हिन्दू धर्म वर्तमान राजनैतिक परिपेक्ष में

Posts tagged ‘आचार संहिता’

69 – हिन्दूओं की दिशाहीनता


आज का हिन्दू दिशाहीनता के असमंजस में उदासीन, असुरक्षित और ऐकाकी जीवन जी रहा है। अपने आप को अकेला और लाचार समझ कर या तो देश से भाग जाना चाहता है या मानसिक पलायनवाद की शरण में खोखला आदर्शवादी और धर्म-निर्पेक्ष बना बैठा है। “हम क्या कर सकते हैं” हिन्दूओं के निराश जीवन का सारंश बन चुका है।

कोई भी व्यक्ति या समाज अपने पर्यावरण और घटनाओं के प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता। सुरक्षित रहने के लिये सभी को आने वाले खतरों से सजग रहना जरूरी है। विभाजन के पश्चात हिन्दू या तो पाकिस्तान में मार डाले गये थे या उन्हें इस्लाम कबूल करना पडा था। जिन्हें धर्म त्यागना मंज़ूर नहीं था उन्हें अपना घर बार छोड कर हिन्दुस्तान की ओर पलायन करना पडा था। पहचान के लिये प्रधानता धर्म की थी राष्ट्रीयता की नहीं थी। यदि आगे भी देश की राजनीति को कुछ स्वार्थी धर्म-निर्पेक्ष नेताओं के सहारे छोड दें गे और अपने धर्म को सुरक्षित नहीं करें गे तो भविष्य में भी हिन्दू डर कर पलायन ही करते रहैं गे।

इतिहास की अवहेलना

इतिहास अपने आप को स्दैव क्रूर ढंग से दोहराता है। आज से लगभग 450 वर्ष पहले मुस्लमानों के ज़ुल्मों से पीड़ित कशमीरी हिन्दू गुरू तेग़ बहादुर की शरण में गये थे। उन के लिये गुरू महाराज ने दिल्ली में अपने शीश की कुर्बानी दी। सदियां बीत जाने के बाद भी कशमीरी हिन्दू आज भी कशमीर से पलायन कर के शरणार्थी बन कर अपने ही देश में इधर उधर दिन काट रहे हैं कि शायद कोई अन्य गुरू उन के लिये कुर्बानी देने के लिये आगे आ जाये। उन्हों ने ऐकता और कर्मयोग के मार्ग को नहीं अपनाया।

मुन्शी प्रेम चन्द ने ‘शतरंज के खिलाड़ी’ कहानी में नवाब वाजिद अली शाह के ज़माने का जो चित्रण किया है वही दशा आज हिन्दूओं की भी है। उस समय लखनऊ के सामंत बटेर बाजी और शतरंज में अपना समय बिता रहे थे कि अंग्रेज़ों ने बिना ऐक गोली चलाये अवध की रियासत पर अधिकार कर लिया था। आज हम क्रिकेट मैच, रोने धोने वाले घरेलू सीरयल और फिल्मी खबरें देखने में अपना समय नष्ट कर रहे हैं और अपने देश-धर्म की सुरक्षा की फिकर करने की फुर्सत किसी हिन्दू को नहीं। इटली मूल की ऐक महिला ने तो साफ कह दिया है कि “भारत हिन्दू देश नहीं है”। हम ने चुप-चाप सुन लिया है और सह भी लिया है। हिन्दूओं का हिन्दूस्तान अल्पसंख्यकों के अधिकार में जा रहा है और देश के प्रधानमन्त्री ने भी कहा है कि देश के साधनों पर उन्हीं का ही “पहला अधिकार” है।

हिन्दूओं की भारत में अल्पसंख्या

हिन्दूओं की जैसी दशा कशमीर में हो चुकी है वैसी ही शीघ्र केरल, कर्नाटक, आन्ध्र, बंगाल, बिहार तथा उत्तरपूर्वी क्षेत्रों में भी होने वाली है। यदि वह समय रहते जागृत और संगठित नहीं हुये तो उन्हें वहाँ से भी पलायन करना पडे गा। वहाँ मुस्लिम और इसाई जनसंख्या दिन प्रतिदिन बढ रही है। शीघ्र ही वह हिन्दू जनगणना से कहीं आगे निकल जाये गे। इन विदेशी घर्मों ने धर्म-निर्पेक्षता को हृदय से नहीं स्वीकारा है और धर्म-र्निर्पेक्षता का सरकारी लाभ केवल अपने धर्म के प्रचार और प्रसार के लिये उठा रहै हैं। वह अपनी राजनैतिक जडें कुछ स्वार्थी हिन्दू राजनेताओं के सहयोग से भारत में मजबूत कर रहै हैं। उन के सक्ष्म होते ही भारत फिर से मुस्लमानों और इसाईयों के बीच बट कर उन के आधीन हो जाये गा। हिन्दूओं के पास अब समय और विकल्प थोडे ही बचे हैं।  

प्राकृतिक विकल्प

सृष्टि में यदि पर्यावरण अनुकूल ना हो तो सभी प्राणियों की पास निम्नलिखित तीन विकल्प होते हैं- 

  • प्रथम – किसी अन्य अनुकूल स्थान की ओर प्रस्थान कर देना।
  • दूतीय – वातावरण के अनुसार अपने आप को बदल देना।
  • तीसरा – वातावरण के अपने अनुकूल बदल देना।

प्रथम विकल्प हिन्दू किसी अन्य स्थान की ओर प्रस्थान कर देना

विश्व में अब कोई भी हिन्दू देश नहीं रहा जो पलायन करते हिन्दूओं की जनसंख्या को आसरा दे सके गा। ऐक ऐक कर के सभी हिन्दू देश संसार से मिट चुके हैं। इस कडी का अन्तिम हिन्दू देश नेपाल था। आने वाली पीढियों को यह विशवास दिलाना असम्भव होगा कि कभी इरान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, लंका, म्यनमार, थाईलैण्ड, इण्डोनेशिया, जावा, मैक्सिको, पेरू और बाँग्लादेश आदि ‘हिन्दू देश’ थे जहाँ मन्दिर और शिवालयों में आरती हुआ करती थी। अब अगर हिन्दूस्तान भी हिन्दूओं उन से छिन गया तो कहाँ जायें गे?

