हिन्दू धर्म वर्तमान राजनैतिक परिपेक्ष में

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मर्दानी लडकियां-बेचारे पुरुष


हरियाणा की मर्दानी लडकियों ने ऐक बार तो सभी पुरुषों की रीढ़ की हड्डी तक को झिंझोड के रख दिया है। हरियाणा सरकार ने छानबीन और प्रशासनिक सुधार करने से पहले उन्हें पुरस्करित कर के युवतियों को अपने आर्थिक पैरों पर खडे होने के लिये ऐक नयी दिशा भी प्रदान कर दी है। जनता का पुलिस प्रशासन और न्यायलयों की क्षमता पर से विशवास गुरुत्व आकर्ष्ण से भी ज्यादा तेजी के साथ नीचे गिरता जा रहा था लेकिन अब उस विशवास की पुनर्स्थापित करने की जरूरत ही नहीं रही।

नारी स्शक्तिकरण

जंगल न्याय रोज मर्रा की बात हो गयी है। कहीं भी दो चार युवतियां ऐक जुट हो कर किसी भी राहचलते मनचलों को ना सिर्फ घेर कर पीट सकती हैं बल्कि उन से वसूली कर सकती हैं। सभी पुरुष रेप और यौन शोशष्ण के आरोपी हो सकते हैं क्योंकि महिलाओं की तरफ झुकी हुयी कानून की शक्ति अब महिलाओं के पास है । बस ऐफ़ आई आर ही काफ़ी है। किसी छान बीन की ज़रूरत नहीं। महिलायें 5 वर्ष से 95 वर्ष तक के किसी भी पुरुष को आरोपित कर के आजीवन कारावास दिलवा सकती हैं। मुकदमें का फैसला आरोपित पुरुष के अगले जन्म से पहले नहीं आये गा और अपीलों में उन के भी दो तीन जन्म और निकल जायें गे।

अभी तो महिला आरक्षण बाकी है। अगर यही क्रम चलता रहा तो मृत पुरुष का दाह संस्कार करवाने से पहले पुलिस से प्रमाण पत्र लेना भी अनिवार्य हो जाये गा कि मृत के खिलाफ मृत्यु से ऐक घन्टा पूर्व तक यौन शोशण की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं हुयी। प्रमाण पत्र प्रस्तुत ना कर सकने की अवस्था में मृत के शरीर की फोरंसिक जांच होनी ज़रूरी हो जाये गी कि यौन अपराध के कोई सबूत उस के शरीर पर नहीं मिले – तभी दाह संस्कार हो सके गा। इस लिये पुरुषो को चाहिये कि अपनी सुरक्षा के लिये आम-आदमी सुरक्षा दल बनायें। 

कानूनी वर्गीकरण

समान आचार संहिता तो दूर, जिस तेजी से हमारे राजनेता समाज में लिंग-भेद पर भी समाज में कानूनी वर्गीकरण कर के आये दिन नये नये कानून बनाते जा रहै हैं और हमारी अदालतें आंखें मूंदे उन की वैधता को मंजूरी देती जा रही हैं उस अवस्था में अब जरूरी हो गया है कि पुरुषों के बारें में भी कुछ विशेष कानून और व्यवस्थायें होनी चाहियें।

पुरुषों को चाहिये कि अपने इलाके के राजनेता से पुरुष रक्षा कानून, दलित पुरुष रक्षा कानून तथा केन्द्र और हर राज्य में पुरुष आयोग, पुरुष बस सेवा, पुरुष थाने आदि की नयीं मांगे करनी शुरु कर दें।

हरियाणा की महिलायों से प्रेरणा पा कर अब युवतियां जीन्स पर कोई रोक स्वीकार नहीं करें गी क्यों कि बेल्ट कारगर साबित हुयी है। ‘घर की चार दिवारी में कैद पुराने जमाने की महिलायें’ सोने चाँदी या किसी अन्य धातु की जंजीरों में बंधी रहती थीं। हाथ पाँव में मोटे मोटे कडे पहनती थीं ताकि बिना आवाज किये कहीं भाग ना सकें लेकिन अब यवतियां चाव के साथ उन्हीं भारी कडों और जंजीरों को अपनी रक्षा के लिये और पुरुषों के दांत तोडने के लिये अपने आप पहनने लगें गी।

पुरुष-रक्षा के उपाय

जबतक पुरुषों की रक्षा के लिये विशेष उपाय कार्यरत नहीं हो जाते, पुरुषों को अपनी रक्षा के लिये नीचे लिखे उपाय अपने आप ही अपना लेने चाहियेः-

  • अपने अपने इलाकों में राहुल सुरक्षा ब्रिगेड या केजरीवाल सुरक्षा केन्द्र गठित करें।
  • अगर कहीं भी 4-5 समार्ट लडकियों के संदिग्ध हालत में घूमते देखें तो पुलिस, आम आदमी सुरक्षा दल को तुरन्त सम्पर्क करें।
  • अकेले निर्जन पार्कों, सडकों, लाईबरेरियों, होटलों आदि स्थानों पर ना जायें।
  • शाम को अन्धेरा होने से पहले घर वापिस आ जायें।
  • रात को भोजन के बाद घर से अकेले बाहर नहीं निकलें। अपनी सुरक्षा के लिये जूडो-कराटे आदि सीखें, और नित्य व्यायाम करें।
  • अपने कपडों में गुप्त तरीके से छुपा कर ऐक फुट लम्बी सुरक्षा-झाडू हमेशा अपने साथ रखें।
  • दफ्तर के बाद कभी भी ओवर-टाईम नहीं करें।
  • अकेले किसी टायलेट वगैरा में भी नहीं जायेँ।
  • भीड वाले इलाकों में सुरक्षित जाने आने के लिये हमेशा अपने शरीर को पूरा ढक कर रखें और स्त्रियों के से हाव भाव भी अपनायें।
  • जहाँ कहीं भी 3-4 महिलायें दिखाई पडें तो तुरन्त किसी सुरक्षित स्थान पर तेज़ी से चले जायें।

याद रखिये

पुरुषों को विरोध करना है तो हरियाणा की पूजा और आरती के बजाये पहले उन कानूनों का करो जो इन्दिरा गांधी से ले कर सोनियां तक कांग्रेसी सरकारों ने अपने वोट बैंक के लिये दलितों, महिलाओ और अल्प-संख्यकों आदि का संरक्षण करने के बहाने से बनाये और अभी भी लागू हो रहै हैं। किसी भी देश में इस तरह के वाहियात कानून नहीं हैं कि खाली रिपोर्ट के आधार पर आरोपी को हवालात में बन्द कर दो और उस की जमानत भी ना हो। कानून के सामने महिला हो या परुष, दोनों के लिये अगर बराबरी है तो कानून भी ऐक जैसे होने चाहियें।

अब तो महिलाओं, दलितों और अल्प-संख्यकों को नौकरी या किसी भी तरह की मदद देने से पहले लोग दस बार सोच कर इनकार ही करें गे। बुद्धिमानी भी इसी में है कि सिर दर्द क्यों लिया जाये।

महिला, दलित या अल्प-संख्यक आयोगों का भी कोई काम नहीं जो अपनी सुविधा और पसंद के अनुसार दखल देते हैं। केवल पुलिस प्रशामन और कोर्ट सक्षम होने चाहियें।

मीडिया का काम केवल खबर देने तक का होना चाहिये उस पर बहस या राय देने का नहीं। अगर खबर तथ्यों पर नहीं तो मीडिया की भी कानून के सामने अपराधी जैसी जवाबदारी होनी चाहिये।

हमारे मीडिया को सनसनीखेज़ भाषा में बहस करने और ढोल पीटने के लिये ऐक मुद्दा और मिल चुका है – “ सावधानी हटी तो पिटाई घटी – ऐफ आई आर हुयी तो… सोच लीजिये…बस सोचते ही रह जाओ गे। बिना पिटे जीना है तो जाग जाईये – चैन से रहना है तो कहीं भाग जाईये। ”

