहले ऐक बार फिर बी जे पी हिन्दुत्व को दर किनार कर के ‘विकास’ के नाम पर हिन्दूओं के साथ खिलवाड करने जा रही है। ऐन डी ऐ का रंग मंच सजाया जा रहा है – रंग मंच के अभिनेता वही जाने पहचाने पुराने लोग हों गे जिन की अगुवाई अब नितीश कुमार करें गे। सत्ता मिल गयी तो फिर अगले पाँच वर्ष तक बी जे पी अपना गठ बन्धन धर्म निभाये गी। हिन्दू जहाँ अब हैं वहीं पडे रहैं गे। आज जब इस देश से हिन्दूओं की पहचान ही मिटाई जा रही है तो हिन्दू ‘विकास’ किस के लिये कर रहै हैं?
जब अटल जी को पहली बार प्रधान मन्त्री पद मिला तो वह बी जे पी सरकार के लिये पर्याप्त वोट नहीं जुटा पाये थे और उन्हें 13 दिन के अन्दर ही इस्तीफा देना पडा था। बी जे पी को साम्प्रदायकता के कारण ‘राजनैतिक-अछूत’ माना जाता था। वही साम्प्रदायकता का टीका बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के माथे से आज तक नहीं उतरा और अब अपने हिन्दू प्रेम पर बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता ‘शर्मसार’ हो कर अपने ‘सैक्यूलर’ होने की दोहाई ही देते रहते हैं।
हिन्दूओं की आत्म ग्लानि
बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता क्यों नहीं डंके की चोट पर कहते कि वह हिन्दू हैं, उन्हें हिन्दू होने का गर्व है, भारत हिन्दूओं का जन्म स्थान है और हम अपना देश धर्म निर्पेक्षता की आड में दूसरों का हथियाने नहीं दें गे , उसे विश्व में ‘सार्वजनिक स्थल’ नहीं बनने दें गे? क्यों छोटे मोटे परिवार वादी, घटकवादी नेता बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं को हिन्दू प्रेम के कारण लताड कर चले जाते हैं? केजरीवाल जैसे लोग देश से बहुसंख्यक हिन्दूओं की अनदेखी कर के अल्पसंख्यकों को आँखों पर बैठाते हैं और हिन्दू साम्प्रदायक्ता का गुनाह सिर झुका कर कबूल कर लेते हैं।
बटवारे के पश्चात अगर कोई मुस्लिम कट्टर पंथियों का हर बात में खुले आम समर्थन करे तो वह प्रगतिशील और सच्चा सैक्यूलर माना जाता है लेकिन अगर कोई हिन्दूओं को हिन्दू आस्थाओं के साथ जीने को कहै तो बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ‘साम्प्रदायक’ और ‘दकियानूस’ माने जाते हैं और आज तक भारत माता की जय पुकारने वाले यह ‘स्पूत’ भी अपने हिन्दू प्रेम को साम्प्रदायकता ही मान बैठे हैं। कितनी शर्म की बात है कि जब मुलायम सिहं, लालू प्रसाद और दिग्विजय सिहं जैसे टुच्चे विरोधी उन्हें भगवा आतंकी होने की गालियां सुनाते हैं तो बी जे पी और आर एस एस के नेता शर्म से अपना सिर झुका लेते हैं। गर्व के साथ अपना हिन्दू प्रेम स्वीकारने के बजाये गाली देने वालों को नेहरू, पटेल और जयप्रकाश नारायण के सर्टिफिकेटों का हवाला दे कर कहते हैं कि उन ‘राष्ट्रीय’ नेताओं की नजर में तो वह ‘साम्प्रदायक’ नहीं हैं। नितिश जैसे मुस्लिम प्रस्त को फटकारने के बजाये यही नेता जे डी यू को मनाने के लिये नरेन्द्र मोदी को नकारने के बहाने खोजने में लग जाते हैं। अगर इन्हें अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण ही करते रहना है तो फिर अलग पाकिस्तान बनाने की क्या जरूरत थी? देश की अखण्डता को क्यों नष्ट होने दिया?