सिवाय मूर्ख हिन्दूओं के कोई भी देश दूसरे देश के शर्णार्थियों को स्दैव के लिये अपनी धरती पर स्थापित नहीं कर सकता। शर्णार्थियों को स्दैव स्थानीय लोगों का शोशण और विरोध झेलना पडता है। इस लिये प्रथम विकल्प में हिन्दूओं के लिये भारत से पलायन कर के अपने लिये नया सम्मान जनक घर तलाशना असम्भव है।

दूसरा विकल्प वातावरण अनुसार अपने आप को बदल देना

भारत में कई ‘धर्म-निर्पेक्ष बुद्धिजीवी’ हैं जो रात दिन प्रचार करते रहते हैं कि हमें समय के साथ चलना चाहिये। बाहर से आने वालों के लिये अपने दरवाजे खोल कर भारत को पर्यटकों, घुसपैठियों, और समलैंगिकों का धर्म-निर्पेक्ष देश बना देना चाहिये जहाँ सभी साम्प्रदायों को अपने अपने ढंग की जीवन शैली जीने का अधिकार हो। यदि उन की सलाह मान ली जाय तो हिन्दूओं को “अरब और ऊँट” वाली कथा अपने घर में दोहरानी होगी। देश के कई विभाजन भी करने पडें गे ताकि आने वाले सभी पर्यटकों को उन की इच्छानुसार जीने दिया जाये। मुस्लिम और हिन्दू, मुस्लिम और इसाई, इसाई और हिन्दू ऐक ही शैली में नहीं जीते। सभी में प्रस्पर हिंसात्मिक विरोधाभास हैं। शान्ति तभी हो सकती थी यदि सभी ऐक ही आचार संहिता के तले रहते परन्तु भारत में ‘धर्म-निर्पेक्षों’ वैसा नहीं होने दिया।

यह सोचना भी असम्भव होगा कि लाखों वर्ष की प्राचीन हिन्दू सभ्यता इस परिस्थिति से समझोता कर सकें गी और उन समुदायों के रीति रिवाजों को अपना ले गी जो अज्ञानता के दौर से आज भी पूर्णत्या निकल नहीं पाये हैं। अन्य धर्मों में पादरियों और मौलवियों के कथन पर यकीन करना लाज़मी है नहीं तो उस की सजा मृत्युदण्ड है, किन्तु स्वतन्त्र विचार के हिन्दू उन आस्थाओं पर कभी भी विशवास नहीं कर सकें गे। हिन्दूओं की संख्या भले ही शून्य की ओर जाने लगे फिर भी हिन्दू अकेले ही विश्व के किसी कोने में भी जीवित रहै गा क्यों कि यही मानवता का प्राकृतिक धर्म है। मानवता प्रलयकाल से पहले समाप्त नहीं हो सकती यह भी प्रकृति का नियम है। अतः हिन्दू पहचान मिटाने का दूसरा विकल्प भी असम्भव है।

तीसरा विकल्प वातावरण के अपने अनुकूल बदल देना

हिन्दूओं के पास अब केवल यही ऐक प्रभावशाली, स्थायी, तर्क संगत तथा सम्मान जनक विकल्प है कि वह अपने प्रतिकूल धर्म-निर्पेक्ष वातावरण को बदल कर उसे अपने अनुकूल हिन्दूवादी बनाये।   

समय समय पर हिन्दू समाज के ध्वस्त मनोबल को पुनर्स्थापित करने के लिये श्री कृष्ण, चाण्क्य, शिवाजी, तथा गुरू गोबिन्द सिहं जैसे महा जन नायकों ने भी यही विकल्प अपनाया था। हमारा वर्तमान संविधान और सरकार केवल धर्म-निर्पेक्षता का छलावा मात्र हैं। वास्तव में वह केवल अल्पसंख्यक तुष्टिकारक और हिन्दू विरोधी हैं। हमारे संवैधानिक प्रतिष्ठान भी अल्पसंख्यक संरक्षण और तुष्टिकरण का कार्य करते हैं। यदि इस संविधान को नहीं बदला गया तो निश्चय ही भारत का विघटन होता चला जाये गा। इस को रोकना है तो हिन्दूओं को संगठित हो कर पूर्ण बहुमत से चुनाव जीत कर भारत में हिन्दू रक्षक सरकार की स्थापना करनी होगी जो संविधान में परिवर्तन करने में सक्षम हो। भारत को “हिन्दू-राष्ट्र” घोषित करना होगा और मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को कानूनी तरीके से दूर करना होगा। हिन्दू सरकार ही भारत की परम्पराओं और गौरव को पुनर्जीवित कर सकती है और यह हमारा अधिकार तथा कर्तव्य दोनों हैं।

हिन्दू राष्ट्र की स्थापना

आज हिन्दूओं को अपने ही घर हिन्दूस्तान में अल्पसंख्यकों के सामने विनती करनी पडती है। इस शर्मनाक स्थिति से उबरने के लिये हिन्दूओं को वैधानिक तरीके से सरकार तथा संविधान बदलने के अतिरिक्त दूसरा कोई विकल्प नहीं है। अतः हिन्दूओं को अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिये राजनैतिक तौर पर संगठित हो के ऐक सशक्त वोट बैंक बनाना होगा।

  • उन्हें किसी ऐक राजनैतिक दल को सम्पूर्ण सहयोग देना पडे गा या फिर नया हिन्दू राजनैतिक दल बना कर चुनाव में उतरना हो गा। समय और वर्तमान परिस्थितियों में नया राजनैतिक दल संगठित करना ऐक कठिन और तर्कहीन विचार होगा। अतः किसी शक्तिशाली दल को समर्थन देना ही क्रियात्मक उपाय है।
  • हिन्दूओं को अपने मतों का विभाजन रोकना होगा। खोखले आदर्शवाद की चमक में हिन्दू इस खेल को समझ नहीं पा रहै अल्पसंख्यक संगठित रह कर राजनैतिक संतुलन को बिगाडते हैं ताकि हिन्दूओं को सत्ता से वंचित रखा जाय। 
  • हिन्दूओं को नियन्त्रण करना होगा कि अल्पसंख्यक और हिन्दू विरोधी तत्व अनाधिकृत ढंग से मताधिकार तो प्राप्त नहीं कर रहै। घुसपैठिये भारत में कोई कर नहीं देते किन्तु सभी प्रकार की आर्थिक सुविधायें उठाते हैं जो भारत के वैधिनिक नागरिकों पर ऐक बोझ हैं। हिन्दू नागरिकों को पुलिस से सहयोग करना चाहिये ताकि वह अतिक्रमण को हटाये।
  • हमें भारत का निर्माण उन भारतीयों के लिये ही करना होगा जिन्हें विदेशियों के बदले भारतीय संस्कृति, भारतीय भाषा, तथा भारतीय महानायकों से प्रेम हो।