चांद शर्मा

त्रिशंकु चुनावी नतीजे


बिना परिश्रम अगर कुछ प्राप्त हो जाये तो उस की कीमत नहीं आंकी जाती। यह बात हमारे लोकतन्त्र और मत देने के अधिकार के साथ भी सार्थक है। कहने को दिल्ली में 68 प्रतिशत मत दान हुआ जो पिछले चुनावों से ज्यादा है लेकिन इस से कहीं ज्यादा मत दान दूसरे राज्यों में हुआ है। देश की राजधानी से 32 प्रतिशत पढे लिखे और जागरूक मत दाता वोट डालने नहीं गये क्यों कि उन्हें लोकतंत्र के बजाये आराम करना ज्यादा पसंद था। अगर दिल्ली में आज त्रिशंकु विधान सभा है तो उस के लिये दिल्ली के मतदाता जिम्मेदार हैं जो अपने वोट का महत्व नहीं समझे और भ्रामित रहै हैं। प्रजातंत्र को सफल बनाने के लिये वोटरों में जागरुक्ता होनी चाहिये । जो मतदाता दो मुठ्ठी अनाज और ऐक बोतल शराब पर बिक जायें उन्हें तो मत दान का अधिकार ही नहीं होना चाहिये। हमारे देश की दुर्दशा का ऐक मुख्य कारण अधिक और अनाधकृत मतदाता हैं। ऐसे नेता चुन कर आते हैं जिन्हें बाहर से ताला लगा कर रखना पडता है कि वह दूसरे राजनैतिक दल के पास बिक ना जायें – ऐसे प्रजातंत्र पर शर्म आनी चाहिये।

लोकतन्त्र के मापदण्ड

अगर कोई भी राजनैतिक दल विधानसभा या संसद के चुनाव में 51 प्रतिशत से कम प्रत्याशी खडे करता है तो ऩिशचित है कि वह सरकार नहीं चलायें गे। वह केवल विजयी उमीदवारों के बलबूते पर सिर्फ जोड-तोड ही करें गे। यही बात स्वतन्त्र प्रत्याशियों पर भी लागू होती है। उन की निजि योग्यता और लोकप्रियता चाहे कुछ भी हो लेकिन सफल हो कर वह अपने आप को बेच कर पैसा कमाने या कोई पद प्राप्त करने के इलावा जनता के लिये कुछ नहीं कर सकते। उन्हें वोट देना ही बेकार है। लोकतंत्र में राजनैतिक दलों का महत्व है क्यों कि उन के पास संगठन, सोच, अनुशासन और जवाबदारी होती है।

केवल विरोध के नकारात्मिक मुद्दे पर संगठन खडा कर के देश का शासन नहीं चलाया जा सकता। ऐमरजैंसी के बाद जनता पार्टी सिर्फ इन्दिरा गाँधी के विरोध के आधार पर ही गठित करी गयी थी जिस में मुलायम, नितिश, लालू, राजनारायण, चरण सिहं, बहुगुणा, वाजपायी, जगजीवनराम से ले कर हाजी मस्तान आदि तक सभी शामिल थे। तीन वर्ष के समय में ही जनता पार्टी अपने अन्तर-विरोधों के कारण बिखर गयी थी और आज उसी पार्टी के बिखरे हुये टुकडे कई तरह के जनता दलों के नाम से परिवारवाद और व्यक्तिवाद को बढावा दे रहै हैं। आम आदमी पार्टी भी कोई संगठित पार्टी नहीं बल्कि सिर्फ भ्रष्टाचार के विरुध जनता के रोष का प्रतीक है जिस के पास सिर्फ ऐक मात्र मुद्दा है जनलोकपाल बिल पास करवाना और सत्ता में बैठना। इस से आगे देश की दूसरी समस्याओं और उन के समाधान के बारे में नीतियों के बारे में उन के पास कोई सकारात्मिक सोच, संगठन, आदर्श, अनुभव या टेलेन्ट नहीं है। जैसे गलियों से आकर हताश लोगों की भीड चौराहों पर भ्रष्टाचार के विरूध नारे लगाने लग जाती है तो अगले चौराहे पर जाते जाते भीड का स्वरूप भी घटता बढता रहता है। उन को संगठित रखने का कोई भी ऐक मात्र मुद्दा भारत जैसे देश का शासन नहीं चला सकता। शासक के लिये कुछ गुण भी चाहियें। शालीनता, गम्भीरता, योग्यता और अनुभव आदि आम आदमी पार्टी के सदस्यों में बिलकुल ही नहीं दिख रहै। यह केवल उग्रवादी युवाओं का अनुभवहीन नकारात्मिक जमावडा है जो सत्ता मिलने पर ऐक माफिया गुट का रूप ले ले गा।

आम आदमी पार्टी की परीक्षा

दिल्ली के 68 प्रतिशत मतदाताओं ने बी जे पी को ही स्पष्ट मत से सब से बडी पार्टी माना है। केजरीवाल ने दिल्ली का चुनाव काँग्रेस के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ा था इसलिये त्रिशंकु विधान सभा बनने की सूरत में वह काँग्रेस को समर्थन नहीं दे सकते लेकिन उन से बिना शर्त समर्थन ले तो सकते हैं। सकारात्मिक राजनीति करने के लिये उन्हें बी जे पी को समर्थन देना चाहिये था – और सरकार के अन्दर रह कर या बाहर से सरकार के भ्रष्टाचार पर नजर रखनी चाहिये थी। लेकिन केजरीवाल ने तो नकारात्मिक राजनीति करनी है इसलिये वह दोबारा चुनाव के लिये तैय्यार है जिस का खर्च दिल्ली के लोगों पर पडे गा।

अगर केजरीवाल स्वयं सरकार नहीं बना सकता तो चाहे तो काँग्रेस से समर्थन ले ले या बी जे पी से – सरकार बना कर अपना कुछ ऐजेण्डा तो पूरा कर के दिखायें। दिल्ली से भ्रष्टाचार खत्म करना, नागरिक सुरक्षा, महंगाई, बिजली – पानी के रेट कम करना आदि पर तो कुछ यथार्थ में कर के दिखलायें। वह जिम्मेदारी से भाग क्यों रहै हैं।

लोकतन्त्र के लिये खतरा

पिछले साठ वर्षों में काँग्रेस ने देश का ताना बाना ऐसा भ्रष्ट किया है कि आज सवा अरब की आबादी में 500 इमानदार भारतीय ढूंडने मुशकिल हैं जो संसद में बैठाये जा सकें। काँग्रेस के भ्रष्टाचार से तंग आ कर भारत के लोग आजतक इमानदार लोगों को ही तलाशते रहै हैं – चाहे कहीं से भी मिल जायें। अब कुछ विदेशी और कुछ देसी तत्व नरेन्द्र मोदी की राष्ट्रवादी बातों से इतना परेशान हैं कि वह भारत की राजसत्ता नरेन्द्र मोदी के बजाये किसी दूसरे के हाथ में देने का षटयंत्र कर रहै थे जो अपनी ‘इमानदारी’  का ढोल पीट कर काँग्रेस का विकल्प बन सकें और उसी खोज में उन्हें केजरीवाल की प्राप्ति हो गयी। उन की आम आदमी पार्टी जिसे अब आराजिक्ता आवाहन पार्टी कहना सही होगा अब देश को भूल-भूलियां में धकेलने के लिये विदेशियों की पैदायश के तौर पर उभर चुकी है। यह तसवीर आने वाले लोकसभा चुनाव में और स्पष्ट हो जाये गी। यह पार्टी नरेन्द्र मोदी की लोक प्रियता में सेंध लगाये गी और मीडिया इसे बढ चढ कर इस्तेमाल करे गा।

क्या आम आदमी पार्टी पूरे हिन्दुस्तान में भ्रष्ट काँग्रेस का विकल्प बन सकती है ? क्या उन के पास इतना संगठन, योग्यता, अनुभव और ‘इमानदार’ प्रशासक हैं कि वह देश को चला सकें ? भ्रष्टाचार से जूझने के जोश में हमारे युवा बिना सोचे समझे केजरीवाल के मकड़ जाल में फंसते चले जा रहै हैं । वह नहीं जानते कि इस पार्टी के पीछे कौन लोग खडे हैं। युवाओं ने शायद इस पार्टी के नेताओं के ये बयान शायद याद नहीं रखे…

  • आप कांग्रेस से गठबंधन कर सकती है – शाजिया इल्मी
  • तरुण तेजपाल निर्दोष है – शाजिया इल्मी
  • नरेन्द्र मोदी मानवता का हत्यारा है – संजय सिंह
  • (भगवान शिव को) ठंड में हिमालय पर बैठा दिया और कपडे भी नही दिए बिचारे को और सर के ऊपर से गंगा निकाल दी तो वो शंकर तांडव नही तो क्या डिस्को करेगा – कुमार विशवास
  • पदम् श्री मेरे पाँव की जूती है – कुमार विशवास
  • इशरत जहाँ मासूम थी – योगेन्द्र यादव
  • 42%भारतीय चाहते हैं की राहुल गाँधी जी प्रधानमन्त्री बने – योगेन्द्र यादव
  • बटला हाउस फर्जी है – अरविन्द केजरीवाल
  • राजीव गाँधी इकलौते ऐसे नेता थे, जिन्होंने आम आदमी की भलाई के लिए काम किया – अरविन्द केजरीवाल
  • राहुल गाँधी जी को देश की समस्याओं की समझ है – अरविन्द केजरीवाल
  • भारत के लिए हिन्दू शक्तियां खतरा है – प्रशांत भूषण
  • कश्मीर को पकिस्तान को दे देना चाहिए – प्रशांत भूषण

