हिन्दू धर्म वर्तमान राजनैतिक परिपेक्ष में

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हमारा सनसनी-खेज़ मीडिया


लद्दाख़ में चीनी सैनिकों की घुसपैठ…प्रधान मन्त्री की चुप्पी… पाकिस्तान की ओर से भारतीय सीमा पर लगातार गोला बारी…हमारे दहाडने वाले…56 ईंच का सीना रखने वाले प्रधान मन्त्री चुप्पी क्यों साधे बैठे हैं…उजडे आशियाने…कांपती जिन्दगी…हर तरफ लाचारी… …आँसू और … …… …. …. … पत्रकारों की बकबक बक बक…।

देश की इसी तरह की तसवीर मीडिया आजकल हर रोज दिखाता रहता है। इन सब बातों का कोई साकारात्मिक असर नहीं होता लेकिन देश के अन्दर निराशा-हताशा का माहौल जरूर पैदा हो जाता है। देश की जग हँसाई भी होती है। सीमाओं से दूर बसने वालों का भी मनोबल टूटता है क्योंकि उन्हें पूरी सच्चाई पता नहीं चलती। सीमाओं पर लडने वाले सिपाही अपनी ही सरकार को अविशवास से देखते हैं – जो यह सब कुछ सहते हैं उन्हें भी कोई राहत नहीं मिलती… मगर समाचार पत्र खूब बिकते हैं।

सोचने की बात है कि अगर कोई पडोसी देश हमारी सामाओं के अन्दर घुस पैठ करता है तो सरकार के पास दो रास्ते होते हैं। पहला राजनैतिक डिप्लोमेसी से समस्या का कोई हल निकाला जाये। दूसरा रास्ता ईंट का जवाब पत्थर मारना होता है।

आज के युग में सभी सभ्य देश, और सभी शक्तिशाली देश भी पहले राजनैतिक डिप्लोमेसी और सूझ-बूझ वाला रास्ता ही अपनाते हैं। इस रास्ते में समय भी लगता है और समयानुसार ‘ गिवऐण्डटेक भी करना पडता है।

दूसरा रास्ता युद्ध मार्ग का है। उस में दोनो देशों की तबाही होती है। किसी की थोडी, तो किसी की ज्यादा। लडाई के साथ महंगाई हमैशा जुडी रहती है। देश के जवान तो मरते ही हैं साथ साथ में सामान्य नागरिक भी बेघर और तबाह होते हैं। इस मार्ग को भी बहुत सोच समझ कर अपनाना पडता है। सभी तरह की तैय्यारी करनी पडती है और सही वक्त का इन्तिजार भी करना पडता है। इस युद्ध मार्ग के रास्ते पर चल कर समस्या को हल करने के लिये फिर से मुड कर राजनैतिक डिप्लोमेसी का चौक भी पार करना पडता है।

यही कारण है कि सरकार किसी भी मार्ग पर चलने से पहले बहुत कुछ सोचती है। अपनी मंशा को गुप्त रखने के लिये चुप्पी भी साधे रहती है। लेकिन मीडिया को इन सभी बातों पर सोचना नहीं पडता। अगर मीडिया वाले सोचने बैठें गे तो सनसनी फैलाने का मौका हाथ से निकल जाये गा। वह सरकार और देश को भाड में झोंकने के लिये तत्पर रहते हैं क्योंकि कहीं समाचार बासी होगये तो फिर बिकें गे नहीं।

आज कल जिन उजडते घरों और सिसकती जिन्दगियों को टीवी पर दिखाया जाता है वह सीमा के साथ सटे हुये गाँवों की तसवीरें हैं। घरों और खेतों के सामने ही सीमा की बाड़ भी देखी जा सकती है। जब सीमा पार से अचानक गोलीबारी होती है तो वहाँ फूल नहीं बरसते। मौत की गोलियां बरसती हैं जिन के फलस्वरूप लोगों का घायल होना, पशुओं का मरना, घरों का तबाह होना और लोगों का बेघर होना सभी कुछ स्वाभाविक है। सिस्कते रोते-पीटते लोगों को दिखा कर मीडिया कोई नयी खबर नहीं दे रहा केवल निराश और हताशा दिखा कर सरकार को आवेश में कोई निर्णय लेने की तरफ धकेल रहा है जिस का परिणाम देश को कई बार बाद में पछता कर भी चुकाना पड सकता है।

मीडिया की जिम्मेदारी है कि निष्पक्ष तरीके और संयम की भाषा में समाचारों को दिखायें। भडकाने और उकसाने के बदले लोगों को अपना मनोबल बनाये रखने का हौसला दें। लोगों को सलाह दें कि किस तरह से वह अपनी मदद स्वयं कर के सुरक्षित रहैं गे या युद्ध-स्थल से दूर किसी दूसरे सुरक्षित स्थान पर समय रहते चले जायें। अगर वह अफरा-तफरी में घरों से भागें गे तो अपने ही लोग, स्शस्त्र सैनाओं के लिये रोड ब्लाक दूर करने की ऐक अन्य बाधा पैदा कर दें गे जिसे टाला जा सकता है।

अगर रिहायशी इलाके सीमा के निकट हैं जहां गोलाबारी या जवाबी गोलाबारी होनी है तो उस के साथ जुडी तकलीफों का आना टाला नहीं जा सकता। रोते-पीटते, घायल बेघर लोगों को दिखाना समस्या का समाधान नहीं कर सकता। अपने देश का मजाक जरूर बनाया जा सकता है। शत्रु-सैना का मनोबल बढाया जा सकता है और अपने सैनिकों का मनोबल गिराया जा सकता है।

अब यह सोच कर देखिये कि हमारा मीडिया देश हित में प्रचार कर रहा है या देश द्रोह कर के सनसनी बेच कर पैसा कमा रहा है। पत्रकारिता के अन्दर अगर देश भक्ति की मात्रा नहीं है तो ऐसी पत्रकारिता पर प्रतिबन्ध लगना देश हित में है। पत्रकारों की शिक्षा दीक्षा में देश भक्ति और देश के हितों का ख्याल अगर नहीं रखा जाता और मीडिया के बक-बक करने पर अगर लगाम नहीं डाली जाती तो ऐसी स्वतन्त्रता केवल ऐक कलंक मात्र है।

चाँद शर्मा

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