हमें अपनी धर्म निर्पेक्षता के लिये किसी विदेशी सरकार से प्रमाणपत्र लेने की आवश्यक्ता नहीं। किसी अन्य देश को भारत में साम्प्रदायक दंगों सम्बन्धित तथ्य खोजने के लिये मिशन भेजने का कोई अधिकार नहीं है। धर्म-निर्पेक्षता स्वतन्त्र भारत का आन्तरिक मामला है। बांग्ला देश का उदाहरण हमारे सम्मुख है जो विश्व पटल पर अपनी इच्छानुसार कई बार धर्म-निर्पेक्ष से इस्लामी देश बना है। हमें बिना किसी झिझक के भारत को ऐक हिन्दू राष्ट्र घोषित करना चाहिये। हिन्दू और भारत ऐक दूसरे के पूरक हैं। यह नहीं भूलना चाहिये कि मुस्लिम शासकों के समय भी भारत को ‘हिन्दुस्तान’ ही कहा जाता था।

हिन्दू समाज का संगठन

हिन्दू विचारकों तथा धर्म गुरूओं को हर प्रकार से विक्षिप्त हिन्दूओं को कम से कम राजनैतिक तौर पर किसी ऐक हिन्दू संस्था के अन्तरगत ऐकत्रित करना होगा। यदि अल्पसंख्यक धर्मान्तरण और जिहादी आतंकवाद को त्याग कर अपने आप को भारतीय संस्कृति के साथ जोडें और मुख्य धारा से संयुक्त हो कर अपने आप को राष्ट्र के प्रति समर्पित करें तो वह भी इस प्रकार की राष्ट्रवादी संस्था से सम्मानपूर्वक जुड सकते हैं। 

घर वापसी आन्दोलन

जिन्हों ने पहले किसी भय या प्रलोभन के कारण धर्म परिवर्तन किया था और अब स्वेच्छा से हिन्दू धर्म में पुनः लौट आना चाहें तो उन का स्वाग्त करना चाहिये।

जो कोई भी ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धान्तानुसार जीवन शैली जीता हो, अपने भारतीय पूर्वजों का सम्मान करता हो वह चाहे किसी भी निजि पूजा पद्धति में विशवास रखता हो उसे हिन्दू मान लेना चाहिये। परन्तु उसे समान आचार संहिता, समान राष्ट्रभाषा, समान संस्कृति तथा भारत की मुख्य धारा को अपना कर अल्पसंख्यक वर्ण को त्यागना होगा।

भारत को गौरवमय बनाने का विकल्प हमारे पास अगले निर्वाचन के समय तक ही है जिस के लिये समस्त हिन्दूओं को संगठित होना पडे गा । यदि हम इस लक्ष्य के प्रति कृतसंकल्प हो जाये तो अगले चुनाव में ही भारत अपने प्राचीन गौरव के मार्ग पर दोबारा अग्रेसर हो सकता है। यदि हम प्रयत्न करें तो सर्वत्र अन्धेरा नहीं हुआ अभी उम्मीद की किरणें बाकी है – परन्तु अगर अभी नहीं तो फिर कभी नहीं होगा।

चाँद शर्मा

67 – अलगावादियों का संरक्षण


बटवारे पश्चात का ऐक कडुआ सच यह है कि भारत को फिर से हडपने की ताक में अल्पसंख्यक अपने वोट बैंक की संख्या दिन रात बढा रहै हैं। मुस्लिम भारत में ऐक विशिष्ट समुदाय बन कर शैरियत कानून के अन्दर ही रहना चाहते हैं। इसाई भारत को इसाई देश बनाना चाहते हैं, कम्यूनिस्ट नक्सली तरीकों से माओवाद फैलाना चाहते हैं और पाश्चात्य देश बहुसंख्यक हिन्दूओं को छोटे छोटे साम्प्रदायों में बाँट कर उन की ऐकता को नष्ट करना चाहते हैं ताकि उन के षटयन्त्रों का कोई सक्षम विरोध ना कर सके। महाशक्तियाँ भारत को खण्डित कर के छोटे छोटे कमजोर राज्यों में विभाजित कर देना चाहती हैं। 

स्दैव की तरह अस्हाय हिन्दू

भारत सरकार ‘संगठित अल्पसंख्यकों’ की सरकार है जो ‘असंगठित हिन्दू जनता’ पर शासन करती है। सरकार केवल अल्पसंख्यकों के हित के लिये है जिस की कीमत बहुसंख्यक चुकाते रहै हैं। 

विभाजन के पश्चात ही काँग्रेस ने परिवारिक सत्ता कायम करने की कोशिश शुरू कर दी थी जिस के निरन्तर प्रयासों के बाद आज इटली मूल की ऐक साधारण महिला शताब्दियों पुरानी सभ्यता की सर्वे-सर्वा बना कर परोक्ष रूप से लूट-तन्त्री शासन चला रही है। यह सभी कुछ अल्पसंख्यकों को तुष्टिकरण दूारा संगठित कर के किया जा रहा है। राजनैतिक मूर्खता के कारण अपने ही देश में असंगठित हिन्दू फिर से और असहाय बने बैठे हैं।