AAP वाले सिर्फ दिल्ली में आराजिक्ता फैलाने के इलावा और कुछ नहीं कर सकें गे। सात आठ यार दोस्त अगर कहीं इकट्ठे बैठ जायें जो ऐक दूसरे को ज्यादा जानते भी नहीं, चुनाव से कुछ वक्त पहले ही मिले हैं, तो उन को सरकार नहीं कहा जा सकता वह केवल ऐक चौकडी ही होती है जिसे अंग्रेड़ी में कैकस कहते हैं।

आम आदमी पार्टी पूरी तरह से हिन्दू विरोधी और मुस्लिम समर्थक पार्टी है। उन के चुनावी उमीदवार आम तौर पर वह लोग हैं जो वर्षों तक काँग्रेस या बी जे पी के टिक्ट पाने के लिये झक मारते रहै हैं और अब इमानदारी का नकाब लगा कर आम आदमी बन बैठे हैं। यह सिर्फ भ्रष्टाचार विरोधी वोटों का बटवारा करवा कर काँग्रेस का फायदा करवायें गे। वह नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में राष्ट्रवादी सरकार बनने के रास्ते में रोड़े अटकायें गे।

चुनौती स्वीकार करो

अगर केजरीवाल और उन के साथियों में हिम्मत है तो अभी काँग्रेस या बी जे पी से बिना शर्त समर्थन के आधार पर कुछ तो कर के दिखायें। देश के शासन की बागडोर के साथ जुआ नहीं खेला जा सकता। आम आदमी पार्टी की ऐकमात्र सोच है कि सिर्फ वही अकेले इमानदार हैं और बाकी सभी बेईमान हैं। केजरीवाल का कहना था कि जब वह दिल्ली में अपनी सरकार बनायें गे तो राम लीला ग्राउंड में विधान सभा का सत्र करें गे और उस में जनलोक पाल बिल पास करें गे। उतना कर देने से भ्रष्टाचार खत्म हो जाये गा। इमानदार बनने के लिये नारे लगाने के बजाये इमानदार बन कर दिखाओ। कम से कम अपना स्टेंड तो साफ करो। पहली चुनौती को स्वीकार करो, सरकार बनाओ और कुछ कर के दिखाओ।

केजरीवाल तो अब फिर से चुनाव के लिये भी तैय्यार हैं जैसे कोई जादू उन के पक्ष में हो जाये गा। अगर दोबारा चुनाव करवाये जायें और फिर भी त्रिशंकु परिणाम आये तो कितनी बार दिल्ली में केजरीवाल नया मतदान करवाते रहैं गे ? अगर यह हाल लोकसभा के चुनाव में हुआ तो बार बार चुनाव करवाने और देश में राजनैतिक अस्थिरता पैदा करने के लिये कौन जिम्मेदार होगा ? अगर हम चाहैं तो इस के विकल्प तलाशे जा सकते हैं जैसे किः-

  1. त्रिशंकु परिणाम के कारण या तो अगले पाँच वर्षों तक दिल्ली के नागरिकों को लोकतंत्र से वंचित किया जाये और उप राज्यपाल का शासन लागू रहै।
  2. दिल्ली में चुने गये विधायकों को इकठ्ठा कर के उन्हीं में से ऐक वैकल्पिक सरकार बनाई जाये जो सदन में पार्टी रहित साधारण बहुमत के अनुसार पाँच वर्ष तक काम करे और चाहे तो अपना मुख्यमंत्री आवश्क्तानुसार बदलती रहै।
  3. दोबारा या जितनी भी बार चुनाव कराये जायें उन का खर्च मत दाताओं से अतिरिक्त कर के तौर पर वसूला जाये।

केजरीवाल जी – हरियाणा और लोकसभा का लालच करने से पहले जो कुछ दिल्ली में प्लेट पर प्राप्त हुआ है उस की चुनौती में सफल हो कर दिखाओ यदि ऐसा नहीं करते तो आम आदमी पार्टी जनता के साथ ऐक धोखा है उसे राजनैतिक पार्टी कहलाने का कोई अधिकार नहीं।

चाँद शर्मा

मीडिया की माफ़ियागिरी


मैं संत आसाराम या किसी भी धर्मगुरू का औपचारिक शिष्य नहीं हूँ। आसाराम आज कल अपने अभिमान और छिछोरेपन की वजह से अपमानित हो रहै हैं तथा घृणा और उपहास के पात्र बन गये हैं। उन का सब से बडा अपराध है कि उन्हों ने गुरू परम्परा को कलंकित किया है। उन के लिये अब ऐक ही रास्ता है कि चरित्र-हीनता के जो कुछ दोष उन पर लगे हैं उन सभी से अपने आप को कोर्ट में निरापराधी साबित करें या फिर कडी सजा भुगतने के लिये तैय्यार रहैं।

लेकिन आसाराम के गुनाहों से कहीं अधिक हमारा मीडिया गुनाहगार है जो केवल आरोपों की सूची के आधार पर कम से कम अब तक के ऐक जन-मान्य संत का चरित्र हनन करने में गैर कानूनी ढंग से मनमानी कर रहा है। जब तक आसाराम के विरुद्ध कोर्ट में कोई आरोप परमाणित नहीं हो जाता तब तक हमारे देश के कानून अनुसार आसाराम और उन का परिवार निरापराध ही माना जाये गा। मीडिया को कोई हक नहीं कि वह दिन रात उस व्यक्ति के चरित्र पर कीचड उछालता रहै जिस को देश के हजारों लोग संत मानते रहै हैं और कई आज भी मानते हैं।

अगर मीडिया को पीडित महिलाओं की सहायता करनी है तो उन्हें आर्थिक सहायता दे दें ताकि वह अपने लिये वकील कर सकें, उन महिलाओं को आश्रय दे दें जिन की सुरक्षा को खतरा है या जिन का पास साधन नहीं हैं – ताकि वह कोर्ट में जा कर अपराधी के विरूद्ध सबूत पेश कर सके। उन पीडितों के चेहरे ढक कर टी वी चैनलों पर अपनी वर्षों पुरानी व्यथा सुनाना नाटकबाजी के सिवाय और कुछ नहीं।

आज कल दो तीन आर्थिक तौर से बीमार किसम के टी वी सुबह से शाम तक आसाराम और उस के परिवार के विरुद्ध जो आनाप शनाप बकवास करते रहते हैं उन पर अंकुश लगना चाहिये और उन के खिलाफ कडी कारवाई होनी चाहिये। अगर ऐसा नहीं होता तो यह साफ है कुछ धर्मान्त्रण करवाने वाले हिन्दू विरोधी तत्व ऐक हिन्दू संत को अपमानित करने का यत्न कर रहै हैं और हमारा समाज तथा सरकारी तन्त्र यह सब कुछ खामोशी का आवरण ओढ कर देख रहा है। पहले स्वामी नित्या नन्द को, और फिर निर्मल बाबा को टीवी चैनलों के माध्यम मे दुष्प्रचार से बदनाम किया जा चुका है। अब आसाराम इस का शिकार हो रहा है । फिर स्वामी रामदेव का नम्बर लगेगा। शर्म की बात है कि ईर्षालु किस्म के कुछ बिकाऊ संत भी आसाराम के विरुद्ध इस घिनौने खेल में जुडे हुये हैं।

हिन्दू संत समाज अपने इतिहास से ही कुछ सीखे और आसाराम के विरुद्ध मीडिया प्रचार का विरोध करे। अगर पीडित महिलाओं को अपनी कहानी टीवी पर सुनानी है तो उन्हें चेहरा छुपाने के बजाये खुल कर बोलना चाहिये ताकि जनता उन की सच्चाई को भी परख सके। उन की व्यथा पर  तो अब निर्णय तो कोर्ट ने लेना है तो उन्हें अपनी कहानी जनता के बजाये कोर्ट को ही सुनानी चाहिये। ढके हुये चेहरे के पीछे जनता के सामने तो कोई भी किसी के खिलाफ कुछ भी बोल सकता है।