हिन्दू जन्म भूमि का अपमान
हमें अपना सेकूलरज्मि विदेशियों से प्रमाणित करवाने की कोई आवश्यक्ता नहीं। हमें अपने संविधान की समीक्षा करने और बदलने का पूरा अधिकार है। इस में हिन्दूओं के लिये ग्लानि की कोई बात नहीं कि हम गर्व से कहें कि हम हिन्दू हैं। हमें अपनी धर्म हीन धर्म-निर्पेक्षता को त्याग कर अपने देश को हिन्दू राष्ट्र बनाना होगा ताकि भारत अपने स्वाभिमान के साथ ऐक स्वतन्त्र देश की तरह विकसित हो सके। हमारी जन्म भूमि अन्य लोगों के लिये कोई सार्वजनिक सराय नहीं है कि जो भी आये वह अपना बिस्तर बिछा कर कहै कि अब देश वासी सैलानियों के आदेशानुसार चलें।
स्नातन धर्म ही ऐक पूर्णत्या मानव धर्म है। समस्त मानव जो प्राकृतिक नियमों तथा स्थानीय परियावरण का आदर करते हुये जियो और जीने दो के सिद्धान्त का इमानदारी से पालन करते हैं वह विश्व में जहाँ कहीं भी रहते हों, सभी हिन्दू हैं।
तुष्टीकरण की जरूरत नहीं
अकेले नरेन्द्र मोदी ने ही प्रमाणित किया है कि ‘तुष्टिकरण’ के बिना भी चुनाव जीते जा सकते हैं। दिल्ली में बैठे बी जे पी के नेताओं को कोई संशय नहीं रहना चाहिये कि आज भारत के राष्ट्रवादी केवल मोदी की अगुवाई को ही चाहते हैं। देश के युवा अपनी हिन्दू पहचान को ढूंड रहै हैं जो धर्म निर्पेक्षता के झूठे आवरणों में छुपा दी गयी है। जो नेता इस समय मोदी के साथ नहीं होंगे वह चाहे बी जे पी के अन्दर हों या बाहर, हिन्दूओं के लिये उन का कोई राजनैतिक अस्तीत्व ही नहीं रहै गा। मनमोहन सोनिया जैसा समीकरण बी जे पी में आडवाणी और सुषमा स्वराज का है। फर्क सिर्फ इतना है कि मनमोहन-सोनिया कामयाब रहै हैं और सुषमा-आडवाणी कामयाब नहीं हों गे। वह अपने साथ बी जे पी को भी ले डूबें गे। जनता सिर्फ नरेन्द्र मोदी को ही चाहती है।
अभी फिर से बी जे पी में ही सत्ता पाने के लिये हिन्दुत्व को दर किनार करने की आवाजें उठने लगी हैं ताकि सैक्यूलर जिन्ना ब्राण्ड आडवाणी को सत्ता पर बैठाया जा सके। इस से साफ जाहिर है कि बी जे पी के इन गिने चुने नेताओं को केवल सत्ता चाहिये। उन्हें भारतीय संस्कृति, धारा 370 या समान आचार संहिता या देश को ऐक सूत्र में बान्धने आदि से कोई सरोकार नहीं। भारत माता की जय, वन्दे मात्रम आदि सब ढकोसले हिन्दूओं को बातों से ही संतुष्ट करने को चोचले हैं। मर चुके ‘जय चन्द’ को कोसने से कोई फायदा नहीं, उन्हें समझने और पहचानने की ज़रूरत है।
गर्व से कहो हम हिन्दू हैं
बी जे पी की नाव में जो छेद आडवाणी एण्ड कम्पनी ने किये हैं उन में से पानी भरना शुरु हो चुका है। अभी भी वक्त है । फैसला करो “भारत सर्वोपरि के साथ नरेन्द्र मोदी” चाहिये या ‘टोपी-तिलक ब्राण्ड सत्ता के’ लालच में नितिश।
भारत के राष्ट्रवादी युवाओं को चाहिये कि नेताओं की जय जयकार करने और उन्हें फूल मालायें पहनाने से पहले अब इन नेताओं की सक्ष्मता का प्रमाण खुद देखें, परखें, और पहचान करें। जिन घोडों पर बैठ कर रेस में उतरना है कहीं वह लंगडे तो नही!
बी जे पी के केवल उन्हीं उमीदवारों पर चुनाव में मतदान कीजिये –
- जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, स्वामी राम देव के भारत स्वाभिमान, या विश्व हिन्दू परिषद में से किसी ऐक के एक्टिव सदस्य हों।
- जो समान आचार संहिता लाने के पक्ष में हों।
- गर्व के साथ हिन्दी भाषा का प्रयोग करते हों।
- जिन के परिवार भी पिछले पांच वर्षों से हिन्दू संस्कृति से जुडे दिखाई देते हों।
अगर बी जे पी नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में अपने आत्म-विशवास के साथ अपना ऐजेन्डा ले कर 2014 के चुनाव में उतरे गी तो निश्चय ही विजय हासिल होगी। ऐन डी ऐ के नखरे उठाने की जरूरत नहीं। अगर बी जे पी ने अब हिन्दुत्व को दर किनार किया तो यह पार्टी की आत्म हत्या होगी और कोई ना कोई हिन्दू संगठन बी जे पी का राजनैतिक स्थान ले ले गा।
चाँद शर्मा
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