‘फूट डालो और राज करो’ के सिद्धान्त अनुसार ईस्ट ईण्डिया कम्पनी ने स्वार्थी राजे-रजवाडों को ऐक दूसरे से लडवा कर राजनैतिक सत्ता उन से छीन ली थी। आज अधिकाँश जनता को ‘गाँधी-गिरी’ के आदर्शवाद, नेहरू परिवार की ‘कुर्बानियों’ और योजनाओं के कागजी सब्ज बागों, तथा अल्पसंख्यकों को तुष्टिकरण से बहला फुसला कर उन्हे हिन्दू विरोधी बनाया जा रहा है ताकि देश का इस्लामीकरण, इसाईकरण, या धर्म-खण्डन किया जा सके। हमेशा की तरह हिन्दू आज भी आँखें मूंद कर ‘आदर्श पलायनवादी’ बने बैठे हैं जब कि देश की घरती उन्हीं के पाँवों के नीचे से खिसकती जा रही है। देश के संसाधन और शासन तन्त्र की बागडोर अल्प संख्यकों के हाथ में तेजी से ट्रांसफर होती जा रही है।

भारत के विघटम का षटयन्त्र

खण्डित भारत, मुस्लिमों, इसाईयों, कम्यूनिस्टों तथा पाशचात्य देशों का संजोया हुआ सपना है। हिन्दू विरोधी प्रसार माध्यम अल्पसंख्यकों को विश्व पटल पर ‘हिन्दू हिंसा’ के कारण ‘त्रासित’ दिखाने में देर नहीं करते। अल्पसंख्यकों को विदेशी सरकारों से आर्थिक, राजनैतिक और कई बार आतंकवादी हथियारों की सहायता भी मिलती है किन्तु काँग्रेसी राजनेता घोटालों से अपना भविष्य सुदृढ करने के लिये देश का धन लूटने में व्यस्त रहते हैं। 

विदेशी आतंकवादी और मिशनरी अब अपने पाँव सरकारी तन्त्र में पसारने का काम कर रहै हैं। विदेशी सहायता से आज कितने ही नये हिन्दू साम्प्रदाय भारत में ही संगठित हो चुके हैं। कहीं जातियों के आधार पर, कहीं आर्थिक विषमताओं के आधार पर, कहीं प्राँतीय भाषाओं के नाम पर, तो कहीं परिवारों, व्यक्तियों, आस्थाओं, साधू-संतों और ‘सुधारों’ के नाम पर हिन्दूओं को उन की मुख्य धारा से अलग करने के यत्न चल रहै हैं। इस कार्य के लिये कई ‘हिन्दू धर्म प्रचारकों’ को भी नेतागिरी दी गयी है जो लोगों में घुलमिल कर काम कर रहै हैं। हिन्दू नामों के पीछे अपनी पहचान छुपा कर कितने ही मुस्लिम और इसाई मन्त्री तथा वरिष्ठ अधिकारी आज शासन तन्त्र में कार्य कर रहै हैं जो भोले भाले हिन्दूओं को हिन्दू परम्पराओं में ‘सुधार’ के नाम पर तोडने की सलाह देते हैं।

देशों के इतिहास में पचास से सौ वर्ष का समय थोडा समय ही माना जाता है। भारत तथा हिन्दू विघटन के बीज आज बोये जा रहै हैं जिन पर अगले तीस या पचास वर्षों में फल निकल पडें गे। इन विघटन कारी श्रंखलाओं के आँकडे चौंकाने वाले हैं। रात रात में किसी अज्ञात ‘गुरू’ के नाम पर मन्दिर या आश्रम खडे हो जाते हैं। वहाँ गुरू की ‘महिमा’ का गुण गान करने वाले ‘भक्त’ इकठ्टे होने शुरू हो जाते हैं। विदेशों से बहुमूल्य ‘उपहार’  आने लगते हैं। इस प्रकार पनपे अधिकाँश गुरू हिन्दू संगठन के विघटन का काम करने लगते हैं जिस के फलस्वरूप उन गुरूओं के अनुयायी हिन्दूओं की मुख्य धारा से नाता तोड कर केवल गुरू के बनाय हुये रीति-रिवाज ही मानने लगते हैं और विघटन की सीढियाँ तैय्यार हो जाती हैं। 

मताधिकार से शासन हडपने का षटयन्त्र

अधिकाँश हिन्दू मत समुदायों में बट जाते है, परन्तु अल्पसंख्यक अपने धर्म स्थलों पर ऐकत्रित होते हैं जहाँ उन के धर्म गुरू ‘फतवा’ या ‘सरमन’ दे कर हिन्दू विरोधी उमीदवार के पक्ष में मतदान करने की सलाह देते हैं और हिन्दूओं को सत्ता से बाहर रखने में सफल हो जाते हैं। शर्म की बात है ‘प्रजातन्त्र’ होते हुये भी आज हिन्दू अपने ही देश में, अपने हितों की रक्षा के लिये सरकार नहीं चुन सकते। अल्पसंख्यक जिसे चाहें आज भारत में राज सत्ता पर बैठा सकते हैं।

स्वार्थी हिन्दू राजनैता सत्ता पाने के पश्चात अल्पसंख्यकों के लिये तुष्टिकरण की योजनायें और बढा देते हैं और यह क्रम लगातार चलता रहता है। वह दिन दूर नहीं जब अल्पसंख्यक बहुसंख्यक बन कर सत्ता पर अपना पूर्ण अधिकार बना ले गे। हिन्दू गद्दारों को तो ऐक दिन अपने किये का फल अवश्य भोगना पडे गा किन्तु तब तक हिन्दूओं के लिये भी स्थिति सुधारने की दिशा में बहुत देर हो चुकी होगी।

अल्पसंख्यक कानूनों का माया जाल

विश्व के सभी धर्म-निर्पेक्ष देशों में समान सामाजिक आचार संहिता है। मुस्लिम देशों तथा इसाई देशों में धार्मिक र्मयादाओं का उल्लंघन करने पर कठोर दण्ड का प्राविधान है लेकिन भारत में वैसा कुछ भी नहीं है। ‘धर्म के आधार पर’ जब भारत का विभाजन हुआ तो यह साफ था कि जो लोग हिन्दुस्तान में रहें गे उन्हें हिन्दु धर्म और संस्कृति के साथ मिल कर र्निवाह करना होगा। बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक का भेद मिटाने के लिये भारत की समान आचार संहिता का आधार भारत की प्राचीन संस्कृति पर ही होना चाहिये था।