चांद शर्मा

भगवान, शैतान या इनसान संत आसाराम


आसाराम के भक्तों के लिये संत आसाराम भगवान की तरह हैं जैसे कांग्रेसियों, कम्यूनिस्टों और धर्मान्तरण करने वालों के लिये वह ऐक शैतान हैं। दोनों विचारधारायें बहस का विषय हो सकती हैं मगर इस में कोई शक नहीं रहना चाहिये कि आसाराम ऐक हिन्दू इनसान हैं और उन में ऐक इनसान की अच्छाईयां और बुराईयां शामिल हैं। वह हिन्दूओं को भारत में विदेशी पम्परायें त्याग कर हिन्दू आस्थाओं के साथ जीने को कहते हैं तो इस में बुरा क्या है? जो आरोप उन पर लगे हैं वह अब कानून का विषय हैं और उन का उत्तर कानूनी तरीके से ही दिया जा सकता है मगर जिस तरह से मीडिया उन पर कीचड उछाल रहा है इस के अधिकार मीडिया को किस ने दिया है? मीडिया के आलेख खबर नहीं सुना रहै वह सोचे समझे तरीकों से दुषप्रचार कर के हिन्दू आस्थाओं के प्रति भ्रान्ति फैला रहै हैं।

प्रश्न इस समय व्यक्तिगत नैतिकताओं और आस्थाओं का नहीं बल्कि भारत में हिन्दूओं की राजनैतिक पहचान का है जिस को ‘सैकूलर और स्वार्थी किस्म के राजनेताओं’, बिकाऊ मीडिया चैनलों, जिहादियों, धर्मान्त्रण कराने वालों और विदेशी कम्पनियों ने खतरें में डाल दिया है। इस लिये हिन्दूओं को यह कहने में तनिक भी झिझक नहीं होनी चाहिये कि उन विदेशी हिन्दू विरोधियों की तुलना में हमारा अपना हिन्दू संत ‘जो और जैसा भी है’ आदरणीय है। उस ने अगर कोई अपराध किया है तो उस की सजा उसे कानून देगा। क्या यह लोग अब जागे हैं कि आसाराम ने कई जगहों पर अतिकर्मण कर रखे हैं। पहले क्यों सो रहै थे? अपने आस पास देखें गे तो आप को हर नगर में राजनेताओं, मन्दिरों, मस्जिदों, गिरजा घरों, मजारों, और भूमाफियाओं के अतिकर्मण दिखाई दे जायें गे। आसाराम का केस अकेला नहीं है।

साधू संतों पर लांछन लगना भी कोई नई बात नहीं है। यौन उत्पीडन के आरोप इन्द्र देवता और ऋषि विश्वमित्र पर भी लगे थे, हिलण्यकशिपु और कंस आदि ने साधू संतों का परिताडण भी किया था और बर्बाद भी हो गये थे। कुछ समय पहले यही हिन्दू विरोधी गुट निर्मल बाबा पर भी आरोप लगा कर उन्हें गिरफ्तार करने का प्रचार कर रहै थे और अब झक मार कर बैठ गये हैं। स्वामी रामदेव को भी बदनाम करने के कांग्रेसी – कम्यूनिस्ट  मनसूबे बनते रहते हैं। भले ही कुछ बिकाऊ और सरकारी किस्म के संत मौके का लाभ उठाने की फिराक में भी रहते हैं परन्तु संतसमाज को ऐकजुट रहना चाहिये। आसाराम के Followers को भी निराश होने या अपना संयम खो बैठने की जरूरत नहीं। अगर उन की आस्था अपने गुरू में है तो अब अपने मन में यह दृढ़ निश्चय कर नें कि  आने वाले चुनाव में वह उस सरकार को सत्ता से उखाड फैंकें गे जिस ने उन के गुरू को अपमानित किया है।

जिन  राजनेताओं, पत्रकारों, और व्यक्तियों को संत आसाराम पर आस्था नहीं उन के लिये भी यह जरूरी है कि कम से कम वह देश के कानून में ही आस्था रखें और  अपना गैर कानूनी बकवासी किस्म का प्रचार बन्द करें जब तक कोर्ट संत आसाराम को आरोपी नहीं घोषित कर दे।

चाँद शर्मा

दुहाई आदर्शवाद की


कल तक आडवाणी जी बीमार थे इस लिये वह गोवा नहीं जा सके थे। उन की अनुपस्थिति में बी जे पी की संसदीय कार्यकारिणी ने विधिवत नरेन्द्र मोदी को प्रचार समिति का अध्यक्ष बना दिया। अधिवेशन से गैरहाजिर रहै अधिकांश नेताओं ने अपनी गैरहाजिरी के कारण भी सार्वजनिक कर दिये जिस से सभी का मन-मुटाव भी शान्त हो गया। राजनाथ सिहँ तथा नरेन्द्र मोदी ने आडवाणी जी से आशीर्वाद भी प्राप्त कर लिया और शुभ संकेतों के साथ बी जे पी का सम्मेलन सम्पूर्ण होगया – देश में जोश, आत्म विशवास और आशा की नयी किरण चमक उठी।

आज आडवाणी जी के स्वास्थ में अचानक सुधार होगया तो उन्हों ने अपना त्यागपत्र भी दे दिया। हैरानी इस बात की है कि कल तक बी जे पी के सभी अध्यक्ष निरन्तर आडवाणी जी के परामर्ष और आशीर्वाद से ही पार्टी को चला रहै थे तो फिर ऐक ही रात में भारतीय जनता पार्टी अपने ‘आदर्शों’ से कैसे गिर गयी और ‘पार्टी के नेता’ देश की चिन्ता छोड कर ‘स्वार्थी’ कैसे बन गये? ऐसी विकट स्थिति अचानक कैसे पैदा हो गयी जब कि आडवाणी जी अध्यक्ष से भी ऊपर पार्टी के सर्वे-सर्वा की तरह सम्मानित थे। उन का नेतृत्व ऐकदम विफल क्यों हो गया?

फेलैशबेक में देखें तो कुछ समय पहले आडवाणी जी ने अपने ब्लाग लेख में ऐक भविष्यवाणी की थी कि ‘2014 में ना तो काँग्रेस का और ना ही बी जे पी का नेता प्रधान मंत्री बने गा बल्कि कोई गैर NDA और काँग्रेस का नेता प्रधान मंत्री बन कर सरकार बनाये गा’। आडवाणी जी के त्यागपत्र के तुरन्त बाद आज ममता बैनर्जी ने भी न्योता दिया है कि गैर NDA और काँग्रेसी दल ऐक जुट हो कर 2014 में चुनाव के लिये फ्रंट बनायें। आडवाणी जी ने कहीं वह भविष्यवाणी अपने लिये ही तो नहीं करी थी? BJP से त्यागपत्र के बाद आडवाणी जी अपने आप को पूर्णत्या ‘ग़ैर बी जे पी’ और ‘गैर काँग्रेसी’ साबित कर सकते हैं। आडवाणी जी सीधी बात करने के बजाये इशारों में बातें करना ज्यादा पसंद करते हैं जिस की रिहर्सल उन्हों ने अपने महाभारत लेख में अभी अभी करी है।

साफ और स्पष्ट बात तो यह लग रही है कि चाहै संघ ने बी जे पी के अध्यक्षों को मनोनीत किया था लेकिन आडवाणी जी बी जे पी को अपने स्वार्थ के लिये परोक्ष रूप से स्वयं चलाना चाहते हैं ताकि वह NDA का मनवाँछित विस्तार कर के प्रधान मंत्री बन सकें, या फिर गैर NDA और गैर काँग्रेसी बन के अपनी ही भविष्यवाणी को सार्थक कर सकें। इस मानवी इच्छा में आदर्शवाद का कोई स्थान नहीं है। कल तक आडवाणी समर्थक भाजपाई नेता चुप हो कर नरेन्द्र मोदी के पीछे खडे हो गये थे परन्तु आडवाणी जी से शह पा कर वही NDA ब्रांड ‘सैक्यूलर पंथी’ ऐक बार फिर मोदी के रास्ते में कांटे बिछा सकते हैं। उन के नाम और कारनामें सर्व विदित हैं। आजतक वह आडवाणी की मेहरबानी से वह संसद में पिछले दरवाजे से बैठे आराम कर रहै थे लेकिन नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व से उन्हें कुछ जलन होना भी स्वाभाविक है।

आडवाणी जी अपने अहं और निजि आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये बी जे पी के सांवैधानिक निर्णय को बदलने के लिये गाँधी जी की तरह का भावात्मिक दबाव बना रहै हैं और देश के युवाओं के मनोबल को तबाह करने में जुटे हैं। लेकिन आज देश में प्रत्येक हिन्दू युवा अपनी पहचान पाने के लिये नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व की ओर आशापूर्वक देख रहा है। आडवाणी जी और उन के समर्थकों का युग हिन्दू युवाओं को अन्धकार में छोड कर समाप्त हो चुका है और नयी सुबह की किरणें फूट रही हैं। अगर आडवाणी आज बी जे पी छोड भी दें गे तो उन की हालत उस सूखे पत्ते की तरह हो गी जो पेड से गिर जाता है और केवल खाद बन जाता है।