मुस्लिम भारत में स्वेच्छा से रहने के बावजूद भी इस प्रकार की समान आचार संहिता के विरुद्ध हैं। उन्हें कुछ देश द्रोही हिन्दू राजनेताओं का सहयोग भी प्राप्त है। अतः विभाजन के साठ-सत्तर वर्षों के बाद भी भारत में सभी धर्मों के लिये अलग अलग आचार संहितायें हैं जो उन्हे अल्पसंख्यक और बहुसंख्यकों में बाँट कर रखती हैं। भारतीय ‘ऐकता’ है ही नहीं।

सोचने की बात यह है कि भारत में वैसे तो मुस्लिम अरब देशों वाले शैरियत कानून के मुताबिक शादी तलाक आदि करना चाहते हैं किन्तु उन पर शैरियत की दण्ड संहिता भी लागू करने का सुझाव दिया जाये तो वह उस का विरोध करनें में देरी नहीं करते, क्योंकि शैरियत कानून लागू करने जहाँ ‘हिन्दू चोर’ को भारतीय दण्ड संहितानुसार कारावास की सजा दी जाये गी वहीं ‘मुस्लिम चोर’ के हाथ काट देने का प्रावधान भी होगा। इस प्रकार जो कानून मुस्लमानों को आर्थिक या राजनैतिक लाभ पहुँचाते हैं वहाँ वह सामान्य भारतीय कानूनों को स्वीकार कर लेते हैं मगर भारत में अपनी अलग पहचान बनाये रखने के लिये शैरियत कानून की दुहाई भी देते रहते हैं। 

धर्म-निर्पेक्ष्ता की आड में जहाँ महानगरों की सड़कों पर यातायात रोक कर मुस्लमानों का भीड़ नमाज़ पढ सकती है, लाऊ-डस्पीकरों पर ‘अजा़न’ दे सकती है, किसी भी हिन्दू देवी-देवता का अशलील चित्र, फि़ल्में और उन के बारे में कुछ भी बखान कर सकती है – वहीं हिन्दू मन्दिर, पूजा स्थल, और त्योहारों के मण्डप बम धमाकों से स्दैव भयग्रस्त रहते हैं। हमारी धर्म-निर्पेक्ष कानून व्यवस्था तभी जागती है जब अल्प-संख्यक वर्ग को कोई आपत्ति हो।

धर्म की आड़ ले कर मुस्लमान परिवार नियोजन का भी विरोध करते हैं। आज भारत के किस प्रदेश में किस राजनैतिक गठबन्धन की सरकार बने वह मुस्लमान मतदाता ‘निर्धारित’ करते हैं लेकिन कल जब उन की संख्या 30 प्रतिशत हो जायें गी तो फिर वह अपनी ही सरकार बना कर दूसरा पाकिस्तान भी बना दें गे और शैरियत कानून भी लागू कर दें गे।

निस्संदेह, मुस्लिम और इसाई हिन्दू मत के बिलकुल विपरीत हैं। अल्पसंख्यकों ने भारत में रह कर धर्म-निर्पेक्ष्ता के लाभ तो उठाये हैं किन्तु उसे अपनाया बिलकुल नहीं है। केवल हिन्दु ही गांधी कथित ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम’ के सुर आलापते रहै हैं। मुस्लमानों और इसाईयों ने ‘रघुपति राघव राजा राम’ कभी नहीं गाया। वह तो राष्ट्रगान वन्दे मात्रम् का भी विरोध करते हैं। उन्हें भारत की मुख्य धारा में मिलना स्वीकार नहीं।

धर्मान्तरण पर अंकुश ज़रूरी

धर्म परिवर्तन करवाने के लिये प्रलोभन के तरीके सेवा, उपहार, दान दया के लिबादे में छिपे होते हैं। अशिक्षता, गरीबी, और धर्म-निर्पेक्ष सरकारी तन्त्र विदेशियों के लिये धर्म परिवर्तन करवाने के लिये अनुकूल वातावरण प्रदान करते है। कान्वेन्ट स्कूलों से पढे विद्यार्थियों को आज हिन्दू धर्म से कोई प्रेरणा नहीं मिलती। भारत में यदि कोई किसी का धर्म परिवर्तन करवाये तो वह ‘प्रगतिशील’ और ‘उदारवादी’ कहलाता है किन्तु यदि वह हिन्दू को हिन्दू ही बने रहने के लिये कहै तो वह ‘कट्टरपँथी, रूढिवादी और साम्प्रदायक’ माना जाता है। 

इन हालात में धर्म व्यक्ति की ‘निजी स्वतन्त्रता’ का मामला नहीं है। जब धर्म के साथ जेहादी मानसिक्ता जुड़ जाती है जो ऐक व्यक्ति को दूसरे धर्म वाले का वध कर देने के लिये प्रेरित है तो फिर वह धर्म किसी व्यक्ति का निजी मामला नहीं रहता। इस प्रकार के धर्म को मानने वाले अपने धर्म के दुष्प्रभाव से राजनीति, सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्थाओं को भी दूषित करते है। अतः सरकार को उन पर रोक लगानी आवशयक है और भारत में धर्मान्तरण की अनुमति नहीं होनी चाहिये। जन्मजात विदेशी धर्म पालन की छूट को विदेशी धर्म के विस्तार करने में तबदील नहीं किया जा सकता। धर्म-निर्पेक्षता की आड में ध्रमान्तरण दूारा देश को विभाजित करने या हडपने का षटयंत्र नहीं चलाया जा सकता।

घुसपैठ का संरक्षण

धर्मान्तरण और अवैध घुसपैठ के कारण आज असम, नागलैण्ड, मणिपुर, मेघालय, केरल, तथा कशमीर आदि में हिन्दू अल्पसंख्यक बन चुके हैं और शर्णार्थी बन कर दूसरे प्रदेशों में पलायन कर रहै हैं। वह दिन दूर  नहीं जब यह घुस पैठिये अपने लिये पाकिस्तान की तरह का ऐक और प्रथक देश भी माँगें गे।