देश को अब बीमार नेतृत्व नहीं चाहिये। गुजरात में हुए लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव में ‘विकास’ कोई मुद्दा नहीं था। काँग्रेस नरेन्द्र मोदी के सामने ‘विकास’ पर तो मूहँ ही नहीं खोल सकती। इस बार मुद्दा था गुजरात की असमिता, भारत की संस्कृति की पहचान और सुरक्षा का। काँग्रेस और मीडिया ने ‘गुजरात-दंगों’ का ढोल तो पीटा मगर मतदाताओं ने अपना फैसला स्पष्ट दे दिया है। वहाँ कोई ‘दंगे’ नहीं थे वह ‘जुल्म’ के खिलाफ ‘हिन्दू प्रतिकार’ था। 2014 के चुनाव में अगर बी जे पी विकास, घोटाले, तुष्टिकरण, आतंकवाद, गठबन्धन राजनीती की दल दल से अब बाहर निकल कर पहले भारत की हिन्दू पहचान को मुद्दा रख कर अकेली ही आगे बढे गी तो निश्चय ही जीत मिलेगी। देश के लोग विशेष कर युवा अब यही चाहते हैं।

आडवाणी जी जिस ऐन डी ऐ के कीचड में दोबारा बी जे पी को धकेलना चाहते हैं उस से बचने के लिये नरेन्द्र मोदी को दो तिहाई मत के साथ अपने दम पर ही सरकार बनाने दो। NDA में घटक दलों के स्वार्थी नेता किस तरह से अटल जी की सरकार को शिथल बनाते रहै थे यह किसी से छुपा नहीं है। वह अब फिर नये प्रधान मंत्री के साथ भी वही करें गे इस लिये बी जे पी को अपने दम पर ही आगे बढना होगा जिस के लिये कार्य कर्ताओं में जोश और आत्म विशवास है। इस आत्म विशवास के साथ आडवाणी जी अपनी निजि आकाक्षाओं की पूर्ति के लिये खिलवाड मत करें।

आडवाणी जी ने त्याग पत्र दे कर अन्य वृद्ध नेताओं के लिये ऐक अच्छी मिसाल तो कायम की है लेकिन अपनी और पार्टी को ऐक मजाक भी बना दिया है। उन से यह उमीद नहीं थी। अब भले ही आडवाणी जी अपनी बातें मनवा कर त्यागपत्र वापिस भी ले लें तो भी जो हुआ वह वापिस नहीं लाया जा सकता। देश हित में अच्छा यही होगा कि उन की आयु के सभी नेताओं को अब राजनीति से सन्यास ले लेना चाहिये। यही भारतीय संस्कृति की मर्यादा है।

चाँद शर्मा

नरेन्द्र मोदी की पहचान


काँग्रेस और बिकाऊ मीडिया नरेन्द्र मोदी को ‘साम्प्रदायक’ कह रहै हैं तो मुस्लिम वोट हासिल करने के लिये बी जे पी उन्हें ‘धर्म निर्पेक्ष’ बनने के लिये मजबूर कर रही है। ‘साम्प्रदायक’ और ‘धर्म निर्पेक्ष’ की परिभाषा और पहचान क्या है यह नरेन्द्र मोदी ने स्वयं स्पष्ट कर दी है – ‘इण्डिया फर्स्ट’ ! नरेन्द्र मोदी की लोक प्रियता का कारण उन की भ्रष्टाचार मुक्त ‘मुस्लिम तुष्टिकरण रहित’ छवि है। अगर नरेन्द्र मोदी को काँग्रेसी ब्राँड का धर्म निर्पेक्ष बना कर चुनाव में उतारा जाये तो फिर नितिश कुमार और नरेन्द्र मोदी में कोई फर्क नहीं रहै गा। इस लिये नरेन्द्र मोदी को नरेन्द्र मोदी ही बने रहना चाहिये।

बी जे पी के  जिन स्वार्थी नेताओं को ‘हिन्दू समर्थक’ कहलाने में ‘साम्प्रदायकता’ लगती है तो फिर वह बी जे पी छोड कर काँग्रेसी बन जायें। अगर सिख समुदाय के लिये शिरोमणि अकाली दल, मुस्लमानो के लिये मुस्लिम लीग को ‘सैक्यूलर’ मान कर उन के साथ चुनावी गठ जोड करे जा सकते हैं तो हिन्दू समर्थक पार्टी को साम्प्रदायक क्यों कहा जाता है? इस लिये अब बी जे पी केवल उन्हीं पार्टियों के साथ चुनावी गठ जोड करे जिन्हें हिन्दूत्व ऐजेंडा मंजूर हो नहीं तो ऐकला चलो…

काँग्रेस की हिन्दू विरोधी नीति

1947 के बटवारे के बाद हिन्दूओं ने सोचा था कि देश का ऐक भाग आक्रानताओं को  दे कर हिन्दू और मुस्लमान अपने-अपने भाग में अपने धर्मानुसार शान्ति से रहैं गे लेकिन गाँधी और नेहरू जैसे नेताओं के कारण हिन्दू बचे खुचे भारत में भी चैन से नहीं रह सके। उन का जीवन और हिन्दू पहचान ही मिटनी शुरु हो चुकी है। अब इटली मूल की सोनियाँ दुस्साहस कर के कहती है ‘भारत हिन्दू देश नहीं है’। उसी सोनियाँ का कठपुतला बोलता है ‘मुस्लिमों का इस देश पर प्रथम हक है’।

जयचन्दी नेता मुस्लमानों के अधिक से अधिक सुविधायें देने के लिये ऐक दूसरे से प्रति स्पर्धा में जुटे रहते हैं। मुस्लिम अपना वोट बैंक कायम कर के ‘किंग-मेकर’ के रूप में पनप रहै हैं। आज वह ‘किंग-मेकर’ हैं तो कल वह ‘इस्लामी – सलतनत’ भी फिर से कायम कर दें गे और भारत की हिन्दू पहचान हमेशा के लिये इतिहास के पन्नों में ग़र्क हो जाये गी।

देश विभाजन की पुनः तैय्यारियाँ

सिर्फ मुस्लिम धर्मान्धता को संतुष्ट करने के लिये आज फिर से हिन्दी के बदले उर्दू भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया जा रहा है, सरकारी खर्च पर इस्लामी तालीम देने के लिये मदरस्सों का जाल बिछाया जा रहा है। शैरियत कानून, इस्लामी अदालतें, इस्लामी बैंक और मुस्लिम आरक्षण के जरिये समानान्तर इस्लामी शासन तन्त्र स्थापित किया जा रहा है। क्या धर्म निर्पेक्षता के नाम पर यह सब कुछ  राष्ट्रीय ऐकता को बढावा देगा या फिर से विभाजन के बीज बोये गा?

पुनर्विभाजन के फूटते अंकुर

आज जिन राज्यों में मुसलमानों ने राजनैतिक सत्ता में अपनी पकड बना ली है वहाँ पडोसी देशों से इस्लामी आबादी की घुस पैठ हो रही है, आतंकवादियों को पनाह मिल रही है, अलगाव-वाद को भड़काया जा रहा है और हिन्दूओं का अपने ही देश में शर्णार्थियों की हैसियत में पलायन हो रहा है। काशमीर, असम, केरल, आन्ध्राप्रदेश, पश्चिमी बंगाल आदि इस का  प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। यासिन मलिक, अबदुल्ला बुखारी, आजम खां, सलमान खुर्शीद, औबेसी, और अनसारी जैसे लोग खुले आम धार्मिक उन्माद भडकाते हैं मगर काँग्रेसी सरकार चुप्पी साधे रहती है। अगर कोई हिन्दू प्रतिक्रिया में सच भी बोलता है तो मीडिया, अल्प संख्यक आयोग और सरकारी तंत्र सभी ऐक सुर में हिन्दू को साम्प्रदायकता का प्रमाणपत्र थमा देते हैं। बी जे पी के कायर और स्वार्थी  नेता अपने आप को अपराधी मान कर अपनी धर्म निर्पेक्षता की सफाई देने लग जाते हैं।

भारत में इस्लाम 

यह ऐक ऐतिहासिक सच्चाई है कि इस्लाम का जन्म भारत की धरती पर नहीं हुआ था। इस्लाम दोस्ती और प्रेम भावना से नहीं बल्कि हिन्दू धर्म की सभी पहचाने मिटाने के लिये ऐक आक्रान्ता की तरह भारत आया था। भारत में मुस्लमान हैं उन्ही आक्रान्ताओं के वंशज हैं या फिर उन हिन्दूओं के वंशज हैं जो मृत्यु, भय, और अत्याचार से बचने के लिये या किसी लालच से इस्लाम में परिवर्तित किये गये थे। पाकिस्तान बनने के बाद अगर मुस्लमानों ने भारत में रहना स्वीकारा था तो वह उन का हिन्दूओं पर कोई अहसान नहीं था। उन्हों ने अपना घर बार त्यागने  के बजाये भारत में हिन्दूओं के साथ रहना स्वीकार किया था। लेकिन आज भी मुस्लमानों की आस्थायें और प्ररेणा स्त्रोत्र भारत से बाहर अरब देशों में है। भारत का नागरिक होने के बावजूद वह वन्दे मात्रम, समान आचार संहिता, योगिक व्यायाम तथा स्थानीय हिन्दू परम्पराओं से नफरत करते हैं। उन का उन्माद इस हद तक है कि संवैधानिक पदों पर रहते हुये भी उन की सोच में कोई बदलाव नहीं। और क्या प्रमाण चाहिये?