भारत में चारों ओर से अवैध घुस पैठ हो रही है। अल्पसंख्यक ही घुसपैठियों को आश्रय देते हैं। घुसपैठ के माध्यम से नशीले पदार्थों तथा विसफोटक सामान की तस्करी भी होती है। देश की अर्थ व्यवस्था को नष्ट करने के लिये देश में नकली करंसी भी लाई जा रही है। किन्तु धर्म-निर्पेक्षता और मानव अधिकार हनन का बहाना कर के घुस पैठियों को निष्कासित करने का कुछ स्वार्थी और देशद्रोही नेता विरोघ करने लगते है। इस प्रकार इसाई मिशनरी, जिहादी मुस्लिम तथा धर्म-निर्पेक्ष स्वार्थी नेता इस देश को दीमक की तरह नष्ट करते जा रहे हैं।

तुष्टिकरण के प्रसार माध्यम

विभाजन पश्चात गाँधी वादियों ने बट चुके हिन्दुस्तान में मुसलमानों को बराबर का ना केवल हिस्सेदार बनाया था, बल्कि उन्हें कट्टर पंथी बने रह कर मुख्य धारा से अलग रहने का प्रोत्साहन भी दिया। उन्हें जताया गया कि मुख्य धारा में जुडने के बजाये अलग वोट बेंक बन कर रहने में ही उन्हें अधिक लाभ है ताकि सरकार को दबाव में ला कर प्रभावित किया जा सके । दुर्भाग्यवश हिन्दू गाँधीवादी बन कर वास्तविक्ता की अनदेखी करते रहै हैं।

उसी कडी में अल्संखयकों को ऊँचे पदों पर नियुक्त कर के हम अपनी धर्म निर्पेक्षता का बखान विश्व में करते रहै हैं। अब अल्पसंख्यक सरकारी पदों में अपने लिये आरक्षण की मांग भी करने लगे हैं। काँग्रेस के प्रधान मंत्री तो अल्पसंख्यकों को देश के सभी साधनों में प्राथमिक अधिकार देने की घोषणा भी कर चुके हैं। देशद्रोही मीडिया ने भारत को एक धर्म-हीन देश समझ रखा है कि यहाँ कोई भी आ कर राजनैतिक स्वार्थ के लिये अपने मतदाता इकठे कर देश को खण्डित करने का कुचक्र रच सकता है।

अल्पसंख्यक जनगणना में वृद्धि

विभाजन से पहिले भारत में मुसलमानों की संख्या लगभग चार करोड. थी। आज भारत में मुसलमानों की संख्या फिर से 15 प्रतिशत से भी उपर बढ चुकी है। वह अपना मत संख्या बढाने में संलगित हैं ताकि देश पर अधिकार ना सही तो एक और विभाजन की करवाया जाय। विभाजन के पश्चात हिन्दूओं का अब केवल यही राष्ट्रधर्म रह गया है कि वह अल्पसंख्यकों की तन मन और धन से सेवा कर के उन का तुष्टिकरण ही करते रहैं नहीं तो वह हमारी राष्ट्रीय ऐकता को खण्डित कर डालें गे।

हिन्दूओं में आज अपने भविष्य के लिये केवल निराशा है। अपनी संस्कृति की रक्षा के लिये उन्हें संकल्प ले कर कर्म करना होगा और अपने घर को प्रदूषणमुक्त करना होगा। अभी आशा की ऐक किरण बाकी है। अपने इतिहास को याद कर के वैचारिक मतभेद भुला कर उन्हें एक राजनैतिक मंच पर इकठ्ठे हो कर उस सरकार को बदलना होगा जिस की नीति धर्म-निर्पेक्ष्ता की नही – बल्कि धर्म हीनता की है़।

चाँद शर्मा

5 – स्नातन धर्म – विविधता में ऐकता


स्नातन धर्म ऐक पूर्णत्या मानव धर्म है। समस्त मानव जो प्राकृतिक नियमों तथा स्थानीय परियावरण का आदर करते हुये जियो और जीने दो के सिद्धान्त का इमानदारी से पालन करते हैं वह विश्व में जहाँ कहीं भी रहते हों, सभी हिन्दू हैं। 

स्नातन धर्म समय सीमा तथा भूगौलिक सीमाओं से भी स्वतन्त्र है। स्नातन धर्म का विस्तार पूरे बृह्माणड को अपने में समेटे हुये है। हिन्दू धर्म वैचारिक तौर पर बिना किसी भेद-भाव के सर्वत्र जन-हित के उत्थान का मार्ग दर्शाता है ताकि प्रत्येक व्यक्ति स्थानीय समाज में रहते हुये निजि क्षमता और रुचिअनुसार जियो और जीने दो के सिद्धान्त को क्रियात्मक रूप दे सके। 

हिन्दू धर्म और वैचारिक स्वतन्त्रता 

हिन्दू अपने विचारों में स्वतन्त्र हैं। वह चाहे तो ईश्वर को निराकार माने, चाहे साकार, चाहे तो मूर्तियो, चिन्हों, या तन्त्रों के माध्यम से ईश्वर को पहचाने – या मानव रूप में ईश्वर का दर्शन करे। नास्तिक व्यक्ति को भी आस्तिक के जितना ही हिन्दू माना जाता है। हिन्दू को सृष्टि की हर कृति में ईश्वर का ही आभास दिखता है। कोई भी जीव अपवित्र नहीं। साँप और सूअर भी ईश्वर के निकट माने जाते हैं। 

हिन्दू धर्म ने किसी ऐक ईश्वर को मान कर दूसरों के ईश को नकारा नहीं है, अपितु प्रत्येक हिन्दू को निजि इच्छानुसार एक या ऐक से अधिक कई ईश्वरों को मान लेने की स्वतन्त्रता भी है। ईश्वर का कोई ऐक विशेष नाम नहीं, बलकि उसे सहस्त्रों नामों से सम्बोधित किया जा सकता है। अतिरिक्त नये नाम भी जोड़े जा सकते हैं। चाहे तो कोई प्राणी अपने आप को भी ईश्वर या ईश्वर का पुत्र, प्रतिनिधि, या कोई अन्य सम्बन्धी घोषित कर सकता है और इस का प्रचार भी कर सकता है। लेकिन वह अन्य प्राणियों को अपना ईश्वरीयत्व स्वीकार करने के लिये बाधित नहीं कर सकता। 

हिन्दू धर्म का साहित्य किसी एक गृंथ पर नहीं टिका हुआ है, अपितु केवल धर्म गृंथों का ही एक विशाल पुस्तकालय है। मौलिक गृंथ संस्कृत भाषा में हैं जो कि विश्व की प्रथम भाषा है। हिन्दू धर्म में संस्कृत गृंथों के अनुवाद भी मान्य हैं। हिन्दू साहित्य के मौलिक गृंथों में महान ऋषियों के ज्ञान विज्ञान तथा ऋषियों की साधना के दूआरा प्राप्त किये गये अनुभवों का एक विशाल भण्डार हैं जिस का उपयोग समस्त मानवों के उत्थान के लिये है। फिर भी य़दि किसी हिन्दू ने धर्म साहित्य की कोई भी पुस्तक ना पढी हो तो भी वह उतना ही हिन्दू है जितने उन गृन्थों के लेखक थे।

हिन्दू धर्म और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता

हिन्दू धर्म में प्रत्येक व्यक्ति स्वतन्त्र है कि वह अपनी इच्छानुसार किसी भी स्थान में, किसी भी दिशा में बैठ कर, किसी भी समय, तथा किसी भी प्रकार से अपनी पूजा-अर्चना कर सकता है। और चाहे तो ना भी करे। हिन्दू धर्म में प्रत्येक व्यक्ति स्वतन्त्र है कि वह अपनी इच्छानुसार जैसे चाहे वस्त्र पहने, जो चाहे खाये तथा अपनी रुचि अनुसार अपना जीवन जिये। हिन्दू धर्म में किसी भी बात के लिये किसी पुजारी-मदारी या पादरी से फतवा या किसी प्रकार की स्वीकृति लेने की कोई ज़रूरत नहीं है।

हिन्दूओं ने कभी किसी अहिन्दू के धर्म स्थल को ध्वस्त नहीं किया है और ना ही किसी अहिन्दू की धार्मिक कारणों से हत्या की है या किसी को उस की इच्छा के विरुद्ध हिन्दू धर्म में परिवर्तित किया है। हिन्दू धर्म मुख्यता जन्म के आधार पर ही अपनाया जाता है। हिन्दू धर्म अहिन्दूओं को भी अनादि काल से विश्व परिवार का ही अंग समझता चला आ रहा है जबकि विश्व के अन्य भागों में रहने वाले मानव समुदाय एक दूसरे के अस्तित्व से ही अनिभिज्ञ्य थे। यह पू्र्णत्या साम्प्रदाय निर्पेक्ष धर्म है। 

वैचारिक दृष्टि से हिन्दुत्व प्रत्येक व्यक्ति को आत्म-निरीक्ष्ण, आत्म-चिन्तन, आत्म-आलोचन तथा आत्म-आँकलन के लिये पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करता है। धर्म गृंथों के ही माध्यम से ऋषि मुनी समय समय पर ज्ञान और साधना के बल से  तत्कालीन धार्मिक आस्थाओं पर प्रश्न चिन्ह लगाते रहे हैं, तथा नयी आस्थाओं का निर्माण भी करते रहे हैं। हर नयी विचारघारा को हिन्दू मत में यथेष्ट सम्मान दिया जाता रहा है तथा नये विचारकों और सुधारकों को भी ऋषि-मुनि जैसा आदर सम्मान भी दिया जाता रहा है। हिन्दू धर्म हर व्यक्ति को सत्य की खोज के लिये प्रोत्साहित करता है। हिन्दू धर्म जैसी विभिन्नता में एकता और किसी अन्य धर्म में नहीं है।

साम्प्रदायक समानतायें

यह हर मानव का कर्तव्य है कि वह दूसरों के जीवन का आदर करे , स्थानीय संसाधनो का दुर्पयोग ना करे, उन में वृद्धि करे तथा आने वाली पीढि़यों के लिये उन का संरक्षण करे। आधुनिक विज्ञानिकों की भी यही माँग है। यह तथ्य विज्ञान तथा धर्म को ऐक दूसरे का विरोधी नहीं अपितु अभिन्न अंग बनाता है। 

व्यक्तिगत स्वतन्त्रताओं के बावजूद भी भारत में पनपे सभी धार्मिक साम्प्रदायों में निम्नलिखित समानतायें पाई जाती हैं –

   आस्था की समानतायें

  • ईश्वर ऐक है।
  • ईश्वर निराकार है किन्तु ईश्वर को साकारत्मक चिन्हों से दर्शाया भी जा सकता है।
  • ईश्वर कई रूपों में प्रगट होता है तथा हर कृति में ईश्वर की ही छवि है।
  • सभी हिन्दू शिव, राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, गुरू नानक, साईं बाबा, स्वामीमारायण तथा अन्य किसी महापुरुष में से किसी को अपना जीवन नायक मानते हैं।
  • भगवा रंग पवित्रता, अध्यात्मिकता, वैराग्य तथा ज्ञाम का प्रतीक है।
  • हिन्दू पुर्नजीवन में विशवास रखते हैं।
  • सभी वर्गों के तीर्थस्थल अखणडित भारत, नेपाल और तिब्बत में ही स्थित हैं।क्यों कि धर्म और सभ्यता का जन्म सर्व प्रथम यहीं हुआ था।

सामाजिक आधार

  • हिन्दूओं ने कभी किसी अहिन्दू के धर्म स्थल को ध्वस्त नहीं किया है।
  • हिन्दूओं ने कभी किसी अहिन्दू के धर्म के विरुध धर्म-युद्ध या हिंसा नहीं करते।
  • हिन्दू समस्त विश्व को ही एक विशाल परिवार मानते हैं।
  • हिन्दूओं में विदूआनो तथा सज्जन प्राणियों को ऋषि, संत या महात्मा कहा जाता है तथा वह सर्वत्र आदरनीय माने जाते हैं।
  • हिन्दू गौ मांस खाने को वर्जित मानते है।
  • हिन्दूओं का विवाहित जीवन एक पति-पत्नी प्रथा पर आधारित है तथा इस सम्बन्ध को जीवन पर्यन्त निभाया जाता है।
  • हिन्दूओं के सभी वर्गों पर एक ही सामाजिक आचार संहिता लागू है।
  • हिन्दूओं के सभी समुदाय एक दूसरे के प्रति सौहार्द भाव रखते हैं और एक दूसरे की रस्मों का आदर करते हैं।
  • धार्मिक समुदायों में स्वेच्छा से आवाजावी पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
  • कोई किसी को समुदाय परिवर्तन करने के लिये नहीं उकसाता।
  • संस्कृत सभी भारतीय मूल की भाषाओं की जनक भाषा है।