 गोधरा की चिंगारी

गोधरा स्टेशन पर हिन्दू कर-सेवकों को जिन्दा ट्रेन में जला डालना अमानवी अत्याचारों की चरम सीमा थी जो गुजरात में ऊँट की पीठ पर आखिरी तिनका साबित हुयी थी। अत्याचार करने वालों पर हिन्दूओं ने तत्काल प्रतिकार लिया और जब तक सरकारी तंत्र अचानक भडकी हिंसा को रोकने के लिये सक्ष्म होता बहुत कुछ हो चुका था। उस समय देश की सैनायें सीमा की सुरक्षा पर तैनात थीं। फिर भी गुजरात की नरेन्द्र मोदी सरकार ने धर्म निर्पेक्षता के साथ प्रतिकार की आग को काबू पाया और पीडितों की सहायता करी। लेकिन क्या आज तक किसी धर्म निर्पेक्ष, मानवअधिकारी ने मुस्लिम समाज को फटकारा है? क्या किसी ने कशमीर असम, और दिल्ली सरकार को हिन्दू-सिख कत्लेआम और पलायन पर फटकारा है?

अत्याचार करना पाप है तो अत्याचार को सहना महापाप है। सदियों से भारत में हिन्दू मुस्लमानों के संदर्भ में यही महापाप ही करते आ रहै थे। क्या आज तक किसी मानव अधिकार प्रवक्ता, प्रजातंत्री, और धर्म निर्पेक्षता का राग आलापने वालों ने मुस्लमानों की ‘जिहादी मुहिम’ को नकारा है? भारत में धर्म निर्पेक्षता की दुहाई देने वाले बेशर्म मीडिया या किसी मुस्लिम बुद्धिजीवी ने इस्लामी अत्याचारों के ऐतिहासिक तथ्यों की निंदा करी है?

 हिन्दूओं की आदर्शवादी राजनैतिक मूर्खता

मूर्ख हिन्दू जिस डाली पर बैठते हैं उसी को काटना शुरु कर देते हैं। खतरों को देख कर कबूतर की तरह आँखें बन्द कर लेते हैं और कायरता, आदर्शवाद और धर्म निर्पेक्षता की दलदल में शुतर्मुर्ग की तरह अपना मूँह छिपाये रहते हैँ। आज देश आतंकवाद, भ्रष्टाचार, अल्प-संख्यक तुष्टीकरण, बेरोजगारी और महंगाई से पूरा देश त्रस्त है। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर देश की अनदेखी हो रही है लेकिन हिन्दू पाकिस्तान क्रिकेट देखने में व्यस्त रहते हैं या पाकिस्तानी ग़ज़लें सुनने में मस्त रहते हैं। अगर निष्पक्ष हो कर विचार करें तो भारत की दुर्दशा के केवल दो ही कारण है – अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और नेताओं का स्वार्थ जिस में सब कुछ समा रहा है।

अंधेरी गुफा में ऐक किरण आज के युवा अंग्रेजी माध्यम से फैलाई गयी इकतरफा धर्म निर्पेक्षता के भ्रमजाल से छुटकारा पाना चाहते हैं। वह अपनी पहचान को ढूंडना चाहते हैं लेकिन उन्हें मार्ग नहीं मिल रहा क्योंकि हमारे अधिकांश राजनेता और   बुद्धिजीवी नागरिक  मैकाले तथा जवाहरलाल नेहरू के बहकावे के वातारवर्ण में ही रंगे हुये हैं।

केवल ऐक ही विकल्प – नरेन्द्र मोदी

युवाओं के समक्ष केवल नरेन्द्र मोदी ही ऐक उमीद की किरण बनकर ऐक अति लोकप्रिय नेता की तरह उभरे हैं। आज भ्रष्टाचार और मुस्लिम तुष्टिकरण के खिलाफ सुब्रामनियन स्वामी का ऐकाकी संघर्ष युवाओं को प्रेरणा दे रहा है। आज युवाओं को अतीत के साथ जोडने में स्वामी रामदेव की योग-क्रान्ति, स्वदेशी आयुर्वेदिक विकल्प तथा भारत स्वाभिमान आन्दोलन सफल हो रहै हैं लेकिन धर्म निर्पेक्षता की आड में काँग्रेस, पारिवारिक नेता, बिकाऊ पत्रकार, स्वार्थी नेता, बी जे पी के कुछ नेता, इस्लामिक संगठन तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ तरह तरह से भ्रान्तियाँ फैलाने में जुटे हैं ताकि भारत अमरीका जैसी महा शक्तियों का पिछलग्गु ही बना रहै।

बी जे पी अब तो  साहस करे

अगर बी जे पी को भारत माता या राम से कोई लगाव है तो बे खटके यह घोषणा करनी चाहिये कि दो तिहाई मतों से सत्ता में आने पर पार्टी निम्नलिखित काम करे गीः-

  •  धर्म के नाम पर मिलने वाली सभी तरह की सबसिडियों को बन्द किया जाये गा।
  • परिवारों या नेताओं के नाम पर चलने वाली सरकारी योजनाओं का राष्ट्रीय नामंकरण दोबारा किया जाये गा।
  •  भ्रष्ट लोगों के खिलाफ समय सीमा के अन्तर्गत फास्ट ट्रैक कोर्टों में मुकदमें चलाये जायें गे और मुकदमें का फैसला आने तक उन की सम्पत्ति जब्त रहै गी।
  • पूरे देश में शिक्षा का माध्यम राष्ट्रभाषा या राज्य भाषा में होगा। अंग्रजी शिक्षा ऐच्छिक हो गी।
  •  जिन चापलूस सरकारी कर्मचारियों ने कानून के विरुद्ध कोई काम किया है तो उन के खिलाफ भी प्रशासनिक कारवाई की जाये गी।
  • धारा 370 को संविधान से खारिज किया जाये गा।
  • पूरे देश में सरकारी काम हिन्दी और राज्य भाषा में होगा।
  • समान आचार संहिता लागू करी जाये गी।

तुष्टीकरण की जरूरत नहीं

अकेले नरेन्द्र मोदी ने ही प्रमाणित किया है कि ‘तुष्टिकरण’ के बिना भी चुनाव जीते जा सकते हैं। दिल्ली में बैठे बी जे पी के नेताओं को कोई संशय नहीं रहना चाहिये कि आज भारत के राष्ट्रवादी केवल मोदी की अगुवाई को ही चाहते हैं। देश के युवा अपनी हिन्दू पहचान को ढूंड रहै हैं जो धर्म निर्पेक्षता के झूठे आवरणों में छुपा दी गयी है। जो नेता इस समय मोदी के साथ नहीं होंगे हिन्दूओं के लिये उन का कोई राजनैतिक अस्तीत्व ही नहीं रहै गा।

चाँद शर्मा

क्या बी जे पी करेगी आत्म-हत्या?