परियावर्ण के प्रति समानतायें

  • समस्त नदीयां और उन में से विशेष कर गंगा नदी अति पवित्र मानी जाती है।
  • तुलसी के पौधे का उस की पवित्रता के कारण विशेष रुप से आदर किया जाता है।
  • सभी वर्गों में मृतकों का दाह संस्कार किया जाता है और अस्थियों का बहते हुये जल में विसर्जन किया जाता है।
  • सभी वर्गों के पर्व और त्यौहार मौसमी बदलाव, भारतीय महापुरुषों के जीवन की या जन-जीवन सम्बन्धी घटनाओं से जुड़े हुये हैं तथा किसी भी पर्व-त्यौहार के अवसर पर सार्वजनिक या सामूहिक ढंग से रोने धोने और छाती पीटने की कोई प्रथा नहीं है।

हिन्दू धर्म ने स्दैव ही अपनी विचारधारा को समयनुसार परिवर्तनशील रखा है। धर्म संशोधक हिन्दू धर्म के ही उपासकों में से अग्रगणी हुये हैं, तथा अन्य धर्मों से कभी आयात नही किये गये। बौध मत, जैन मत, सिख सम्प्रदाय तथा आर्य समाज इस परिक्रिया के ज्वलन्त उदाहरण हैं। फलस्वरूप कई बार वैचारिक मतभेद भी पैदा होते रहे हैं और कालान्तर वह भी लहरों की तरह हिन्दू महा सागर में ही विलीन होते रहै हैं। सुधारकों तथा नये विचारकों को भी हिन्दू धर्म के पूजास्थलों में आदरयुक्त स्थान प्राप्त है।। स्नातन हिन्दू धर्म विश्व भर में विभिन्नता में एकता की इकलौती अदभुत मिसाल है।  

विदेशी धर्म

वैसे तो मुसलिम तथा इसाई धर्म में भी हिन्दू धर्म के साथ कई समानतायें हैं किन्तु मुसलिम तथा इसाई धर्म भारत में जबरदस्ती घुसे और स्थानीय हिन्दू संस्कृति से हर बात पर उलझते रहे हैं। अपनी अलग पहिचान बनाये रखने के लिये वह स्थानीय साम्प्रदायिक समानताओं पर ही प्रहार करते रहे हैं। उन का विशवास जियो और जीने दो में बिलकुल नहीं था। वह खुद जियो मगर दूसरों को मत जीने दो के सिद्धान्त पर ही चलते रहै हैं। उन की विचारधारा तथा कार्य शैली में धर्म निर्पेक्ष्ता, सहनशीलता तथा परस्पर सौहार्द के लिये कोई स्थान नहीं। आज भी विश्व में यह दोनो परस्पर एक दूसरे का हनन करने में लगे हुये हैं। स्थानीय हिन्दू धर्म के साथ प्रत्येक मुद्दे पर कलह कलेश और विपरीत सोच के कारण विदेशी धर्म भारत में घुल मिल नही सके।

हिन्दू विचारों के विपरीत विदेशी धर्म गृंथ पुनर्जन्म को भी नहीं मानते। उन के मतानुसार अक़ाबत या डूम्स डे (प्रलय) के दिन ही ईश्वर के सामने सभी मृतक अपनी क़बरों से निकल कर पेश किये जायें गे और पैग़म्बर या ईसा के कहने पर जिन के गुनाह माफ कर दिये जायें गे वह स्वर्ग में सुख भोगने के लिये चले जायें गे और शेष सज़ा पाने के लिये नरक में भेज दिये जायें गे। इस प्रकथन को यदि हम सत्य मान लें तो निश्चय ही ईश्वर भी हिन्दूओं के प्रति ही अधिक दयालु है क्योंकि मरणोपरान्त केवल हिन्दूओं का ही पुनर्जन्म होता है। केवल हिन्दूओं को ही अपने पहले जन्म के पाप कर्मों का प्रायश्चित करने और सुधरने का एक अतिरिक्त अवसर दिया जाता है। अतः अगर कोई हिन्दू पुनर्जन्म के बाद पशु-पक्षी बन के भी पैदा हुआ हों तो उसे भी कम से कम एक अवसर तो मिलता है कि वह पुनः शुभ कर्म कर के फिर से मानव बन कर हिन्दू धर्म में जन्म ले सके। अहिन्दूओं के लिये तो पुनर्जन्म का जोखिम ईश्वर भी नहीं उठाता।

विविधता में ऐकता का सिद्धान्त केवल भारत में पनपे धर्म साम्प्रदायों पर ही लागू होता है क्योंकि हिन्दू अन्य धर्म के सदस्यों को उन के घरों में जा कर ना तो मारते हैं ना ही उन का धर्म परिवर्तन करवाते हैं। वह तो उन को भी उन के धर्मानुसार जीने देते हैं।

इसी आदि धर्म को आर्य धर्म, स्नातन धर्म तथा हिन्दू धर्म के नाम से जाना जाता है। इस लेख श्रंखला में यह सभी नांम एक दूसरे के प्रायवाची के तौर पर इस्तेमाल किये गये हैं। अधिक लोकप्रिय होने के कारण हिन्दू धर्म और स्नातन धर्म नामों का अधिक प्रयोग किया गया हैं। हाथी के अंगों के आकार में विभन्नता है किन्तु वह सभी हाथी की ही अनुभूति कराते हैं। यही हिन्दू धर्म की विवधता में ऐकता है। 

चाँद शर्मा

 

टैग का बादल