(मैं ने आज तक बी जे पी को ही समर्थन दिया है और आगे भी देता रहूँ गा ताकि हिन्दूओं में राजनैतिक जागृति और ऐकता आये और हिन्दू अपने देश में सम्मान से अपनी वोट संख्या के बल पर सुरक्षित रह सकें। उन का घर उन से कोई छीन ना ले। बी जे पी को समर्थन देना हिन्दूओं की मजबूरी है क्यों कि इस समय अन्य कोई संगठन सक्ष्म नहीं है जो भारतीय संस्कृति के प्रति समर्पित होने का ‘दावा’ करता हो। यह दावे कितने सच्चे हैं उन पर से पर्दा उठाते समय मुझे अफसोस भी हो रहा है। फिर भी देश, बी जे पी, और हिन्दूओं के हित में इन बातों का विशलेशण करना जरूरी है।)

बी जे पी का हिन्दू भ्रम

काँग्रेस और मुस्लिम लीग ने कट्टर पंथी मुसलमानों के लिये देश को विभाजित करवा कर पाकिस्तान बनवाया। विभाजन के पश्चात खण्डित भारत में अपनी सत्ता बनाये रखने के लिये काँग्रेस के नेताओं ने बहुसंख्यक हिन्दूओं को राजनैतिक तौर पर कमजोर किया, अल्प संख्यकों को हिन्दूओं के विरुद्ध कट्टर पंथी बने रहने के लिये संगठित किया और उसे ‘धर्म-निर्पेक्षता’ का नाम दे दिया। हिन्दूओं में फूट डाल कर नेहरू गाँधी परिवार का पीढ़ी दर पीढ़ी राज्य स्थापित किया। इन काँग्रेसी कारनामों से सभी परिचित हैं इस लिये उस का अब ज्यादा उल्लेख करने की जरूरत नहीं।

बी जे पी के स्वार्थी नेता भी काँग्रेसियों से कम नहीं निकले। वह हिन्दू-राष्ट्र, हिन्दू संस्कृति और भारत माता का जयघोष तो रात-दिन करते रहते हैं मगर निर्वाचन से ठीक पहले अपने ऊपर धर्म-निर्पेक्ष्ता की चादर ओढ़ लेते हैं, उन क्षेत्रीय दलों के साथ चुनावी समझोते करते हैं जिन का हिन्दू-राष्ट्र, हिन्दू संस्कृति और भारत माता के साथ कुछ वास्ता नहीं है क्यों कि क्षेत्रीय दल कुछ परिवारों या सामाजिक घटकों की पार्टियां हैं। सत्ता प्राप्ति के बाद बी जे पी के स्वार्थी नेता (जिन में अटल बिहारी वाजपाई और लाल कृष्ण आडवाणी अग्रेसर रहै हैं) अपनी सत्ता को बचाने के लिये ऐन डी ऐ के घटक नेताओं और अल्प संख्यकों की चापलूसी करते हैं जिस के लिये कुर्बानी केवल हिन्दूओं के हितों की ही दी जाती है। किसी बी जे पी के नेता में दम हो तो इन बातों का सार्वजनिक तौर पर खण्डन इस ब्लाग पर कर के हिन्दूओं की संतुष्टि करे।

क्या यह सच नहीं कि बी जे पी के स्वार्थी नेता राम मन्दिर बनाने का झाँसा तो इलेकशन से पहले देते हैं, धारा 370 हटा कर काशमीर को भारत का अटूट अंग बनाने की प्रतिज्ञा करते हैं, सभी भारतीयों में समानता लाने के लिये समान आचार संहिता लागू करने के लिये वचन बद्ध होते हैं लेकिन सत्ता के समीप आते ही इन्हीं बातों को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं। सत्ता-सुख के लिये ‘गठ-बन्धन-धर्म’ की आड में देश-धर्म और हिन्दू संस्कृति के प्रति निष्ठा को दर किनार कर ‘ईण्डिया शाईनिंग’ और विकास के लुभावने वादे करने लग जाते हैं। सत्ता हाथ से निकलते ही इन में फिर से राम-भक्ती, भारत माता के प्रति निष्ठा और भारतीय संस्कृति के लिये प्रेम की उमंगें हिलोरें खाने लगती हैं। यही चक्र विभाजन के समय से ही आज तक चलता रहा है और अब भी चल रहा है। काँग्रेसी तो जाने पहचाने हिन्दू विरोधी हैं मगर भगवे रंग में लिपटे छद्म-वेशी हिन्दू हितेषी भाजपाई कहीं ज्यादा घातक और स्वार्थी साबित हो रहै हैं।

आडवाणी की राम भक्ति

बाबरी मस्जिद का ढांचा राम जन्म भूमि की छाती पर ऐक रिसता हुआ नासूर था। जब आडवाणी जी राम-रथ-यात्रा ले कर आये तो राम भक्तों ने इस राम भक्त नेता की अगुवाई में उस ढांचे को राम जन्म भूमि से हटाने की कोशिश की। ढांचा गिरा तो आडवाणी अपने ऊपर खतरा भांप कर राम भक्तों से दूर जा बैठे। क्या आडवाणी जी अयोध्या केवल तमाशा देखने के लिये गये थे?

जब निहत्थे हिन्दूओं को (जिन में बच्चे और महिलायें भी थीं) गोधरा के समीप ट्रेन में जिन्दा जलाने का दुसाहस मुस्लिम कट्टर पंथियों ने किया और हिन्दूओं ने प्रतिकार लिया तो प्रधान मन्त्री की कुर्सी पर बैठे अटल जी की आंखों से हिन्दूओं के लिये दो आँसू भी नहीं टपके मगर उन का “सिर शर्म से झुक गया” था क्यों कि उन की कुर्सी की टांगे डाँवाडोल होने लग गयी थी। उस के बाद तो वाजपाई जी ने मुस्लिम तुष्टीकरण करने के लिये योजनाओं की झडी लगा दी थी।  सब से पहले नरेन्द्र मोदी को एक ‘राजनैतिक-अछूत’ बना दिया, पाकिस्तानियों के लिये भारतीय अस्पतालों में मुफ्त इलाज की सुविधायें पैदा कर दीं, समझौता ऐक्सप्रेस गाडियां चलवा दीं – लेकिन आज तक ऐक भी पाकिस्तानी आतंकी भारत के हाथ नहीं लगा। पाकिस्तानी सरकार तो अपने आतंकियों को बचाने में लगी थी – लेकिन बी जे पी के शासन में आज तक हिन्दू पुलिस कर्मी आतंकियों का ‘संहार करने के जुर्म’ में जेलों में बन्द हैं या सजायें काट रहै हैं। सत्ता के लिये राम भक्त वाजपाई राम विरोधी करुणानिधि के साथ गठ बन्धन धर्म ही तो निभाने लग गये। अलगाव वादी फारुख  अबदुल्ला और औमर अबदुल्ला को ‘धारा 370 विरोधी वाजपाई’ के मन्त्री मण्डल में शामिल करना कौन से काशमीरी हिन्दूओं के हित में था जो आज भी शर्णार्थी बन कर अपने ही देश में भटक रहै हैं? उन सब प्रयत्नों का नतीजा क्या निकला?

तुष्टीकरण का नतीजा

अटल जी उस समय की ‘नौसिख्यिा’ सोनियाँ के आगे चुनाव हार गये। सत्ता हाथ से जाते ही ‘ सत्ता सुख भोगने वाले साथी’ ऐन डी ऐ का साथ छोड गये। निर्जीव काँग्रेस पुनः जीवित हो उठी। बी जे पी ने हिन्दूओं का विशवास ही खो दिया। मुस्लिम वोट तो उन्हें पहले भी नहीं मिलते थे और ना ही अब मिलें गे। आज हिन्दू भी पूछते हैं “जब बी जे पी सत्ता में थी तो उस ने हमारे लिये क्या किया?” – कुछ भी तो नहीं! हिन्दू सिर्फ धर्म निर्पेक्षता का बोझ अपने सिर पर ढोते रहै और आतंकवादियों से पिटते रहै! ‘इण्डिया शाईनिंग’ के प्रचार के बावजूद आडवाणी ‘प्राईम मिन्स्टर इन वेटिंग’ ही रहै। – और आगे उम्र भर भी यही रहैं गे! उन के सिर पर तो भागवान राम का ही श्राप है। वह प्रधान मन्त्री नहीं बन सकते और उन अगुवाई के कारण बी जे पी की सरकार भी नहीं बने गी।

धर्म-निर्पेक्ष्ता का नया नाम ‘गठ बन्धन धर्म’ 

अब 2014 से पहले ऐक बार फिर बी जे पी हिन्दुत्व को दर किनार कर के ‘विकास’ के नाम पर हिन्दूओं के साथ खिलवाड करने जा रही है। ऐन डी ऐ का रंग मंच सजाया जा रहा है – रंग मंच के अभिनेता वही जाने पहचाने पुराने लोग हों गे जिन की अगुवाई अब नितीश कुमार करें गे। सत्ता मिल गयी तो फिर अगले पाँच वर्ष तक बी जे पी अपना गठ बन्धन धर्म निभाये गी। हिन्दू जहाँ अब हैं वहीं पडे रहैं गे। आज जब इस देश से हिन्दूओं की पहचान ही मिटाई जा रही है तो हिन्दू ‘विकास’ किस के लिये कर रहै हैं?

जब अटल जी को पहली बार प्रधान मन्त्री पद मिला तो वह बी जे पी सरकार के लिये पर्याप्त वोट नहीं जुटा पाये थे और उन्हें 13 दिन के अन्दर ही इस्तीफा देना पडा था। बी जे पी को साम्प्रदायकता के कारण ‘राजनैतिक-अछूत’ माना जाता था। वही साम्प्रदायकता का टीका बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के माथे से आज तक नहीं उतरा और  अब अपने हिन्दू प्रेम पर बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता ‘शर्मसार’ हो कर अपने ‘सैक्यूलर’ होने की दोहाई ही देते रहते हैं।

हिन्दूओं की आत्म ग्लानि

बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेता क्यों नहीं डंके की चोट पर कहते कि वह हिन्दू हैं, उन्हें हिन्दू होने का गर्व है, भारत हिन्दूओं का जन्म स्थान है और हम अपना देश धर्म निर्पेक्षता की आड में दूसरों का हथियाने नहीं दें गे , उसे विश्व में ‘सार्वजनिक स्थल’ नहीं बनने दें गे? क्यों छोटे मोटे परिवार वादी, घटकवादी नेता बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं को हिन्दू प्रेम के कारण लताड कर चले जाते हैं? केजरीवाल जैसे लोग देश से बहुसंख्यक हिन्दूओं की अनदेखी कर के अल्पसंख्यकों को आँखों पर बैठाते हैं और हिन्दू साम्प्रदायक्ता का गुनाह सिर झुका कर कबूल कर लेते हैं।

बटवारे के पश्चात अगर कोई मुस्लिम कट्टर पंथियों का हर बात में खुले आम समर्थन करे तो वह प्रगतिशील और सच्चा सैक्यूलर माना जाता है लेकिन अगर कोई हिन्दूओं को हिन्दू आस्थाओं के साथ जीने को कहै तो बी जे पी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ‘साम्प्रदायक’ और ‘दकियानूस’ माने जाते हैं और आज तक भारत माता की जय पुकारने वाले यह ‘स्पूत’ भी अपने हिन्दू प्रेम को साम्प्रदायकता ही मान बैठे हैं। कितनी शर्म की बात है कि जब मुलायम सिहं, लालू प्रसाद और दिग्विजय सिहं जैसे टुच्चे विरोधी उन्हें भगवा आतंकी होने की गालियां सुनाते हैं तो बी जे पी और आर एस एस के नेता शर्म से अपना सिर झुका लेते हैं। गर्व के साथ अपना हिन्दू प्रेम स्वीकारने के बजाये गाली देने वालों को नेहरू, पटेल और जयप्रकाश नारायण के सर्टिफिकेटों का हवाला दे कर कहते हैं कि उन ‘राष्ट्रीय’ नेताओं की नजर में तो वह ‘साम्प्रदायक’ नहीं हैं। नितिश जैसे मुस्लिम प्रस्त को फटकारने के बजाये यही नेता जे डी यू को मनाने के लिये नरेन्द्र मोदी को नकारने के बहाने खोजने में लग जाते हैं। अगर इन्हें अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण ही करते रहना है तो फिर अलग पाकिस्तान बनाने की क्या जरूरत थी? देश की अखण्डता को क्यों नष्ट होने दिया? 

हिन्दू जन्म भूमि का अपमान

हमें अपना सेकूलरज्मि विदेशियों से प्रमाणित करवाने की कोई आवश्यक्ता नहीं। हमें अपने संविधान की समीक्षा करने और बदलने का पूरा अधिकार है। इस में हिन्दूओं के लिये ग्लानि की कोई बात नहीं कि हम गर्व से कहें कि हम हिन्दू हैं। हमें अपनी धर्म हीन धर्म-निर्पेक्षता को त्याग  कर अपने देश को हिन्दू राष्ट्र बनाना होगा ताकि भारत अपने स्वाभिमान के साथ ऐक स्वतन्त्र देश की तरह विकसित हो सके। हमारी जन्म भूमि अन्य लोगों के लिये कोई सार्वजनिक सराय नहीं है कि जो भी आये वह अपना बिस्तर बिछा कर कहै कि अब देश वासी सैलानियों के आदेशानुसार चलें।  

स्नातन धर्म ही ऐक पूर्णत्या मानव धर्म है। समस्त मानव जो प्राकृतिक नियमों तथा स्थानीय परियावरण का आदर करते हुये जियो और जीने दो के सिद्धान्त का इमानदारी से पालन करते हैं वह विश्व में जहाँ कहीं भी रहते हों, सभी हिन्दू हैं। 

तुष्टीकरण की जरूरत नहीं  

अकेले नरेन्द्र मोदी ने ही प्रमाणित किया है कि ‘तुष्टिकरण’ के बिना भी चुनाव जीते जा सकते हैं। दिल्ली में बैठे बी जे पी के नेताओं को कोई संशय नहीं रहना चाहिये कि आज भारत के राष्ट्रवादी केवल मोदी की अगुवाई को ही चाहते हैं। देश के युवा अपनी हिन्दू पहचान को ढूंड रहै हैं जो धर्म निर्पेक्षता के झूठे आवरणों में छुपा दी गयी है। जो नेता इस समय मोदी के साथ नहीं होंगे  वह चाहे बी जे पी के अन्दर हों या बाहर, हिन्दूओं के लिये उन का कोई राजनैतिक अस्तीत्व ही नहीं रहै गा। मनमोहन सोनिया जैसा समीकरण बी जे पी में आडवाणी और सुषमा स्वराज का है। फर्क सिर्फ इतना है कि मनमोहन-सोनिया कामयाब रहै हैं और सुषमा-आडवाणी कामयाब नहीं हों गे। वह अपने साथ बी जे पी को भी ले डूबें गे। जनता सिर्फ नरेन्द्र मोदी को ही चाहती है।

 अभी फिर से बी जे पी में ही सत्ता पाने के लिये हिन्दुत्व को दर किनार करने की आवाजें उठने लगी हैं ताकि सैक्यूलर जिन्ना ब्राण्ड आडवाणी को सत्ता पर बैठाया जा सके। इस से साफ जाहिर है कि बी जे पी के इन गिने चुने नेताओं को केवल सत्ता चाहिये। उन्हें भारतीय संस्कृति, धारा 370 या समान आचार संहिता या देश को ऐक सूत्र में बान्धने आदि से कोई सरोकार नहीं। भारत माता की जय, वन्दे मात्रम आदि सब ढकोसले हिन्दूओं को बातों से ही संतुष्ट करने को चोचले हैं। मर चुके ‘जय चन्द’ को कोसने से कोई फायदा नहीं, उन्हें समझने और पहचानने की ज़रूरत है।

गर्व से कहो हम हिन्दू हैं

बी जे पी की नाव में जो छेद आडवाणी एण्ड कम्पनी ने किये हैं उन में से पानी भरना शुरु हो चुका है। अभी भी वक्त है । फैसला करो “भारत सर्वोपरि के साथ नरेन्द्र मोदी” चाहिये या ‘टोपी-तिलक ब्राण्ड सत्ता के’ लालच में नितिश।

भारत के राष्ट्रवादी युवाओं को चाहिये कि नेताओं की जय जयकार करने और उन्हें फूल मालायें पहनाने से पहले अब इन नेताओं की सक्ष्मता का प्रमाण खुद देखें, परखें, और पहचान करें। जिन घोडों पर बैठ कर रेस में उतरना है कहीं वह लंगडे तो नही! 

बी जे पी  के केवल उन्हीं उमीदवारों पर चुनाव में मतदान कीजिये –

  • जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, स्वामी राम देव के भारत स्वाभिमान, या विश्व हिन्दू परिषद  में से किसी ऐक के एक्टिव सदस्य हों।
  • जो समान आचार संहिता लाने के पक्ष में हों।
  • गर्व के साथ हिन्दी भाषा का प्रयोग करते हों।
  • जिन के परिवार भी पिछले पांच वर्षों से हिन्दू संस्कृति से जुडे दिखाई देते हों।

अगर बी जे पी नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में अपने आत्म-विशवास के साथ अपना ऐजेन्डा ले कर 2014 के चुनाव में उतरे गी तो निश्चय ही विजय हासिल होगी। ऐन डी ऐ के नखरे उठाने की जरूरत नहीं।  अगर बी जे पी ने अब हिन्दुत्व को दर किनार किया तो यह पार्टी की आत्म हत्या होगी और कोई ना कोई हिन्दू संगठन बी जे पी का राजनैतिक स्थान ले ले गा।

चाँद शर्मा

 

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